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नो सर कल्चर, नो हायरार्की: स्वीडन में भारतीय कर्मचारी ने बताया वहां की कॉर्पोरेट लाइफ का सच

स्वीडन की कॉर्पोरेट संस्कृति में बिना पदानुक्रम और ‘सर कल्चर’ के साथ आरामदेह वर्क-लाइफ बैलेंस है। भारतीय कर्मचारी इसे देखकर प्रेरित हो रहे हैं।

भारत में काम और जिंदगी का संतुलन एक बड़ा मसला है। यहां कई कर्मचारी लंबे घंटे काम करने की वजह से थकान और तनाव महसूस करते हैं। कई बार ऑफिस की काम की संस्कृति इतनी सख्त होती है कि व्यक्ति का निजी जीवन प्रभावित हो जाता है। लेकिन यूरोप जैसे विकसित देशों में ये संतुलन एक आम नियम की तरह है। हाल ही में स्वीडन में काम करने वाले एक भारतीय तकनीशियन ने बताया कि वहां का ऑफिस लाइफ इंडिया से कितना अलग और आरामदेह है।

स्वीडन में ऑफिस का माहौल: बिना सर और बिना पद-क्रम के

इस भारतीय सॉफ्टवेयर डेवलपर ने इंस्टाग्राम पर एक वीडियो शेयर किया, जिसमें उन्होंने बताया कि स्वीडन में लोग आमतौर पर सुबह 8 बजे ऑफिस पहुंच जाते हैं। कुछ ऑफिसों में मुफ्त नाश्ते की भी सुविधा होती है। सबसे खास बात ये है कि ऑफिस में कोई भी अपनी मनपसंद जगह पर बैठ सकता है, चाहे वो CEO हो या नया कर्मचारी। वहां सर कल्चर या पदानुक्रम जैसी कोई कड़क सीमा नहीं है।

उन्होंने कहा, यहां हर कोई बराबर होता है। हमारा CEO भी कभी-कभी मेरे बगल में बैठता है। इस तरह की फ्लैट स्ट्रक्चर भारतीय ऑफिस की सख्त और पदानुक्रम वाली संस्कृति से बहुत अलग है।

काम के बीच में ब्रेक और खेल को भी मिले वक्त

स्वीडन में काम के दौरान कर्मचारियों को खेलने, ब्रेक लेने और कॉफी पीने की छूट होती है। ऑफिस में काम के अलावा रिलैक्स करने के लिए भी समय दिया जाता है। गर्मियों में कई ऑफिस आठ घंटे की जगह सात घंटे काम करते हैं, जिससे कर्मचारियों को ज्यादा फुर्सत मिलती है।

यहां ज्यादातर लोग शाम 4 या 4:30 बजे ऑफिस से निकल जाते हैं ताकि वे अपने परिवार और दोस्तों के साथ वक्त बिता सकें। इस बारे में उन्होंने कहा, आपको जल्दी निकलने के लिए अपने मैनेजर के जाने का इंतजार नहीं करना पड़ता।

वर्क-लाइफ बैलेंस यहाँ सिर्फ शब्द नहीं, असलियत है

उन्होंने वीडियो का अंत इस बात से किया कि यहां वर्क-लाइफ बैलेंस सिर्फ एक शब्द नहीं बल्कि हकीकत है। यह वीडियो सोशल मीडिया पर बहुत तेजी से वायरल हो गया और कई लोगों ने इस पर अपनी प्रतिक्रिया दी।

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एक यूजर ने लिखा, मैं लक्जमबर्ग में भी ऐसी ही संस्कृति का आनंद लेता हूं। मुझे लगता है मैंने सही फैसला लिया इंडिया के ज़हर भरे कॉर्पोरेट कल्चर से बचने का।

दूसरे ने कहा, मैं हेलसिंकी में काम करता था। वहां का वर्क-लाइफ बैलेंस ने मेरी जिंदगी बदल दी। 8 से 4 की शिफ्ट, सभी एक-दूसरे का सम्मान करते हैं। स्कैंडिनेविया कमाल है।

एक मज़ेदार कमेंट में लिखा गया, यह वीडियो सिर्फ भारतीयों को जलाने के लिए बनाया गया है।

भारत में भी वर्क-लाइफ बैलेंस?

कुछ लोगों ने तर्क दिया कि भारत में IT इंडस्ट्री का विकास सस्ते श्रमिकों की वजह से हुआ है। ऐसे में बेहतर वर्क-लाइफ बैलेंस की उम्मीद रखना मुश्किल है।

लेकिन कई लोगों ने कहा कि वे भारत में भी इसी तरह का आरामदायक वर्क कल्चर अनुभव कर रहे हैं। एक यूजर ने लिखा, मेरी कंपनी में वर्क-लाइफ बैलेंस इससे भी बेहतर है। एक अन्य ने कहा, मैं बंगलोर की एक छोटी कंपनी में काम करता हूं, वहां भी ये सब सुविधाएं हैं।

स्वीडन बनाम भारत: दो बिल्कुल अलग दुनिया

स्वीडन में काम का माहौल भारत से बिल्कुल अलग है। यहां किसी भी पद के कर्मचारी को समान सम्मान मिलता है। ऑफिस में दोस्ताना माहौल होता है। काम के घंटे कम होते हैं और छुट्टियों का भी पूरा ध्यान रखा जाता है। वहीं भारत में अधिकतर जगह काम का दबाव और लंबी ड्यूटी होती है, जिससे कर्मचारियों का तनाव बढ़ता है।

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रीतु कुमारी OBC Awaaz की एक उत्साही लेखिका हैं, जिन्होंने अपनी पत्रकारिता की पढ़ाई बीजेएमसी (BJMC), JIMS इंजीनियरिंग मैनेजमेंट एंड टेक्निकल कैंपस ग्रेटर नोएडा से पूरी की है। वे समसामयिक समाचारों पर आधारित कहानियाँ और रिपोर्ट लिखने में विशेष रुचि रखती हैं। सामाजिक मुद्दों को आम लोगों की आवाज़ बनाकर प्रस्तुत करना उनका उद्देश्य है। लेखन के अलावा रीतु को फोटोग्राफी का शौक है, और वे एक अच्छी फोटोग्राफर बनने का सपना भी देखती है। रीतु अपने कैमरे के ज़रिए समाज के अनदेखे पहलुओं को उजागर करना चाहती है।

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