मध्य पूर्व में ईरान और इजरायल के बीच छिड़ी ताजा जंग ने पूरी दुनिया की चिंता बढ़ा दी है। 13 जून 2025 को इजरायल ने ईरान के कई सैन्य और परमाणु ठिकानों पर बड़ा हमला किया, जिसके बाद दोनों देशों के बीच मिसाइल और ड्रोन हमलों का सिलसिला शुरू हो गया। आखिर यह टकराव क्यों हुआ? दोनों देशों के रिश्ते इतने कड़वे कैसे हुए? किसे कितना नुकसान हुआ? दुनिया की प्रतिक्रिया क्या रही और आगे क्या हो सकता है? आइए, विस्तार से समझते हैं।
ईरान-इजरायल के रिश्तों का इतिहास: दोस्ती से दुश्मनी तक
ईरान और इजरायल के बीच संबंध कभी बहुत अच्छे थे। 1948 में इजरायल के बनने के बाद ईरान उसे मान्यता देने वाला दूसरा मुस्लिम देश था। दोनों देशों के बीच राजनयिक, व्यापारिक और सैन्य रिश्ते थे। लेकिन 1979 में ईरान में इस्लामिक क्रांति के बाद सब बदल गया। कट्टरपंथी शासन आने के बाद ईरान ने इजरायल को फिलिस्तीनी जमीन पर कब्जा करने वाला और छोटा शैतान कहना शुरू किया। अमेरिका को बड़ा शैतान कहा गया और पश्चिमी देशों के खिलाफ सख्त रुख अपनाया गया। तब से दोनों देशों के बीच कोई औपचारिक संबंध नहीं हैं। ईरान फिलिस्तीन के हमास और लेबनान के हिजबुल्ला जैसे संगठनों का समर्थन करता है, जो इजरायल के खिलाफ हैं। इजरायल को सबसे ज्यादा चिंता ईरान के परमाणु कार्यक्रम को लेकर है। इजरायल को डर है कि ईरान गुपचुप तरीके से परमाणु हथियार बना सकता है, जबकि ईरान कहता है कि उसका परमाणु कार्यक्रम शांतिपूर्ण है।
ताजा हमलों की वजह क्या है?
पिछले कुछ सालों में ईरान और इजरायल के बीच तनाव लगातार बढ़ा है। 2023 में गाजा युद्ध के बाद ईरान ने हमास और हिजबुल्ला को खुला समर्थन दिया। इजरायल ने भी कई बार ईरान के सैन्य और परमाणु वैज्ञानिकों को निशाना बनाया। जून 2025 में अंतरराष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी (IAEA) ने ईरान के खिलाफ सख्त रुख अपनाया और उसकी जांच में सहयोग न करने पर निंदा प्रस्ताव पास किया। इसके अगले दिन, 13 जून को इजरायल ने ऑपरेशन राइजिंग लायन के तहत ईरान के नतांज, फोर्दो, बुशहर जैसे परमाणु ठिकानों और कई सैन्य अड्डों पर मिसाइल और ड्रोन हमले किए। इजरायल के प्रधानमंत्री नेतन्याहू ने इसे परमाणु खतरे को खत्म करने की कोशिश बताया और ईरान की जनता से तानाशाही शासन के खिलाफ खड़े होने का आह्वान किया।
कितना हुआ नुकसान? दोनों ओर तबाही
इजरायल के हमलों में ईरान के कई अहम ठिकानों पर भारी नुकसान हुआ। नतांज यूरेनियम संवर्धन केंद्र, फोर्दो, बुशहर परमाणु संयंत्र, शाहरान फ्यूल डिपो और दक्षिण पार्स गैस फील्ड पर हमले हुए। कई जगह आग लग गई, संचालन रुक गया। ईरान के मुताबिक, इन हमलों में 80 से ज्यादा लोगों की मौत और 300 से अधिक घायल हुए, जिनमें महिलाएं और बच्चे भी हैं। नौ परमाणु वैज्ञानिक और कई वरिष्ठ सैन्य अधिकारी मारे गए। जवाब में ईरान ने 100 से ज्यादा ड्रोन और 150 से अधिक मिसाइलें इजरायल पर दागीं, जिनमें से अधिकतर को इजरायल के आयरन डोम सिस्टम ने नष्ट कर दिया। फिर भी इजरायल में 13 लोगों की मौत और 34 घायल हुए हैं। दोनों देशों के बीच अब तक का यह सबसे बड़ा सीधा टकराव है।
दुनिया की प्रतिक्रिया: चिंता, कूटनीति और चेतावनी
इस टकराव पर पूरी दुनिया की नजर है। अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने कहा कि अमेरिका का इन हमलों में कोई हाथ नहीं है, लेकिन ईरान को परमाणु समझौता करना चाहिए, वरना कुछ नहीं बचेगा। सऊदी अरब, चीन और यूरोपीय संघ ने इजरायल के हमलों की निंदा की और क्षेत्रीय शांति की अपील की। भारत ने दोनों देशों से संयम बरतने और तनाव न बढ़ाने की सलाह दी। ब्रिटेन ने अतिरिक्त सैन्य विमान भेजे हैं, जबकि चीन ने सभी पक्षों से तनाव कम करने का आह्वान किया है। संयुक्त राष्ट्र ने बार-बार संयम बरतने की अपील की है, लेकिन फिलहाल कोई ठोस समाधान नहीं दिख रहा।
आगे क्या? तेल महंगा, सप्लाई चेन पर असर, युद्ध का खतरा
इस टकराव का तात्कालिक असर तेल की कीमतों में उछाल और रेड सी में शिपिंग पर पड़ा है। दोनों देशों की सैन्य ताकत की तुलना में इजरायल के पास ज्यादा आधुनिक अमेरिकी तकनीक है, लेकिन ईरान की मिसाइल क्षमता और क्षेत्रीय पकड़ भी कम नहीं है। ईरान के घरेलू हालात खराब हैं; आर्थिक संकट, जनता में असंतोष और अब सैन्य नेतृत्व की हानि। दोनों देशों के लिए बिना कोई जीत दिखाए पीछे हटना मुश्किल है। अगर तनाव और बढ़ा, तो पूरा मध्य पूर्व युद्ध की चपेट में आ सकता है, जिससे वैश्विक बाजार, तेल आपूर्ति और क्षेत्रीय स्थिरता पर बड़ा खतरा मंडराएगा। फिलहाल, दोनों देशों के तेवर आक्रामक हैं और दुनिया की नजरें इसी पर टिकी हैं कि क्या कोई कूटनीतिक समाधान निकलेगा या जंग और बढ़ेगी।
ईरान-इजरायल के बीच यह ताजा संघर्ष दशकों पुरानी दुश्मनी, परमाणु हथियारों की चिंता और क्षेत्रीय राजनीति का नतीजा है। दोनों देशों की जिद और बाहरी शक्तियों की भूमिका ने हालात को बेहद संवेदनशील बना दिया है। आने वाले दिनों में मध्य पूर्व की शांति और वैश्विक अर्थव्यवस्था दोनों के लिए यह टकराव निर्णायक साबित हो सकता है।