अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन (ISS) पर अपने मिशन के दौरान भारतीय अंतरिक्ष यात्री शुभांशु शुक्ला ने जो प्रयोग किए, वो सिर्फ भारत के लिए नहीं, बल्कि दुनिया भर के अंतरिक्ष वैज्ञानिकों के लिए भी काफी अहम माने जा रहे हैं।
शुभांशु ने माइक्रोग्रैविटी यानी बहुत कम गुरुत्वाकर्षण वाले माहौल में भारत की अगुवाई में सात बड़े वैज्ञानिक प्रयोग किए। इनमें मूंग और मेथी के बीजों को अंकुरित करना, सूक्ष्म शैवाल और साइनोबैक्टीरिया पर रिसर्च, और स्टेम सेल से जुड़ा अध्ययन शामिल है। ये सारे प्रयोग भविष्य की उस तैयारी का हिस्सा हैं, जब इंसान चांद या मंगल जैसे ग्रहों पर रहने की कोशिश करेगा।
NASA की रिपोर्ट के मुताबिक, इन रिसर्च का फोकस खासतौर पर ये था कि इंसानी शरीर अंतरिक्ष में कैसे रिएक्ट करता है, कोशिकाएं कैसे काम करती हैं, और हेल्थ को मॉनिटर करने के लिए कौन-सी ऑटोमैटिक टेक्नोलॉजी काम आ सकती है। इन सभी में शुभांशु का रोल काफी अहम रहा।
बीजों का स्पेस में अंकुरण
भारतीय वैज्ञानिक रविकुमार होसमणि और सुधीर सिद्धापुरेडी की देखरेख में शुभांशु ने मूंग और मेथी के बीज अंतरिक्ष में उगाने की कोशिश की। इसका मकसद ये समझना था कि बिना ग्रैविटी के बीज कैसे अंकुरित होते हैं। इसे भविष्य की स्पेस फार्मिंग की दिशा में बड़ा कदम माना जा रहा है।
माइक्रो ऑर्गैनिज़्म पर स्टडी
साइनोबैक्टीरिया और शैवाल जैसे छोटे जीवों को स्पेस में माइक्रोग्रैविटी में रखा गया और देखा गया कि वे वहां कैसे व्यवहार करते हैं और कितने समय तक जिंदा रहते हैं। इनका फायदा ये है कि ये ऑक्सीजन और न्यूट्रिशन दोनों दे सकते हैं।
स्टेम सेल स्टडी: नई उम्मीद
एक खास प्रोजेक्ट में शुभांशु ने देखा कि स्पेस में स्टेम सेल्स को दिल और दिमाग की कोशिकाओं में कैसे बदला जा सकता है। उन्होंने बताया कि जीरो ग्रैविटी की वजह से स्पेस में मसल्स कमजोर हो जाती हैं। रिसर्च में ये पता लगाने की कोशिश की गई कि क्या किसी न्यूट्रिएंट से ये असर रोका जा सकता है। अगर ये मुमकिन हुआ, तो इसका फायदा बुज़ुर्गों और मसल से जुड़ी बीमारियों के इलाज में भी हो सकता है।
प्रोटीन क्रिस्टलाइजेशन: दवाओं की नई राह
एक और अहम एक्सपेरिमेंट में प्रोटीन को क्रिस्टल में बदला गया ताकि उसकी बनावट को बेहतर तरीके से समझा जा सके। इससे ज्यादा असरदार और सुरक्षित दवाएं बनाने में मदद मिलेगी।
भारतीय माइक्रोबायोम का टेस्ट
भारत की ओर से एक यूनिक एक्सपेरिमेंट में भारतीय लोगों की आंतों में पाए जाने वाले बैक्टीरिया को स्पेस में टेस्ट किया गया। इसका मकसद ये समझना था कि माइक्रोग्रैविटी में इनकी बनावट और इम्युनिटी पर क्या असर पड़ता है।
AI-बेस्ड हेल्थ मॉनिटरिंग
अंतरिक्ष में डॉक्टर तो होते नहीं, इसलिए शुभांशु ने एक ऑटोमैटिक स्कैनिंग सिस्टम का इस्तेमाल किया जो दिल की धड़कन, बॉडी टेम्परेचर और ब्लड प्रेशर जैसे सिग्नल्स को रियल टाइम में मॉनिटर करता है। ये टेक्नोलॉजी फ्यूचर मिशन में बहुत काम आएगी।
बिना मिट्टी के खेती और Photosynthesis
ISS के Veggie Lab में शुभांशु ने स्पेस हाइड्रोपोनिक्स से बिना मिट्टी के पौधे उगाने का तरीका टेस्ट किया। मकसद ये समझना था कि क्या मंगल जैसे ग्रहों पर खेती मुमकिन हो सकती है।
बाकी अंतरिक्ष यात्रियों के भी अहम प्रयोग
- अमेरिका की पेगी वेटसन ने देखा कि जीरो ग्रैविटी का हड्डियों पर क्या असर होता है।
- पोलैंड के स्लावोस उजनास्की ने देखा कि स्पेस रेडिएशन डीएनए और कोशिकाओं पर कैसा असर करता है।
- हंगरी के तिबोर कपू ने दिल की धड़कन और ऑक्सीजन लेवल पर फोकस किया।
ब्रेनवेव और नींद का पैटर्न
एक दिलचस्प एक्सपेरिमेंट में शुभांशु और उनके साथियों ने EEG कैप पहनकर ये जानने की कोशिश की कि ब्रेनवेव्स और नींद का पैटर्न स्पेस में कैसे बदलता है। ये लंबे स्पेस मिशन के लिए मेंटल हेल्थ को समझने में काफी मददगार साबित होगा।
कम्युनिकेशन और मोटिवेशन
मिशन के दौरान शुभांशु ने साइंटिफिक कामों के साथ-साथ प्रधानमंत्री मोदी और ISRO के वैज्ञानिकों से रेडियो पर बात की। उन्होंने स्टूडेंट्स से भी बातचीत की और उन्हें साइंस के लिए इंस्पायर किया।
एक मजेदार मोमेंट में उन्होंने पानी का एक बबल हवा में तैरता हुआ दिखाया और खुद को मजाक में Water Bender कह दिया।