अब अकबर निशाने पर है… वह अकबर जिसे मुग़लिया सल्तनत का सबसे सहिष्णु बादशाह कहा जाता था। जो नमाज़ पढ़ने की बजाय कृष्ण जन्माष्टमी मनाता था, जिसने इस्लाम को चोट पहुंचाने के लिए इस्लाम के समानांतर एक नया धर्म दीन-ए-इलाही बनाया और अपने शासन में चलाया।
जिसके दौर को हिंदी साहित्य में भक्ति काल कहा जाता है, अर्थात सनातन धर्म का स्वर्णिम काल, जिसके राज में तुलसीदास ने मस्जिद में बैठकर “रामचरितमानस” लिखी और अकबर के दरबार से उन्हें मदद दी जाती रही। जिसके काल में अयोध्या, मथुरा बसीं; कृष्ण पर दोहा लिखने वाले सूरदास, मीराबाई, रहीम, रसखान हुए; जिसके शासन काल में कबीर हुए। जिस अकबर के शासनकाल में वल्लभाचार्य द्वारा स्थापित पुष्टिमार्गी संप्रदाय के तहत अष्टछाप कवियों का उदय हुआ। इनमें सूरदास के अलावा कुंभनदास, परमानंददास, कृष्णदास, चतुर्भुजदास, नंददास, गोविंदस्वामी, और छीतस्वामी शामिल थे। ये सभी कवि अकबर के शासनकाल में कृष्ण भक्ति में लीन थे और ब्रजभाषा में काव्य रचना करते थे।
वह जलालुद्दीन अकबर अब हिंदू-कुश हो गया।
जिसकी पत्नियों में 6 पत्नियां 1. आमेर के राजा भारमल की बेटी जोधाबाई (मरियम-उज़-ज़मानी), 2. कछवाहा राजपूत राजकुमारी रानी हरखा बाई, 3. जयपुर लाज घराने की एक और राजकुमारी रानी मनबाई, 4. बीकानेर की राजकुमारी जोध बाई, 5. मारवाड़ की राजकुमारी रानी मानवती बाई, 6. जैसलमेर की राजकुमारी रानी कौरवती बाई इत्यादि हिंदू थीं और जीवनभर हिंदू ही रहीं, और अकबर ने उन्हें उनका धर्म बदलने के लिए कभी नहीं कहा।
अकबर ने इलाहाबाद और आगरा में बनवाए किलों में अपनी हिंदू पत्नियों के लिए मंदिर बनवाए, मगर इन किलों में अपने लिए मस्जिद नहीं बनवाई।
मगर अब अपने ही दामाद, मुग़लिया शहंशाह अकबर को ही इनके द्वारा हिंदू-कुश घोषित किया जा रहा है…
इसीलिए कहता हूं कि सबका नंबर आएगा। अश्फाकुल्लाह खान भी नहीं बचेंगे, ए.पी.जे. अब्दुल कलाम भी नहीं बचेंगे, वीर अब्दुल हमीद भी नहीं बचेंगे, ब्रिगेडियर उस्मान भी नहीं बचेंगे क्योंकि यह एक एहसान फरामोश कौम है, जो अपने राजनीतिक हित और सत्ता में बने रहने के लिए सांप्रदायिक तनाव के लिए सब कुछ बदल देना चाहती है।
यह चाहते हैं कि देश में सांप्रदायिक नफ़रत फैलती रहे, दंगा-फसाद होता रहे, जिससे इनका राजनीतिक फूल खिलता रहे…
बताइए, दो राज्यों के बीच युद्ध का कारण इतिहास में केवल राजा द्वारा अपने राज्य के विस्तार और धन-संपत्ति को प्राप्त करना रहा है। क्या किसी हिंदू राजा ने किसी अपराध पर हिंदुओं को दंड नहीं दिया? उन्हें इसलिए माफ कर दिया गया कि वे हिंदू थे?
क्या किसी हिंदू राजा ने अपना खजाना भरने के लिए अपने ही धर्म के हिंदुओं पर कर नहीं लगाया? सबने लगाया। तो क्या वे सभी “हिंदू-कुश” थे?
मगर किसी बादशाह द्वारा किसी के अपराध पर दिया गया दंड हिंदुओं पर अत्याचार बताकर ये लफंगे हिंदू-मुस्लिम, सनातन-इस्लाम की लड़ाई के रूप में बच्चों को पढ़ाना चाहते हैं…
अगर दो राज्यों के बीच की लड़ाई दो धर्मों के बीच की लड़ाई है, तो महाभारत में कौन से दो धर्म थे? रामायण में तो एक महाशिव भक्त और एक विष्णु के अवतार के बीच युद्ध था, उसमें कौन सा इस्लाम था?
खैर, महाभारत-रामायण छोड़िए, भारतीय इतिहास में हिंदू राजाओं के बीच सैकड़ों युद्ध हुए हैं। बल्कि मुसलमानों से पहले इस देश में हिंदू राजा ही आपस में लड़ते थे, जिनमें दोनों तरफ से हिंदू सैनिक मारे जाते थे। राज्य जीतने पर विजय की औपचारिक घोषणा पराजित राजा के कुलदेवी या कुलदेवता का मंदिर तोड़कर की जाती थी… मेरे पास सैकड़ों की सूची है…
ऐसे युद्धों में सबसे भीषण युद्ध हुआ लगभग 261 ईसा पूर्व, उड़ीसा में कलिंगा नदी के किनारे मौर्य सम्राट अशोक महान और कलिंग राज्य के बीच, जिसे कलिंग युद्ध कहा जाता है। तब इसमें लाखों हिंदू लोग मारे गए। यह युद्ध मौर्य साम्राज्य के विस्तार और कलिंग पर नियंत्रण के लिए हुआ था, इसमें धर्म कहां था?
इसके बाद सबसे चर्चित युद्ध 8वीं-9वीं सदी का कन्नौज त्रिदलीय युद्ध था, जो पाल वंश के धर्मपाल, प्रतिहार वंश के वत्सराज और नागभट्ट के बीच हुआ। यह किस धर्म और धर्म वालों पर आक्रमण था? इसमें धर्म कहां था?
राष्ट्रकूट वंश के ध्रुव और गोविंद के बीच लड़ा गया, और दोनों हिंदू राजवंश क्षेत्रीय प्रभुत्व के लिए आपस में भिड़े। इसमें धर्म कहां था?
10वीं-11वीं सदी में चालुक्य-चोल युद्ध वेंगी क्षेत्र और दक्षिण भारत में वर्चस्व के लिए लड़ा गया, और चोल राजा राजेंद्र चोल और चालुक्य राजा सोमेश्वर के बीच कई युद्ध हुए, इसमें धर्म कहां था?
12वीं सदी में गहड़वाल-चौहान युद्ध, गहड़वाल वंश के जयचंद गहड़वाल और चौहान वंश के पृथ्वीराज चौहान के बीच दिल्ली के नियंत्रण को लेकर हुए, इसमें धर्म कहां था?
18वीं सदी में मराठा-जाट युद्ध हुए और मराठा साम्राज्य के पेशवा तथा जाट राजा सूरजमल के बीच कई युद्ध हुए, इसमें धर्म कहां था?
उदाहरण हजारों हैं, यहां तो हिंदू राजा ही हिंदू राजा से लड़ रहा था। फिर कौन “हिंदू-कुश” हुआ और किस धर्म पर आक्रमण हुआ? इसमें धर्म कहां था?
अब आइए उस इतिहास पर, जिसे छुपा दिया गया, काश्मीर में राजा हरिसिंह के शासनकाल में मुसलमानों का सामूहिक नरसंहार…
13 जुलाई 1931 की तारीख, काश्मीर के महाराजा हरिसिंह के डोगरा शासन के खिलाफ हजारों कश्मीरियों की भीड़ के साथ प्रदर्शन कर रहे उनके नेता, कश्मीरी युवक अब्दुल कादिर को श्रीनगर में गिरफ्तार कर लिया गया।
अब्दुल कादिर की गिरफ्तारी के बाद काश्मीर में महाराजा हरिसिंह के खिलाफ आंदोलन और तेज़ हो गया, और 10,000 कश्मीरी लोगों ने श्रीनगर की उस सेंट्रल जेल को घेर लिया, जिसमें अब्दुल कादिर कैद थे।
जम्मू-कश्मीर के तत्कालीन डोगरा शासक महाराजा हरिसिंह ने स्पष्ट रूप से यह आदेश दिया कि उन्हें गोलियों से उड़ा दिया जाए और इन कश्मीरी प्रदर्शनकारियों पर गोली चला दी गई।
22 कश्मीरी मुसलमान मारे गए… बताइए महाराजा हरिसिंह क्या थे? “मुस्लिम-कुश”? नहीं। बताइए, इसमें धर्म कहां था? कहीं नहीं है…
राजा या बादशाह का धर्म होता है अपने सिंहासन को बचाना, और अपने राज्य को बचाने के लिए हर कोई ऐसा करता रहा है। बाबर ने भी किया, औरंगज़ेब ने भी किया, मगर इनके खिलाफ श्रीनगर की तरह कभी हिंदुओं ने विद्रोह नहीं किया… यह भी इतिहास है…
दरअसल जिनमें इतिहास बनाने की मर्दानगी नहीं होती, वे नाम और इतिहास बदलने को ही बड़ा काम समझते हैं, और यही आज हो रहा है, अपनी विचारधारा को सत्ता के सहारे इतिहास में घुसेड़ो और जो सच्चा इतिहास है, उसे मिटा दो।
दरअसल, जिनमें औलाद पैदा करने की शक्ति नहीं होती, वे दूसरे के बच्चों का नाम बदलते रहते हैं, उसे अपना बनाने के प्रयास में लगे रहते हैं…
यही कारण है कि हर साल 13 जुलाई को महाराजा हरिसिंह के डोगरा शासन के खिलाफ संघर्षरत 22 लोगों की शहादत को कश्मीर में “शोहदा” के रूप में मनाया जाता है। इस बार नहीं मनाने दिया गया, जिससे इसका भी इतिहास मिट जाए…
जम्मू-कश्मीर के चुने हुए मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला को इसी 13 जुलाई को उनके घर में नज़रबंद कर दिया गया, इसके बावजूद कि इन्हीं शोहदाओं ने कश्मीर की स्वतंत्रता की नींव रखी और इसी कत्लेआम के बाद “कश्मीर के शेर” कहे जाने वाले “शेख अब्दुल्ला” का उदय हुआ, जिन्होंने भारत में कश्मीर के विलय में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
ध्यान दीजिए कि कश्मीर की स्वतंत्रता के पक्षधर हिंदू महाराजा हरिसिंह ने यदि 1947 में सबकी तरह कश्मीर का भारत में विलय कर लिया होता, तो आज भारत की सबसे बड़ी समस्या होती ही नहीं और भारत के पास पूरा कश्मीर होता।
उस हिंदू महाराजा हरिसिंह को भारत में कश्मीर के विलय को मजबूर करने वाले शेख अब्दुल्ला ही थे, जिन्होंने महाराजा हरिसिंह को समझाया कि भारत का धर्मनिरपेक्ष और लोकतांत्रिक ढांचा कश्मीर के लिए बेहतर होगा, खासकर कश्मीरियत की भावना और सामाजिक-आर्थिक सुधारों के लिए।
उनकी लोकप्रियता और जन समर्थन ने महाराजा हरिसिंह पर दबाव बनाया और 26 अक्टूबर 1947 को हिंदू महाराजा हरिसिंह ने इंस्ट्रूमेंट ऑफ एक्सेशन पर हस्ताक्षर कर दिए, जिसके तहत जम्मू-कश्मीर भारत का हिस्सा बना। शेख अब्दुल्ला ने इस प्रक्रिया में मध्यस्थ की भूमिका निभाई और भारत सरकार के साथ समन्वय स्थापित किया।
यह उनके भी नहीं हैं… एहसान फरामोश।