कर्नाटक सरकार द्वारा Rohith Vemula (Prevention of Exclusion or Injustice) (Right to Education and Dignity) Bill, 2025 विधानसभा में पेश किया गया है। यह विधेयक SC, ST, OBC एवं अल्पसंख्यक समुदायों के छात्रों के खिलाफ उच्च शिक्षा संस्थानों में होने वाले भेदभाव, बहिष्कार व अन्याय को रोकने के लिए तैयार किया गया है। इसका लक्ष्य हर शैक्षिक योग्य छात्र को जाति, धर्म, वर्ग या लिंग की परवाह किए बिना समान अवसर प्रदान करना है। इसमें शिक्षा और गरिमा को संरक्षित करने का कानूनी दायरा भी शामिल है।
हैदराबाद सेंट्रल यूनिवर्सिटी के पीएचडी स्कॉलर रोहित वेमुला और टोपीवाला नेशनल मेडिकल कॉलेज की आदिवासी छात्रा पायल तड़वी ने शिक्षण संस्थान परिसर में जातिगत पूर्वाग्रह के शोषण से क्रमशः जनवरी 2016 और मई 2019 में आत्महत्या कर ली थी, जिसके आधार पर यूजीसी द्वारा केंद्रीय, राज्य, डीम्ड और निजी विश्वविद्यालयों और उच्च शिक्षण संस्थानों में ‘यूजीसी उच्च शिक्षण संस्थानों में समानता व मानवता को बढ़ावा देने के लिए समान अवसर सेल’ स्थापित किया गया है।
कर्नाटक में इस कानून के लागू होने के बाद पहली बार उल्लंघन पर न्यूनतम 1 वर्ष की जेल और ₹10,000 जुर्माना; साथ ही पीड़ित को अधिकतम ₹1 लाख तक का मुआवजा कानून द्वारा निर्धारित किया जा सकता है। दोहराव पर न्यूनतम 3 वर्ष की जेल और ₹1 लाख जुर्माना; मुआवजा भी अधिकतम ₹1 लाख तक हो सकता है। अपराध को गैर-ज़मानती (non-bailable) और पुलिस नियन्त्रण योग्य (cognizable) घोषित किया गया है।
व्यक्तिगत कदाचार के अलावा संस्थान के प्रमुख और संस्थान स्वयं भी उत्तरदायी होंगे यदि संस्था में भेदभाव का मामला सामने आता है। यदि कोई शिक्षण संस्था “सब जातियों, धर्मों, लिंगों और समुदायों के लिए खुली” न हो, तो उस पर सरकारी अनुदान काटने की कार्रवाई की जाएगी।
जिस छात्र को भी जातिगत भेदभाव का सामना करना पड़ता है, वह स्वयं, उसका अभिभावक या कोई संबंधी या साथी पुलिस में शिकायत दर्ज कर सकता है। यह स्पष्ट करता है कि विधेयक पीड़ित को न केवल संस्थागत स्तर पर, बल्कि व्यक्तिगत स्तर पर भी शिकायत करने का अधिकार देता है।