CM सिद्धारमैया की मुश्किलें बढ़ीं: MUDA केस में कोर्ट ने दी जांच जारी रखने की मंजूरी, जिससे कर्नाटक की राजनीति में एक नया भूचाल आता दिख रहा है। मैसूर शहरी विकास प्राधिकरण (MUDA) से जुड़े भूमि आवंटन घोटाले में लोकायुक्त पुलिस द्वारा दी गई क्लीन चिट को कोर्ट ने मानने से इनकार कर दिया है। इसके साथ ही लोकायुक्त पुलिस को निर्देश दिया गया है कि वह गहन और समग्र जांच कर अंतिम रिपोर्ट अदालत में पेश करे।
यह मामला उस वक्त और गंभीर हो गया जब प्रवर्तन निदेशालय (ED) और शिकायतकर्ता सामाजिक कार्यकर्ता स्नेहमयी कृष्णा ने लोकायुक्त पुलिस की ‘बी रिपोर्ट’ पर आपत्ति जताई। कोर्ट ने यह मानने से इनकार कर दिया कि सिर्फ चार लोगों की जांच काफी है और कहा कि इस केस में शामिल सभी लोगों की भूमिका का विश्लेषण होना चाहिए।
अदालत ने लोकायुक्त पुलिस से यह भी पूछा कि क्यों इतनी जल्दबाज़ी में क्लीन चिट दी गई, जबकि कई पहलुओं की जांच अधूरी प्रतीत होती है। कोर्ट ने साफ किया कि बिना ठोस और व्यापक तथ्यों के किसी भी राजनीतिक या प्रशासनिक व्यक्ति को आरोपमुक्त नहीं किया जा सकता।
अदालत की यह टिप्पणी सीधे तौर पर मुख्यमंत्री सिद्धारमैया की राजनीतिक साख और विश्वसनीयता पर सवाल उठाती है। ऐसा पहली बार नहीं है जब कोई शीर्ष नेता इस तरह के आरोपों से घिरा हो, लेकिन अदालत द्वारा क्लीन चिट को ठुकराना अपने-आप में बड़ा संदेश देता है।
MUDA केस की अगली सुनवाई अब 7 मई को होगी, और तब तक लोकायुक्त पुलिस को एक विस्तृत अंतिम रिपोर्ट तैयार करनी होगी। इस रिपोर्ट में न केवल चार लोगों की, बल्कि पूरे प्रकरण में संलिप्त हर व्यक्ति की भूमिका की जांच होनी चाहिए।
सवाल उठ रहे हैं कि क्या यह मामला केवल नियमों की अनदेखी तक सीमित है या इसके पीछे सत्ता के दुरुपयोग की कोई बड़ी रणनीति भी रही है। कोर्ट की गंभीर टिप्पणी से यह साफ हो गया है कि जांच को केवल औपचारिकता मानने की गलती अब बर्दाश्त नहीं होगी।
कर्नाटक में पहले से ही चुनावी सरगर्मियां तेज हैं और ऐसे समय में मुख्यमंत्री के खिलाफ चल रहे इस संवेदनशील मामले में कोर्ट की सक्रियता ने राजनीतिक गलियारों में हलचल मचा दी है।