दिल्ली हाईकोर्ट ने न्यायाधीशों की भारी कमी को लेकर दायर एक जनहित याचिका का निपटारा करते हुए कहा कि यह विषय पहले से ही सुप्रीम कोर्ट की सक्रिय निगरानी में है और इस पर प्रशासनिक स्तर पर कदम उठाए जा रहे हैं।
सुप्रीम कोर्ट की निगरानी का हवाला
याचिका की सुनवाई करते हुए जस्टिस देवेंद्र कुमार उपाध्याय और जस्टिस तुषार राव गेडेला की पीठ ने टिप्पणी की कि इस विषय पर अलग से आदेश की ज़रूरत नहीं है। कोर्ट ने याचिकाकर्ता को सुप्रीम कोर्ट में पक्षकार बनने की अनुमति दी और याचिका वापस लेने की इजाजत दी।
क्या सरकार और कोर्ट को नहीं पता?
सुनवाई के दौरान बेंच ने तीखे शब्दों में कहा:
क्या आपको लगता है कि भारत सरकार और दिल्ली हाईकोर्ट को इस समस्या की जानकारी नहीं है? क्या वे इससे अनभिज्ञ हैं?
60 में सिर्फ़ 36 न्यायाधीश कार्यरत
याचिका अधिवक्ता अमित साहनी ने दाखिल की थी। उन्होंने कोर्ट को बताया कि दिल्ली हाईकोर्ट में 60 स्वीकृत पदों में से केवल 36 न्यायाधीश कार्यरत हैं, यानी करीब 40% की कमी है।
इसकी वजह सेवानिवृत्ति, स्थानांतरण और न्यायिक नियुक्तियों में देरी बताई गई।
हालिया रिटायरमेंट्स और स्थानांतरण
हाल ही में जस्टिस रेखा पाली और अनूप कुमार मेंडिरत्ता सेवानिवृत्त हुए, जबकि जस्टिस यशवंत वर्मा, सीडी सिंह और दिनेश कुमार शर्मा का स्थानांतरण हो चुका है। आने वाले महीनों में दो और सेवानिवृत्तियाँ संभावित हैं, जिससे संख्या 34 तक गिर सकती है।
न्याय में देरी, जनता पर असर
याचिकाकर्ता ने कहा कि न्यायाधीशों की इस कमी से जमानत, अपील, वाणिज्यिक मुकदमे और रिट याचिकाएं लंबित हो रही हैं, जिससे खासकर आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग प्रभावित हो रहा है।
उन्होंने कहा, न्यायिक नियुक्तियों में देरी से न सिर्फ संवैधानिक अधिकार, बल्कि संस्थागत विश्वसनीयता और जनता का विश्वास भी कमजोर होता है।



