15 सितंबर 2020 को संयुक्त अरब अमीरात (UAE), बहरीन और इज़राइल के बीच ऐतिहासिक शांति समझौते पर अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की मध्यस्थता में हस्ताक्षर किए गए थे।
इस समझौते का नाम पैगंबर इब्राहीम अलैहिस्सलाम के नाम पर अब्राहम समझौता (Abraham Accords) रखा गया।
कहने का मतलब यह है कि यहूदी देश इज़राइल, मुस्लिम देश बहरीन और UAE तथा मध्यस्थता कर रहे ईसाई देश अमेरिका को इब्राहीम नाम पर सहमति थी।
जानते हैं क्यों? क्योंकि जिन्हें ईसाई और यहूदी अब्राहम और मुसलमान हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम कहते हैं, वे तीनों धर्मों में स्वीकार्य हैं और तीनों धर्मों के सबसे महत्वपूर्ण, सम्मानित धार्मिक महापुरुष हैं। इसी कारण एकीकृत रूप में तीनों धर्मों को अब्राहम धर्म भी कहा जाता है।
हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम का जन्म ईसा पूर्व 1800–2000 के बीच माना जाता है, अर्थात आज से करीब 4200 वर्ष पहले। तब न हज़रत ईसा मसीह का जन्म हुआ था (जो ईसाई धर्म के सबसे बड़े महापुरुष हैं), न हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम का (जो यहूदी धर्म के सबसे बड़े महापुरुष हैं), और न ही हज़रत मुहम्मद का जन्म हुआ था (जो इस्लाम धर्म के सबसे बड़े और अंतिम पैगंबर हैं)।
इस्लाम और कुरआन में यहूदी धर्म व उनके सभी महापुरुषों, ईसाई धर्म व उनके सभी महापुरुषों को न केवल मान्यता दी गई, बल्कि उन्हें इस्लामी पैगंबर के रूप में प्रमाणित भी किया गया।
यहां तक कि हज़रत मरियम का नाम कुरआन में 34 बार, हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम का नाम 136 बार, हज़रत ईसा अलैहिस्सलाम का नाम 25 बार, हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम का नाम 69 बार और हज़रत मुहम्मद का नाम कुरआन में केवल 4 बार आया है।
इसीलिए गैर-इस्लामिक तमाम ऐतिहासिक किताबों में भी हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम को तीनों धर्मों का पितृ पुरुष कहा गया है। हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम को विश्व की कुल जनसंख्या (820 करोड़) में से 455 करोड़ लोग अपना धार्मिक पुरुष मानते हैं।
कहने का अर्थ यह है कि हज़रत मुहम्मद और कुरआन के बहुत पहले से ही हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम को अब्राहम नाम से ईसाई और यहूदी धर्मों में मान्यता प्राप्त थी।
मगर हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम की दी हुई कुर्बानी को केवल इस्लाम ने अपनाया। हज और उसकी प्रक्रिया में हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम की कुर्बानी से जुड़ी सभी घटनाओं को शामिल किया गया और मुसलमानों पर हज फ़र्ज़ किया गया। हज के दौरान उन ऐतिहासिक स्थानों पर जाकर प्रतीकात्मक रूप से वही क्रियाएं करना अनिवार्य अरकान में शामिल किया गया, जहां-जहां हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम की कुर्बानी से संबंधित घटनाएं घटीं।
ध्यान दीजिए कि नबी हज़रत मुहम्मद ने अपने नाम या जीवन की किसी घटना को फ़र्ज़ करार नहीं दिया, और न ही अल्लाह ने उन्हें ऐसा करने का हुक्म दिया।
ईद उल अजहा के दिन कुर्बानी भी हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम द्वारा अल्लाह के हुक्म से अपने बेटे की कुर्बानी की याद में ही की जाती है, जिसे यहूदी और ईसाई भूल चुके हैं।
इस्लाम सभी धर्मों को मान्यता देता है, इसीलिए किसी भी धर्म या धार्मिक महापुरुष के विरुद्ध टिप्पणी या गाली-गलौज को सख्ती से मना किया गया है।
ल कुम दी न कुम वलीय दीन अल-कुरआन (5:3), सूरह अल-माइदा
अर्थ:
तुम्हारे लिए तुम्हारा धर्म और मेरे लिए मेरा धर्म।
अर्थात बिना किसी दूसरे धर्म की आलोचना किए, सभी को अपना धर्म मानने का अधिकार है।
ईद उल अजहा की सभी को मुबारकबाद।