जेडीयू के कार्यकारी अध्यक्ष और राज्यसभा सांसद संजय झा की दोनों बेटियों को एक ही दिन सुप्रीम कोर्ट में Group A पैनल काउंसल नियुक्त किया जाना इन दिनों सुर्खियों में है। खास बात ये है कि ये जिम्मेदारी आमतौर पर ऐसे वकीलों को दी जाती है जिनके पास कम से कम 10 साल का अनुभव और मजबूत कानूनी बैकग्राउंड हो। मगर संजय झा की बेटियों की नियुक्ति में न तो अनुभव की शर्त दिखती है, न ही कोई पारदर्शी प्रक्रिया सामने आई है।

क्या होता है Group A पैनल काउंसल?
ये वो वकील होते हैं जो केंद्र सरकार की तरफ से सुप्रीम कोर्ट में बड़े और अहम मामलों की पैरवी करते हैं। चयन कड़ा होता है और पात्रता में अनुभव सबसे अहम होता है।
अब सवाल ये है:
- क्या दोनों सुपुत्रियाँ इस योग्य थीं?
- क्या उनकी नियुक्ति सिर्फ योग्यता के आधार पर हुई?
जेडीयू की असली तस्वीर या दोहरी राजनीति?
जेडीयू अक्सर खुद को सामाजिक न्याय की राजनीति करने वाली पार्टी कहती है। लेकिन क्या कभी किसी दलित, पिछड़े या अति-पिछड़े वर्ग के कार्यकर्ता या नेता के बेटे-बेटियों को ये मौक़ा मिला है? वो नौजवान जो वर्षों मेहनत करते हैं, उन्हें तो एक छोटी सरकारी नौकरी भी आसानी से नहीं मिलती, और यहां सीधे सुप्रीम कोर्ट का टिकट!
परिवारवाद पर दूसरों को घेरने वाले, खुद क्यों खामोश?
ये वही जेडीयू है जो RJD को परिवारवाद की दुकान बताती नहीं थकती। तेजस्वी, तेजप्रताप और मीसा के नाम पर तंज कसने वाली पार्टी अब खुद सवालों के घेरे में है। फर्क सिर्फ इतना है कि जब अपने घर का मामला हो, तो न कोई स्पष्टीकरण आता है और न कोई जवाबदेही।
क्या यही है सुशासन?
इस मामले ने साफ कर दिया है कि सत्ता से जुड़े परिवारों के लिए रास्ते हमेशा खुले रहते हैं, चाहे अनुभव हो या न हो। और आम मेहनतकश युवाओं के लिए वही पुरानी लड़ाई, परीक्षा, रिजल्ट, इंटरव्यू, और फिर भी असुरक्षा।
अब क्या जेडीयू जवाब देगा?
अगर जेडीयू वाकई पारदर्शिता और सामाजिक न्याय की बात करता है, तो उसे सामने आकर बताना चाहिए कि संजय झा की बेटियों को ये नियुक्ति किस प्रक्रिया और किस योग्यता के आधार पर मिली? वरना ये माना जाएगा कि परिवारवाद का खेल हर पार्टी में एक जैसा चलता है, बस भाषण और मंच बदलते हैं।