अमेरिका ने 2 अप्रैल 2025 से भारत पर रेसिप्रोकल टैरिफ लागू कर दिया है। यह निर्णय अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने 5 मार्च को अमेरिकी संसद के जॉइंट सेशन में अपने रिकॉर्ड 1 घंटे 44 मिनट लंबे भाषण के दौरान घोषित किया था। इस कदम का सीधा असर भारतीय निर्यात पर पड़ सकता है, जिससे देश को सालाना 61,000 करोड़ रुपये तक का नुकसान होने की संभावना जताई जा रही है।
रेसिप्रोकल टैरिफ: क्या है और इसका क्या असर होगा?
रेसिप्रोकल टैरिफ का अर्थ होता है ‘जैसे को तैसा’ नीति। यदि भारत अमेरिकी उत्पादों पर 100% टैरिफ लगाता है, तो अमेरिका भी भारतीय उत्पादों पर समान दर से टैरिफ लगाएगा। इससे भारतीय निर्यात महंगा हो सकता है, जिससे अमेरिकी बाजार में प्रतिस्पर्धा करना मुश्किल हो जाएगा और भारतीय कंपनियों की बिक्री पर सीधा असर पड़ेगा।
अमेरिका ने यह कदम क्यों उठाया?
ट्रम्प प्रशासन के अनुसार, यह नीति अमेरिकी अर्थव्यवस्था को सशक्त करने, घरेलू विनिर्माण को बढ़ावा देने और व्यापार घाटे को कम करने के लिए लागू की गई है। अमेरिका को चीन, मैक्सिको और कनाडा के साथ बड़े पैमाने पर व्यापार घाटा हो रहा है, जिसे संतुलित करने के लिए ट्रम्प सरकार ने इन देशों पर पहले ही अतिरिक्त टैरिफ लगा दिया है। 4 मार्च 2025 से मेक्सिको और कनाडा पर 25% और चीन पर 10% अतिरिक्त टैरिफ लागू किया गया था। अब भारत पर भी यही नीति लागू कर दी गई है।
भारत पर पड़ने वाले संभावित प्रभाव
- भारतीय उत्पादों का निर्यात महंगा होगा: भारत अमेरिका को फार्मास्यूटिकल्स, रत्न और आभूषण, पेट्रोकेमिकल्स, टेक्सटाइल्स और ऑटोमोबाइल जैसे उत्पादों का निर्यात करता है। यदि अमेरिका इन उत्पादों पर टैरिफ बढ़ाता है, तो भारतीय निर्यातकों को लागत बढ़ने की समस्या का सामना करना पड़ेगा।
- निर्यात में भारी गिरावट की आशंका: विश्लेषकों का अनुमान है कि रेसिप्रोकल टैरिफ से भारत के निर्यात में 11-12% तक की गिरावट आ सकती है, जिससे देश की विदेशी मुद्रा आय पर असर पड़ेगा।
- व्यापार अधिशेष (ट्रेड सरप्लस) में कमी: वर्तमान में भारत को अमेरिका के साथ व्यापार में अधिशेष (सकारात्मक व्यापार संतुलन) का लाभ मिलता है, लेकिन टैरिफ बढ़ने से यह लाभ कम हो सकता है।
- भारतीय बाजार में अमेरिकी उत्पाद सस्ते हो सकते हैं: यदि भारत अमेरिकी टैरिफ से बचने के लिए अपने आयात शुल्क को कम करता है, तो अमेरिकी उत्पाद भारत में सस्ते हो सकते हैं, जिससे घरेलू उद्योगों को नुकसान होने की संभावना है।
- रुपये पर दबाव बढ़ेगा: बढ़ते आयात के कारण डॉलर की मांग बढ़ेगी, जिससे रुपये की विनिमय दर प्रभावित हो सकती है और भारत का आयात बिल बढ़ सकता है।
- प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) को बढ़ावा: यदि भारत टैरिफ कम नहीं करता, तो अमेरिकी कंपनियां भारतीय बाजार में प्रवेश करने के लिए यहां पर विनिर्माण इकाइयां स्थापित कर सकती हैं, जिससे प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) को बढ़ावा मिल सकता है।
किन सेक्टर्स पर सबसे ज्यादा असर पड़ेगा?
भारत से अमेरिका को निर्यात किए जाने वाले प्रमुख सेक्टर्स में फार्मास्यूटिकल्स, ऑटोमोबाइल, रत्न-आभूषण, और कृषि उत्पाद शामिल हैं। यदि अमेरिका इन क्षेत्रों पर रेसिप्रोकल टैरिफ लागू करता है, तो इन उद्योगों को सबसे अधिक नुकसान उठाना पड़ सकता है।
विशेष रूप से, कृषि और खाद्य उत्पादों पर इसका सबसे गहरा प्रभाव पड़ सकता है क्योंकि भारत इन उत्पादों पर औसतन 39% टैरिफ लगाता है, जबकि अमेरिका का टैरिफ मात्र 5% है। यदि अमेरिका इसी अनुपात में टैरिफ बढ़ाता है, तो भारतीय कृषि उत्पादों की प्रतिस्पर्धा अमेरिकी बाजार में घट जाएगी।
क्या अमेरिकी उत्पाद सस्ते होंगे?
नोमुरा की एक रिपोर्ट के अनुसार, अमेरिका के रेसिप्रोकल टैरिफ से बचने के लिए भारत 30 से अधिक वस्तुओं पर आयात शुल्क में कमी कर सकता है। यदि ऐसा होता है, तो अमेरिकी इलेक्ट्रॉनिक्स, कपड़े, लक्ज़री मोटरसाइकिल और अन्य उत्पाद भारतीय बाजार में सस्ते हो सकते हैं। इसके अलावा, भारत को अमेरिका से रक्षा और ऊर्जा उत्पादों की खरीद भी बढ़ानी पड़ सकती है।
भारत सरकार ने पहले ही बजट में इलेक्ट्रॉनिक्स, टेक्सटाइल्स और हाई-एंड मोटरसाइकिल जैसे कई उत्पादों पर आयात शुल्क घटा दिया था। अब, व्यापार संबंधों को संतुलित करने के लिए लक्ज़री वाहनों, सोलर सेल्स और केमिकल्स पर भी टैरिफ में और कटौती की जा सकती है।
टैरिफ बढ़ाने की तारीख 2 अप्रैल ही क्यों चुनी गई?
डोनाल्ड ट्रम्प ने इस फैसले की घोषणा पहले 1 अप्रैल 2025 को करने का विचार किया था, लेकिन चूंकि यह ‘अप्रैल फूल डे’ था, इसलिए उन्होंने इसे 2 अप्रैल से लागू करने का निर्णय लिया, ताकि इसे मजाक न समझा जाए। ट्रम्प ने स्पष्ट किया कि वे टैरिफ नीति को लेकर पूरी तरह गंभीर हैं और इसे व्यापार रणनीति का अहम हिस्सा मानते हैं।
अमेरिका द्वारा लगाए गए रेसिप्रोकल टैरिफ से भारत की निर्यात अर्थव्यवस्था पर नकारात्मक प्रभाव पड़ने की संभावना है। यदि भारत अमेरिकी सामानों पर टैरिफ कम करता है, तो घरेलू उद्योगों को प्रतिस्पर्धा का सामना करना पड़ेगा, और यदि टैरिफ कम नहीं किया जाता, तो भारतीय निर्यात महंगा हो जाएगा, जिससे अमेरिकी बाजार में उसकी स्थिति कमजोर हो सकती है। अब यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि भारत सरकार इस चुनौती से कैसे निपटती है और भारतीय उद्योगों को कैसे समर्थन देती है।