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बंगाल की नई OBC सूची पर कोर्ट की रोक: कानूनी प्रक्रिया में खामी

कलकत्ता हाईकोर्ट ने बंगाल सरकार की नई OBC सूची पर 31 जुलाई तक रोक लगाई। सूची में 80 मुस्लिम उपजातियां थीं। कोर्ट ने प्रक्रिया में खामी बताई, मामला सुप्रीम कोर्ट में लंबित है।

कलकत्ता हाईकोर्ट ने पश्चिम बंगाल सरकार की नई ओबीसी सूची पर 31 जुलाई तक रोक लगा दी है। ये सूची 3 जून को जारी की गई थी, जिसमें 140 उप-समूह थे, 80 मुस्लिम और 60 गैर-मुस्लिम। कोर्ट ने उस सरकारी फैसले पर भी रोक लगा दी, जिसके तहत पुरानी 113 जातियों वाली सूची हटाकर ये नई लिस्ट लागू की गई थी। पहले ही मई 2024 में हाईकोर्ट ने पुरानी लिस्ट को रद्द कर दिया था।

अधिकारियों की लापरवाही पर कोर्ट सख्त

जस्टिस तापब्रत चक्रवर्ती और जस्टिस राजशेखर मंथा की बेंच ने सिर्फ नई सूची ही नहीं, बल्कि ओबीसी सर्टिफिकेट के लिए आए आवेदनों को भी रोक दिया। कोर्ट ने पाया कि सरकार ने 2012 के कानून को छोड़कर 1993 के पुराने कानून के तहत लिस्ट तैयार की, जो नियमों के खिलाफ है।

जस्टिस मंथा ने कहा कि सरकार ने शुरुआत में तो 2012 वाले कानून के तहत ड्राफ्ट नोटिफिकेशन निकाला, लेकिन बाद में जरूरी बदलाव नहीं किए और फिर पुराने कानून की ओर लौट गई। ये तरीका ठीक नहीं था।

सुप्रीम कोर्ट में मामला पेंडिंग, फिर भी जल्दबाज़ी

जस्टिस चक्रवर्ती ने सरकार से पूछा कि जब ये केस पहले से ही सुप्रीम कोर्ट में लंबित है, तो इतनी जल्दी क्यों की गई? उन्होंने साफ कहा कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले से पहले राज्य सरकार को कोई कदम नहीं उठाना चाहिए था। अब इस केस की अगली सुनवाई जुलाई में होगी।

सरकार सुप्रीम कोर्ट जाएगी

राज्य सरकार अब इस रोक के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अपील करेगी। एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि ये सिर्फ एक अंतरिम आदेश है और सरकार के पास सुप्रीम कोर्ट में इसे चुनौती देने के पूरे आधार हैं। मार्च की सुनवाई में कोर्ट को बताया गया था कि राज्य में नया सामाजिक-आर्थिक सर्वे चल रहा है।

ममता बनर्जी ने दी थी सफाई

नई लिस्ट में मुस्लिम उप-समूहों की संख्या 77 से बढ़ाकर 80 और गैर-मुस्लिम उप-समूहों की संख्या 36 से बढ़ाकर 60 कर दी गई थी। मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने कहा था कि ये लिस्ट धर्म के आधार पर नहीं, बल्कि सामाजिक और आर्थिक पिछड़ेपन के आधार पर बनाई गई है। उन्होंने कहा था, हमने देखा कि कौन पिछड़ा है, न कि उसका धर्म क्या है।

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नौकरी और एडमिशन पर असर

अगर ये लिस्ट लागू नहीं होती, तो राज्य में फिलहाल जो 17% ओबीसी आरक्षण है, उसमें कटौती हो सकती है। इसका असर सरकारी नौकरियों और एजुकेशनल इंस्टीट्यूट्स में एडमिशन पर पड़ेगा।

याचिकाकर्ता की दलील

वरिष्ठ वकील एस. श्रीराम, जो याचिकाकर्ता की ओर से कोर्ट में पेश हुए, उन्होंने कहा कि 2012 के कानून और संविधान के मुताबिक, ओबीसी आरक्षण से जुड़ा कोई भी फैसला लेने का हक सिर्फ राज्य विधानमंडल को है, न कि कार्यपालिका को।

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शिवम कुमार एक समर्पित और अनुभवी समाचार लेखक हैं, जो वर्तमान में OBCAWAAZ.COM के लिए कार्यरत हैं। पत्रकारिता के क्षेत्र में गहरी रुचि रखने वाले शिवम निष्पक्ष, तथ्यात्मक और शोध-आधारित समाचार प्रस्तुत करने के लिए जाने जाते हैं। उनका प्रमुख फोकस सामाजिक मुद्दों, राजनीति, शिक्षा, और जनहित से जुड़ी खबरों पर रहता है। अपने विश्लेषणात्मक दृष्टिकोण और सटीक लेखन शैली के माध्यम से वे पाठकों तक विश्वसनीय और प्रभावशाली समाचार पहुँचाने का कार्य करते हैं। शिवम कुमार का उद्देश्य निष्पक्ष और जिम्मेदार पत्रकारिता के जरिए समाज में जागरूकता फैलाना और लोगों को सटीक जानकारी प्रदान करना है।

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