प्रधानमंत्री के संसदीय क्षेत्र वाराणसी में विकास अब ऐसा शब्द बन गया है, जिसकी आड़ में ट्रस्टों की ज़मीनें, गंगा घाटों की मर्यादा और सांस्कृतिक विरासतें लगातार निगली जा रही हैं। शहर के कई पुराने ट्रस्ट भवनों और संपत्तियों पर भी सधी हुई चुप्पी के साथ कब्जा किया गया है। प्रदेश के मुखिया को यह सब पता है, मगर कार्रवाई की जगह माफिया-बिल्डरों को अप्रत्यक्ष संरक्षण मिलता दिखाई दे रहा है। प्रशासन मूक सहयोगी बना हुआ है। सोचिए, यह सब कुछ उसी ज़मीन पर हो रहा है, जिसे देश के प्रधानमंत्री का संसदीय क्षेत्र कहा जाता है।
अब बात रामघाट की, जहाँ कभी बनारसियों के लिए मेहता हॉस्पिटल था, वहीं आज एक बहुमंज़िला इमारत खड़ी है। सैकड़ों कमरों वाले इस आलीशान होटल के बारे में बताया जा रहा है कि यह एक अंतरराष्ट्रीय होटल समूह ‘ताज’ का हिस्सा बन चुका है।
ध्यान देने वाली बात यह है कि यह इमारत गंगा किनारे उस 200 मीटर क्षेत्र में आती है, जहाँ निर्माण इलाहाबाद हाईकोर्ट द्वारा प्रतिबंधित है। फिर भी वाराणसी विकास प्राधिकरण (VDA) की नाक के नीचे यह होटल खड़ा हो गया और किसी की आँख तक नहीं फटी। गौरतलब है कि इस क्षेत्र के आम निवासी अगर अपने पुराने मकान की मरम्मत भी करना चाहें तो वे वर्षों तक चक्कर काटते हैं, या तो संबंधित अधिकारियों की जेब गर्म करते हैं या थक हार कर बैठ जाते हैं।
खैर, सत्ता संरक्षित यह विशेष होटल किसी विशेष अवसर पर वीआईपी उपस्थिति में सम्भवतः इसी वर्ष उद्घाटित भी होगा। आखिरकार, आजकल विकास की परिभाषा ही बदल चुकी है। अब अवैध निर्माण, कब्जेदारी, ट्रस्ट सम्पत्तियों की लूटमारी ही विकास का पैमाना है।