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ईरान को अमेरिका का 30 अरब डॉलर ऑफर, लेकिन बड़ी शर्त

बमबारी के बाद अमेरिका ने ईरान को 30 अरब डॉलर की डील का प्रस्ताव दिया, लेकिन 'नो एनरिचमेंट' की शर्त पर ईरान झुकने को तैयार नहीं।

ईरान और अमेरिका के बीच बीते दो हफ्तों में सैन्य तनाव चरम पर था, अमेरिका ने ईरान के फोर्डो समेत तीन प्रमुख परमाणु ठिकानों पर बंकर-बस्टर बम गिराए, जिससे ईरान के न्यूक्लियर इंफ्रास्ट्रक्चर को भारी नुकसान हुआ। लेकिन अब कूटनीतिक मोर्चे पर एक बड़ा उलटफेर देखने को मिल रहा है। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के प्रशासन ने पर्दे के पीछे ईरान को एक बेहद आकर्षक ऑफर दिया है, अगर ईरान यूरेनियम संवर्धन (enrichment) पूरी तरह छोड़ दे, तो उसे 20-30 अरब डॉलर तक की आर्थिक मदद और निवेश दिया जाएगा, जिससे वह सिर्फ सिविल न्यूक्लियर एनर्जी प्रोग्राम चला सके। यह रकम सीधे अमेरिका से नहीं, बल्कि अरब सहयोगी देशों के जरिए जुटाई जाएगी। साथ ही, ईरान को विदेशों में फंसी 6 अरब डॉलर की संपत्ति तक पहुंच, कुछ प्रतिबंधों में ढील और सिविल न्यूक्लियर टेक्नोलॉजी का समर्थन भी मिल सकता है।

नो एनरिचमेंट, अमेरिका की सख्त लाल रेखा

ट्रंप प्रशासन के प्रस्ताव की सबसे अहम और गैर-मोलभाव वाली शर्त है, ईरान किसी भी कीमत पर यूरेनियम संवर्धन नहीं करेगा। यानी ईरान को अपने परमाणु कार्यक्रम के लिए यूरेनियम विदेश से आयात करना होगा, खुद उसे संवर्धित करने की इजाजत नहीं होगी। अमेरिका का मानना है कि इसी शर्त से ईरान के परमाणु हथियार हासिल करने की संभावना पर रोक लगाई जा सकती है। इसके अलावा, फोर्डो जैसे संवेदनशील ठिकानों को हटाकर वहां नॉन-एनरिचमेंट सिविल प्रोजेक्ट शुरू करने का प्रस्ताव भी है। व्हाइट हाउस में ट्रंप के विशेष दूत स्टीव विटकॉफ और खाड़ी देशों के नेताओं के बीच हुई गुप्त बैठक में इन शर्तों को अंतिम रूप देने की कोशिश की गई।

फिलहाल नई बातचीत से इनकार, लेकिन दबाव में है तेहरान

जहां ट्रंप प्रशासन अगले हफ्ते ओमान में ईरान से बातचीत की संभावना जता रहा है, वहीं ईरान के विदेश मंत्री अब्बास अरागची ने सार्वजनिक रूप से किसी भी नई वार्ता या समझौते से इनकार किया है। अरागची का कहना है कि ईरान अपनी शर्तों पर ही आगे बढ़ेगा, खासकर यूरेनियम संवर्धन और मिसाइल कार्यक्रम पर कोई समझौता नहीं करेगा। हालांकि, पश्चिमी कूटनीतिक हलकों में माना जा रहा है कि ईरान के भीतर भी अब व्यावहारिक और सख्तपंथी धड़ों में मतभेद हैं, कुछ नेता अमेरिका से डील के पक्ष में हैं ताकि आर्थिक संकट से राहत मिल सके। दूसरी ओर, ईरान के सर्वोच्च नेता अयातुल्ला खामेनेई ने हालिया बयान में अमेरिका के दबाव को अपमानजनक बताया और कहा कि ईरान कभी आत्मसमर्पण नहीं करेगा।

बम से दबाव, डील से लुभावन, परमाणु हथियार की रेस रोकने की कोशिश

ट्रंप प्रशासन की रणनीति साफ है, पहले सैन्य दबाव और फिर आर्थिक व राजनयिक प्रलोभन देकर ईरान को परमाणु हथियार कार्यक्रम से दूर रखना। हाल के बमबारी हमलों ने ईरान के न्यूक्लियर इंफ्रास्ट्रक्चर को नुकसान पहुंचाया, लेकिन अब अमेरिका कूटनीतिक रास्ते से ईरान को फिर से वार्ता की मेज पर लाना चाहता है। अरब सहयोगी देशों की मदद से ईरान को आर्थिक राहत देने और सिविल न्यूक्लियर प्रोग्राम का विकल्प देने की यह पेशकश इसी रणनीति का हिस्सा है। हालांकि, अमेरिका की नो एनरिचमेंट शर्त को लेकर डेडलॉक बना हुआ है और ईरान फिलहाल सार्वजनिक रूप से बातचीत के लिए तैयार नहीं दिख रहा है।

ईरान-अमेरिका संबंधों में यह नया मोड़ है, जहां कुछ दिन पहले तक बम गिर रहे थे, अब अरबों डॉलर की डील और कूटनीति की बात हो रही है। ट्रंप प्रशासन ईरान को आर्थिक राहत और सिविल न्यूक्लियर प्रोग्राम का लालच देकर उसके परमाणु हथियार कार्यक्रम को रोकना चाहता है, लेकिन नो एनरिचमेंट की शर्त पर ईरान झुकने को तैयार नहीं। आने वाले दिनों में यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या ईरान आर्थिक दबाव और आंतरिक संकट के चलते बातचीत के लिए राजी होता है या फिर टकराव की राह पर ही चलता है।

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रीतु कुमारी OBC Awaaz की एक उत्साही लेखिका हैं, जिन्होंने अपनी पत्रकारिता की पढ़ाई बीजेएमसी (BJMC), JIMS इंजीनियरिंग मैनेजमेंट एंड टेक्निकल कैंपस ग्रेटर नोएडा से पूरी की है। वे समसामयिक समाचारों पर आधारित कहानियाँ और रिपोर्ट लिखने में विशेष रुचि रखती हैं। सामाजिक मुद्दों को आम लोगों की आवाज़ बनाकर प्रस्तुत करना उनका उद्देश्य है। लेखन के अलावा रीतु को फोटोग्राफी का शौक है, और वे एक अच्छी फोटोग्राफर बनने का सपना भी देखती है। रीतु अपने कैमरे के ज़रिए समाज के अनदेखे पहलुओं को उजागर करना चाहती है।

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