बिहार में महिला और मजदूरों की वास्तविकता: बिहार की नीतीश सरकार हाल ही में चर्चा में है। एक तरफ, सरकार ने मुख्यमंत्री महिला रोजगार योजना के तहत शुक्रवार, 3 अक्टूबर को लगभग 25 लाख महिलाओं के बैंक खाते में ₹10,000 की पहली किस्त सीधे ट्रांसफर कर दी। योजना की घोषणा सिर्फ 1 महीने पहले, 29 अगस्त को हुई थी। यह तेजी और उदारता सच में तारीफ के काबिल है।
लेकिन सवाल उठता है कि यदि सरकार महिलाओं के लिए इतनी उदार और संसाधनपूर्ण हो सकती है, तो MNREGA (मनरेगा) के मजदूरों के लिए रोज़ाना केवल ₹255 क्यों भुगतान करती है, और वह भी साल में सिर्फ 34 दिन के लिए? याद रहे, इस योजना में काम करने वाले मजदूरों का आधा हिस्सा महिलाएं हैं।
सिर्फ मनरेगा ही नहीं, बिहार की नवीनतम न्यूनतम मजदूरी भी बेहद कम है:
- अकुशल मजदूर: ₹410 प्रति दिन
- अर्ध-कुशल मजदूर: ₹426 प्रति दिन
- कुशल मजदूर: ₹519 प्रति दिन
- अत्यंत कुशल मजदूर: ₹634 प्रति दिन
यह भी 26 दिन प्रति माह के आधार पर तय है। अधिकांश मजदूर पुरुष हैं।
मजदूरों का शोषण और असमानता
यदि सरकार के पास इतनी गहरी जेब है और चुनाव के पहले महिलाओं के लिए उदारता दिखा सकती है, तो सवाल है कि उन लाखों मजदूरों का क्या, जो सरकारी और निजी निर्माण क्षेत्रों में कठिन मेहनत करते हैं।
आज के निर्माण-संचालित विकास के दौर में बिल्डर लॉबी राजनीतिक रूप से मजबूत होती जा रही है। नतीजतन, न्यूनतम मजदूरी के नियमों का उल्लंघन आम बात हो गई है।
मनरेगा मजदूरों की समस्या और भी गंभीर है। बिहार में सरकार केवल 34.5 दिन ही काम देती है, और मजदूरी भुगतान में भी अक्सर देरी होती है। 2023 में भागलपुर और वैशाली के मजदूरों ने भ्रष्टाचार और फर्जी उपस्थिति के खिलाफ हड़ताल की थी।
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न्यूनतम मजदूरी बढ़ाने की जरूरत
पिछले दशक में महंगाई बहुत बढ़ चुकी है। ऐसे में मजदूरों के लिए न्यूनतम मजदूरी:
- अकुशल मजदूर: ₹900-₹1,000
- अर्ध-कुशल मजदूर: ₹1,000-₹1,100
- कुशल मजदूर: ₹1,100-₹1,200
- अत्यंत कुशल मजदूर: ₹1,200-₹1,300
तक बढ़ाई जानी चाहिए।
महिला मजदूरों का काम भी बेहद कठिन है। ईंटें सिर पर उठाना, कृषि में बुवाई और ट्रांसप्लांटेशन जैसी मेहनत किसी कुशलता से कम नहीं।
महिला उद्यमिता या मिडलमैन का फायदा?
मुख्यमंत्री महिला रोजगार योजना के तहत महिलाओं को ₹10,000 दी गई है। छह महीने में प्रगति दिखाने पर उन्हें ₹2 लाख तक मिल सकते हैं।
लेकिन क्या यह वास्तव में महिलाओं की गरीबी मिटाने के लिए है? रिपोर्ट्स के अनुसार, यह पैसा माइक्रो-फाइनेंस कंपनियों के पास जा रहा है, जिन्होंने महिलाओं को उच्च ब्याज पर ऋण दिए हैं।
- बिहार में 2023 में माइक्रोफाइनेंस कंपनियों ने ₹49,500 करोड़ के ऋण दिए, जबकि 2020 में सिर्फ ₹6,000 करोड़ थे।
- लोग उच्च ब्याज वाले ऋण लेने को मजबूर हैं।
- वास्तविक गरीबों को लाभ नहीं, बल्कि मिडलमैन और अधिकारी फायदा उठा रहे हैं।
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योजनाओं में सुधार जरूरी
सरकार को चाहिए कि वह केवल नए योजनाएं शुरू करने की बजाय:
- न्यूनतम मजदूरी बढ़ाए और इसका सख्ती से पालन कराए।
- MNREGA और अन्य ग्रामीण रोजगार योजनाओं में भ्रष्टाचार रोके।
- महिलाओं और मजदूरों की वास्तविक मदद पर ध्यान दे, न कि मिडलमैन और कंपनियों को लाभ पहुंचाए।
जब मजदूरी और रोजगार सही होंगे, तभी गरीबी कम होगी और बिहार की आर्थिक स्थिति मजबूत होगी।