वक्फ संशोधन अधिनियम को लेकर सुप्रीम कोर्ट में इन दिनों तीखी बहस जारी है। संसद द्वारा पारित इस अधिनियम के खिलाफ 70 से अधिक याचिकाएं दायर की गई हैं, जिन पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक पीठ कई संवेदनशील पहलुओं की जांच कर रही है। मुस्लिम पक्ष की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने अदालत में दलील दी कि इस कानून के जरिए धार्मिक संस्थाओं की स्वायत्तता को क्षति पहुँचाई जा रही है।
कपिल सिब्बल का कहना है कि नया वक्फ कानून संविधान के अनुच्छेद 26 का उल्लंघन करता है, जो किसी भी धार्मिक समुदाय को अपने धार्मिक मामलों का प्रबंधन करने का मौलिक अधिकार देता है। उन्होंने विशेष रूप से इस बात पर आपत्ति जताई कि अब वक्फ बोर्ड में हिंदू सदस्य भी नियुक्त किए जा सकते हैं, जबकि पहले केवल मुस्लिम सदस्य ही इस बोर्ड का हिस्सा होते थे।
इस दलील पर प्रतिक्रिया देते हुए भारत के मुख्य न्यायाधीश डी. वाई. चंद्रचूड़ ने सवाल उठाया, “आपको इसमें क्या दिक्कत है?” सिब्बल ने स्पष्ट किया कि यह संसद द्वारा बनाए गए कानून के माध्यम से अल्पसंख्यक समुदाय के अधिकारों में सीधा हस्तक्षेप है।
सिब्बल ने यह भी सवाल उठाया कि वक्फ संपत्तियों की पहचान का अधिकार अब जिलाधिकारियों यानी कलेक्टर्स को सौंपा गया है। उन्होंने कहा कि यह बेहद चिंताजनक है क्योंकि वही सरकारी अधिकारी अब यह तय करेगा कि कोई संपत्ति वक्फ है या नहीं, और उसी के पास विवादों का समाधान करने का भी अधिकार होगा। यह प्रक्रिया सिब्बल के अनुसार न्याय की मूल भावना के खिलाफ है।
उन्होंने आगे कहा कि नए कानून में यह भी प्रावधान है कि किसी संपत्ति को तभी वक्फ माना जाएगा, जब उसकी वक्फ डीड (Waqf Deed) मौजूद हो। उन्होंने सवाल उठाया कि यदि कोई संपत्ति तीन सौ साल पुरानी है और उसकी डीड नहीं मिलती, तो क्या वह वक्फ संपत्ति नहीं मानी जाएगी? उन्होंने कहा, “वक्फ बाई यूजर की जो परंपरा थी, उसे पूरी तरह खत्म कर दिया गया है।”
मुख्य न्यायाधीश ने इस पर टिप्पणी करते हुए कहा कि पंजीकरण व्यवस्था से केवल पारदर्शिता आएगी और फर्जी दावों को रोका जा सकेगा। जस्टिस विश्वनाथन ने भी कहा कि वक्फ डीड की अनिवार्यता फर्जी दावों को रोकने की दिशा में उठाया गया कदम है।
सिब्बल ने आशंका जताई कि नामांकन की प्रक्रिया को इस तरह से तैयार किया गया है कि सरकार वक्फ बोर्ड पर अपना नियंत्रण स्थापित कर सके। उन्होंने कहा कि यह धार्मिक स्वतंत्रता और संस्थागत स्वायत्तता दोनों के लिए खतरा है।
यह मामला केवल वक्फ संपत्तियों की कानूनी स्थिति का नहीं, बल्कि भारत में धार्मिक संस्थाओं की संवैधानिक सीमाओं और स्वतंत्रता के संतुलन का भी प्रतीक बन चुका है। अब देखने वाली बात होगी कि सुप्रीम कोर्ट इस संवेदनशील मुद्दे पर क्या ऐतिहासिक निर्णय देता है।