यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदिमिर ज़िलेंस्की को उस वक्त सबके सामने आलोचना झेलनी पड़ी जब उन्होंने अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप से मुलाकात के दौरान सूट-टाई नहीं पहनी। वो एक हल्के और सीधे अंदाज़ में बातचीत करना चाहते थे, लेकिन पश्चिमी देशों के ड्रेस कोड से मेल न खाने की वजह से उन्हें निशाने पर ले लिया गया।
दूसरी तरफ, मिडिल ईस्ट की कूटनीतिक संस्कृति एकदम अलग है। जब ट्रंप सऊदी अरब पहुंचे तो क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान ने उन्हें पारंपरिक अरब पोशाक, थोब, गुत्रा, अगाल और बिश्त पहनकर स्वागत किया। उन्होंने पारंपरिक सैंडल भी पहनी हुई थी। कतर के अमीर शेख तमीम बिन हमद अल थानी और UAE के राष्ट्रपति शेख मोहम्मद बिन जायद अल नहयान ने भी ट्रंप से अपनी पारंपरिक ड्रेस और सैंडल में मुलाकात की। इससे ये साफ होता है कि अपनी सांस्कृतिक पहचान को छोड़े बिना भी आप अंतरराष्ट्रीय मंच पर सम्मान पा सकते हैं।
असल बात ये है कि अगर कोई इंसान या देश दूसरों को खुश करने के लिए अपनी पहचान से समझौता करता है, तो उसकी गरिमा खुद-ब-खुद कम हो जाती है। असली असर ड्रेस से नहीं, आत्मविश्वास, सोच और बॉडी लैंग्वेज से पड़ता है। आप अपने कल्चर को जितनी शान से दिखाते हैं, उतना ही गहरा असर दूसरे देशों पर डालते हैं।
याद करिए, जब एक भारतीय नेता ने बराक ओबामा से मिलने के लिए दस लाख का सूट पहन लिया था और चाय बना कर बराक-बराक करते हुए पेश की थी, ये सिर्फ उनकी नहीं, देश की गरिमा पर भी सवाल बन गया था। ऐसी हरकतें सिर्फ इमेज पर नहीं, बल्कि देशों के रिश्तों और डिप्लोमैटिक बैलेंस पर भी असर डालती हैं।
कूटनीति सिर्फ मीटिंग्स और समझौतों की बात नहीं है। ये उस तरीके से भी तय होती है, जिससे आप खुद को दुनिया के सामने रखते हैं। जब आप अपनी जड़ों से जुड़े रहते हैं, तो वही बात आपके लहजे, नजरिए और हर कदम में झलकती है, और यही असर लोगों के दिलों में सबसे लंबे वक्त तक रहता है।