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मुंह से मर्द, बिस्तर में सीज़फायर: 1 मिनट वालों की अधूरी मर्दानगी की कहानी

भारत में लगभग 40% पुरुष शीघ्रपतन की समस्या से जूझ रहे हैं। ये 1 मिनट वाले यौन-कुंठित पुरुष बाहर तो खुद को मर्द साबित करने के लिए चीखते-चिल्लाते हैं, मगर असली जगह पर सीज़फायर कर देते हैं।

भारत में सेक्स को लेकर इतना ओछापन और छिछोरापन क्यों है? यह समझ से परे है। हकीकत यह है कि तमाम ओछेपन और भोंडेपन के बावजूद भारत में लगभग 40% पुरुष शीघ्रपतन (Premature Ejaculation) की समस्या से प्रभावित हैं।

2011 की जनगणना के अनुसार, लगभग 62.37 करोड़ पुरुषों को आधार मानें, तो एक रिपोर्ट के अनुसार अनुमानित तौर पर 40% यानी लगभग 24.9 करोड़ पुरुष शीघ्रपतन से प्रभावित हैं। 2019 में Indian Journal of Psychiatry की एक रिपोर्ट बताती है कि यह संख्या 39% से भी अधिक है।

यह आंकड़ा पूरी दुनिया में सबसे अधिक है। उदाहरण के लिए, अमेरिका के The National Health and Social Life Survey (NHSLS) के अनुसार वहां केवल 20% वयस्क पुरुष इस समस्या से पीड़ित हैं।

सामान्य पुरुषों में औसतन स्खलन (ejaculation) का समय 5 से 6 मिनट होता है, जबकि शीघ्रपतन में यह समय 1-2 मिनट या उससे भी कम माना जाता है। इनमें भी 1 मिनट से कम समय वालों की संख्या बहुत अधिक है।

इसके कारण स्त्रियां संतुष्ट नहीं होतीं और पुरुष अपनी मर्दानगी को उनके सामने पराजित होते हुए महसूस करते हैं। भारतीय स्त्रियां, क्योंकि वे बेहद सुसंस्कृत और लज्जाशील होती हैं, इसलिए असंतोष का यह घूंट पीकर चुप रह जाती हैं, जो मिला, उसी को अपना मुकद्दर समझ लेती हैं।

और पुरुष? अपनी मर्दाना कमजोरी को छुपाने के लिए वे रेप, गैंगरेप, बुंदेलखंडी राई नृत्य, भोजपुरी अश्लील मंचों पर नृत्य, फटाफट खोल के दिखाव, रिमोट से लहंगा उठाव, देबू की ना देबू जैसे अश्लील व्यवहारों के जरिए अपनी नामर्दी का प्रदर्शन करते हैं।

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आंकड़ों पर गौर करें तो सच्चाई यह है कि इस देश के लगभग आधे पुरुष नामर्द हैं और एक मिनट भी ठहर नहीं सकते।

इसी कारण भारत में मर्दाना कमजोरी का शर्तिया इलाज और अपनी मर्दाना ताकत फिर से प्राप्त करें जैसी टैगलाइन वाले हाशमी दवाखाने गली-गली और रेलवे स्टेशन के पीछे मिल जाते हैं। नहीं तो मेनफोर्स जैसी कंपनियां हैं, जो सेक्सवर्धक दवाएं बेचती हैं। तमाम पुरुष इन्हीं दवाओं के सहारे खुद को मैदान में खड़ा कर पाते हैं।

यह भी एक सच्चाई है कि महिलाओं को लेकर ऐसी महिला कमजोरी वाली टैगलाइनें व्यापार में दिखाई नहीं देतीं, न उन्हें माजून चाहिए, न शिलाजीत और न अश्वगंधा।

एक और सच्चाई यह है कि भारतीय पुरुषों की इसी मर्दाना कमजोरी पर आज आयुर्वेदिक और यूनानी दवाओं का हज़ारों करोड़ का कारोबार चल रहा है, और लोग माजून, शिलाजीत और अश्वगंधा के सहारे थोड़ा-बहुत प्रदर्शन कर पा रहे हैं।

पटाया और लास वेगास भी देखे हैं, जहां सबकुछ बहुत आसानी से उपलब्ध है, मगर वहां भी यह हल्कापन और छिछोरापन नहीं मिलेगा, जब तक आप जानबूझकर उस रास्ते पर न जाएं।

वहां सेक्स वर्कर पहचान-पत्र के साथ घूमती हैं, मगर किसी की मजाल नहीं कि बिना सहमति के कोई उन्हें छेड़ दे या उन पर अश्लील टिप्पणी करे, जैसी छेड़छाड़ भारत में आमतौर पर महिलाओं के साथ की जाती है।

दरअसल भारत में संस्कृति के नाम पर खजुराहो और कामसूत्र से शुरू हुआ यह खेल मस्तराम से होते हुए भोजपुरी अश्लीलता और बुंदेलखंडी राई नृत्य तक पहुंच गया है। आज यह मुठ्ठी में आ गया है, और संस्कृति के नाम पर ओछापन और भोंडापन अपने चरम पर है।

मलयालम फिल्मों में 1.5 से 2 मिनट की अश्लील क्लिपिंग के लिए सिनेमा थिएटर की खिड़कियां तोड़ देने वाले हम भारतीयों को पता नहीं कि अमेरिका में बाकायदा पोर्न फिल्मों के शो थिएटर और मल्टीप्लेक्स में होते हैं। लोग बड़े पर्दे पर यह सब देखते हैं और चुपचाप घर चले जाते हैं।

वहां के पुरुषों की मर्दानगी भारतीय पुरुषों की तुलना में दोगुनी है, इसके बावजूद कि वहां सबकुछ खुला है। अगर जेब में पैसा है, तो लास वेगास की हाई-प्रोफाइल पार्टियां भी हैं।

मगर वहां यह सब संस्कृति या धर्म के नाम पर नहीं होता। भारत में सबकुछ इन्हीं नामों पर होता है, और 1 मिनट के प्रदर्शन पर मर्द बनने का ढोंग किया जाता है। महिलाओं के साथ बदतमीज़ी होती है, रेप और गैंगरेप होते हैं, उनके जननांगों में शीशा, सरिया और ना जाने क्या-क्या डालकर अपनी मर्दानगी सिद्ध की जाती है।

इसी अधूरी मर्दानगी के बल पर NCRB के 2021 के आंकड़ों के अनुसार भारत में प्रतिदिन औसतन 86 बलात्कार के मामले दर्ज होते हैं। TV9 Hindi ने संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट के आधार पर कहा है कि भारत यौन उत्पीड़न के मामलों में विश्व में पहले स्थान पर है, और इसमें अपंजीकृत मामले शामिल नहीं हैं।

वास्तव में कई रिपोर्ट्स कहती हैं कि शारीरिक दुर्बलता से ग्रसित पुरुष अपनी मर्दाना कमजोरी छिपाने के लिए अपनी पत्नी या पार्टनर पर चीखते-चिल्लाते हैं और घरेलू हिंसा करते हैं।

ऐसे 1 मिनट वाले यौन-कुंठित लोगों की सारी ताकत उनके मुंह में आ जाती है। गर्मी दिमाग में चढ़ जाती है, वे उग्र हो जाते हैं, आक्रामक व्यवहार करते हैं, अनाप-शनाप बोलते हैं, हर वक्त हर जगह चिल्लाते रहते हैं और मुंह व स्वभाव से अपनी छाती ठोक-ठोक कर अपनी मर्दानगी सिद्ध करने का प्रयास करते हैं।

और जहां वास्तव में मर्दानगी सिद्ध करनी होती है, वहां वे बीच में ही शीघ्रपतन अर्थात सीज़फायर कर देते हैं।

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अनिल यादव एक वरिष्ठ पत्रकार हैं जो Anil Yadav Ayodhya के नाम से जाने जाते हैं। अनिल यादव की कलम सच्चाई की गहराई और साहस की ऊंचाई को छूती है। सामाजिक न्याय, राजनीति और ज्वलंत मुद्दों पर पैनी नज़र रखने वाले अनिल की रिपोर्टिंग हर खबर को जीवंत कर देती है। उनके लेख पढ़ने के लिए लगातार OBC Awaaz से जुड़े रहें, और ताज़ा अपडेट के लिए उन्हें एक्स (ट्विटर) पर भी फॉलो करें।

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