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Axiom-4, 40 साल बाद भारत का मानव अंतरिक्ष में वापसी

Axiom-4 मिशन में गए शुभांशु शुक्ला ने अंतरिक्ष से कहा, "मैं अकेला नहीं हूं, तिरंगा साथ है।" यह भारत की मानव अंतरिक्ष यात्रा की नई शुरुआत है।

Axiom-4 मिशन के दौरान ग्रुप कैप्टन शुभांशु शुक्ला का पहला संदेश अंतरिक्ष से ही रोमांच से भरा था। उन्होंने हिंदी में देशवासियों को संबोधित करते हुए कहा, What a ride नमस्कार मेरे प्यारे देशवासियो। What a ride हम 40 साल बाद फिर अंतरिक्ष में लौटे हैं और यह सफर शानदार रहा। अभी हम पृथ्वी की कक्षा में लगभग 7.5 किमी/सेकंड की रफ्तार से घूम रहे हैं। यह संदेश न केवल उनकी व्यक्तिगत खुशी को दर्शाता है, बल्कि भारत के अंतरिक्ष क्षेत्र में एक नई शुरुआत का प्रतीक भी है। 40 साल बाद भारत का अंतरिक्ष में पुनः प्रवेश देश के लिए गर्व का विषय है और यह युवा पीढ़ी के लिए प्रेरणा का स्रोत भी है।

मैं अकेला नहीं हूं, तिरंगा है साथ, गर्व और प्रेरणा का संदेश

शुभांशु शुक्ला ने अपने संदेश में कहा, मेरे कंधे पर तिरंगा है, जो मुझे बताता है कि मैं अकेला नहीं हूं, मैं आप सभी के साथ हूं। यह सिर्फ मेरा ISS की ओर सफर नहीं, बल्कि भारत के मानव अंतरिक्ष कार्यक्रम की शुरुआत है। मैं चाहता हूं कि सभी भारतीय इस यात्रा का हिस्सा बनें। सभी का सीना गर्व से चौड़ा होना चाहिए। आइए, भारत की मानव अंतरिक्ष यात्रा साथ शुरू करें। जय हिंद, जय भारत। इस भावुक अपील में देशभक्ति की गहराई और राष्ट्रीय एकता की भावना झलकती है। यह संदेश न केवल शुभांशु की व्यक्तिगत भावना है, बल्कि पूरे देश के लिए एक प्रेरणा भी है कि वे इस ऐतिहासिक मिशन का हिस्सा बनें और देश की प्रगति में योगदान दें।

मिशन की तकनीकी यात्रा, Grace से अंतरिक्ष स्टेशन तक

Axiom-4 मिशन की Dragon Capsule, जिसे Grace नाम दिया गया है, ISS (इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन) की ओर बढ़ रही है। अगले 24-28 घंटों में यह कैप्सूल कई सटीक इंजन बर्न्स के जरिए अपनी कक्षा को एडजस्ट करेगा ताकि वह ISS के रास्ते में आ सके। डॉकिंग के दौरान पहले सॉफ्ट कैप्चर (मैग्नेट्स से धीरे-धीरे जोड़ना) और फिर ‘हार्ड कैप्चर’ (मैकेनिकल लॉकिंग) की प्रक्रिया पूरी होगी। इसके बाद ग्राउंड इंजीनियर लीक चेक करेंगे, और सब कुछ ठीक रहने पर ही क्रू स्टेशन में प्रवेश करेगा। इस पूरी प्रक्रिया में अत्याधुनिक तकनीक का इस्तेमाल होता है, जिसमें GPS, रडार, लेजर आधारित सेंसर और कैमरे शामिल हैं, जो कैप्सूल को ISS के डॉकिंग पोर्ट के साथ सटीकता से जोड़ने में मदद करते हैं।

स्वास्थ्य और अनुसंधान में योगदान

मिशन के दौरान शुभांशु शुक्ला और उनकी टीम कई वैज्ञानिक प्रयोग करेंगे, जिनमें बायोमेडिकल स्टडीज़ शामिल हैं, जैसे कि डायबिटीज़ जैसी बीमारियों के इलाज के लिए संभावित शोध। इसके अलावा, मिशन में अन्य वैज्ञानिक और तकनीकी अध्ययन भी शामिल हैं, जो अंतरिक्ष विज्ञान को आगे बढ़ाने में मदद करेंगे। इन प्रयोगों से मानव स्वास्थ्य, जीवन विज्ञान और पृथ्वी के पर्यावरण को लेकर नई जानकारियां मिल सकती हैं। यह मिशन न केवल भारत के लिए गर्व का विषय है, बल्कि वैश्विक वैज्ञानिक समुदाय के लिए भी महत्वपूर्ण है।

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रीतु कुमारी OBC Awaaz की एक उत्साही लेखिका हैं, जिन्होंने अपनी पत्रकारिता की पढ़ाई बीजेएमसी (BJMC), JIMS इंजीनियरिंग मैनेजमेंट एंड टेक्निकल कैंपस ग्रेटर नोएडा से पूरी की है। वे समसामयिक समाचारों पर आधारित कहानियाँ और रिपोर्ट लिखने में विशेष रुचि रखती हैं। सामाजिक मुद्दों को आम लोगों की आवाज़ बनाकर प्रस्तुत करना उनका उद्देश्य है। लेखन के अलावा रीतु को फोटोग्राफी का शौक है, और वे एक अच्छी फोटोग्राफर बनने का सपना भी देखती है। रीतु अपने कैमरे के ज़रिए समाज के अनदेखे पहलुओं को उजागर करना चाहती है।

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