बिहार में 2025 के विधानसभा चुनाव नजदीक आते ही नीतीश कुमार की सरकार ने एक ऐसा फैसला लिया है, जो उनके सुशासन के दावों की पोल खोल रहा है। ग्रामीण इलाकों के मुखिया और सरपंच को आत्मरक्षा के नाम पर हथियार लाइसेंस बांटने की योजना को हरी झंडी दे दी गई है। सरकार इसे पंचायत प्रतिनिधियों की सुरक्षा और कानून-व्यवस्था को बेहतर करने का कदम बता रही है, मगर हकीकत में यह बिहार में बिगड़ती व्यवस्था और नीतीश सरकार की नाकामी का जीता-जागता सबूत है।
नीतीश सरकार की नाकामी का नमूना
नीतीश कुमार, जो सालों से सुशासन बाबू बनने का ढोंग रचते आए हैं, उनका यह फैसला उनकी सरकार की नाकामी को उजागर करता है। अगर बिहार में कानून-व्यवस्था दुरुस्त होती, तो क्या गांवों के मुखिया और सरपंच को बंदूक थामने की जरूरत पड़ती? यह फैसला साफ बताता है कि नीतीश सरकार ग्रामीण इलाकों में सुरक्षा देने में पूरी तरह फेल हो चुकी है। जनप्रतिनिधियों को हथियार थमाकर सरकार अपनी जिम्मेदारी से पल्ला झाड़ रही है। यह कदम नीतीश के सुशासन के नारे को खोखला साबित करता है और उनकी सरकार की विफलता को दुनिया के सामने लाता है।
गुंडाराज का खुला सबूत
बिहार में अपराध और गुंडागर्दी कोई नई बात नहीं, लेकिन नीतीश सरकार का यह निर्णय इसे और हवा देने वाला है। गांवों में आपराधिक घटनाएं और नेताओं पर हमले बढ़ रहे हैं, और यह सब नीतीश सरकार की नाक के नीचे हो रहा है। जब चुने हुए प्रतिनिधियों को अपनी जान बचाने के लिए बंदूक की जरूरत पड़ रही है, तो यह साफ है कि ब बीहार में गुंडाराज अपने चरम पर है। यह फैसला न सिर्फ कानून-व्यवस्था की बदहाली को दिखाता है, बल्कि आम लोगों में डर और असुरक्षा का माहौल भी पैदा करेगा। नीतीश सरकार की इस नाकामी ने बिहार की जनता को निराश और असहाय कर दिया है।
सुशासन बाबू का बंदूक वाला ड्रामा
नीतीश कुमार, जिन्होंने बिहार को सुशासन का तमगा दिलाने की बातें कीं, अब बंदूक बांटकर सुशासन का तमाशा बना रहे हैं। सुशासन बाबू का यह नया अवतार जनता को हैरान कर रहा है। हथियार लाइसेंस बांटना कोई समाधान नहीं, बल्कि यह गांवों में हिंसा और हथियारों के गलत इस्तेमाल को बढ़ावा दे सकता है। सवाल यह है कि क्या सुशासन का मतलब अब बंदूक बांटना हो गया है? नीतीश जी, आपके सुशासन का असली चेहरा अब सामने आ चुका है। यह कदम उनके सुशासन के दावों को मजाक में बदल रहा है और बिहार की जनता को ठगा हुआ महसूस करा रहा है।
नियमों का दिखावा, हकीकत संदिग्ध
सरकार दावा करती है कि हथियार लाइसेंस देने में सख्त नियमों का पालन होगा। पुलिस सत्यापन होगा और सिर्फ सही लोगों को लाइसेंस मिलेगा। लेकिन बिहार में भ्रष्टाचार और प्रशासनिक लापरवाही का लंबा इतिहास देखते हुए, इस दावे पर भरोसा करना मुश्किल है। जिला प्रशासन को दिशा-निर्देश तो दिए गए हैं, लेकिन क्या यह प्रक्रिया पारदर्शी और निष्पक्ष होगी? नीतीश सरकार की कार्यशैली को देखते हुए जनता को इस पर गहरा संदेह है।
आलोचनाओं का सैलाब और जनता का गुस्सा
इस योजना की घोषणा के बाद से ही नीतीश सरकार की चारों ओर आलोचना हो रही है। विपक्ष और सामाजिक संगठनों ने इसे बिहार में गुंडाराज को बढ़ावा देने वाला कदम करार दिया है। विशेषज्ञों का कहना है कि सरकार को हथियार बांटने के बजाय पुलिस बल को मजबूत करना चाहिए, ग्रामीण इलाकों में चौकसी बढ़ानी चाहिए और अपराधियों पर सख्त कार्रवाई करनी चाहिए। जनता में इस फैसले को लेकर गुस्सा है, क्योंकि यह उनकी सुरक्षा की अनदेखी का प्रतीक है। लोग सवाल उठा रहे हैं कि आखिर नीतीश सरकार उनकी जान-माल की रक्षा करने में क्यों नाकाम है?
नीतीश पर सवालों की बौछार
नीतीश कुमार की सरकार इस फैसले को ग्रामीण नेताओं को सशक्त बनाने का कदम बता रही है, लेकिन सवाल यह है कि क्या हथियार बांटना ही एकमात्र रास्ता था? क्या सरकार पुलिस और प्रशासनिक व्यवस्था को दुरुस्त करने में नाकाम रही है? यह योजना जल्द शुरू होने वाली है, लेकिन इसके दूरगामी परिणाम बिहार की राजनीति और सामाजिक ढांचे पर क्या असर डालेंगे, यह देखना बाकी है।
नीतीश कुमार का यह फैसला न केवल उनकी सुशासन की छवि को धूमिल कर रहा है, बल्कि बिहार को गुंडाराज और अराजकता की ओर धकेलने का खतरा पैदा कर रहा है। जनता अब जवाब मांग रही है कि आखिर सुशासन का असली चेहरा क्या है? क्या नीतीश सरकार के पास बिहार की जनता के लिए कोई ठोस जवाब है, या यह सिर्फ एक और खोखला वादा है?