अमेरिकी टैरिफ से मचा वैश्विक तूफान अब सिर्फ एक आर्थिक निर्णय नहीं रहा, बल्कि यह एक अंतरराष्ट्रीय राजनीतिक और व्यापारिक मुद्दा बन चुका है। राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा घोषित नए आयात शुल्क ने विश्व की प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं में हलचल मचा दी है। इस निर्णय के बाद 50 से अधिक देशों ने अमेरिका से संपर्क साधा है ताकि बातचीत के ज़रिए व्यापारिक संतुलन को बहाल किया जा सके।
ट्रंप प्रशासन की नई नीति के अनुसार, कुछ आयातित वस्तुओं पर भारी शुल्क लगाया गया है, जिससे उन देशों की अर्थव्यवस्था प्रभावित हो रही है जो अमेरिका में निर्यात पर निर्भर हैं। इस मुद्दे ने वैश्विक स्तर पर चिंता का माहौल खड़ा कर दिया है।
वैश्विक स्तर पर प्रतिक्रियाएं तेज़
इस सप्ताह इजरायल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू वाइट हाउस पहुंचने वाले हैं, जहां वे राष्ट्रपति ट्रंप के साथ इन टैरिफ पर बातचीत करेंगे। जापान, जर्मनी, दक्षिण कोरिया और भारत जैसे देश भी इस नीति को लेकर अमेरिका से सीधी चर्चा की तैयारी में हैं।
ताइवान के राष्ट्रपति लाई चिंग-ते ने सार्वजनिक रूप से कहा है कि वे अमेरिका के साथ शून्य टैरिफ के आधार पर बातचीत करने के लिए तैयार हैं। उन्होंने यह भी संकेत दिया कि ताइवान की कंपनियां अमेरिका में अपने निवेश को और मज़बूती देंगी।
आर्थिक दबाव के बावजूद ट्रंप का सख्त रुख
Air Force One में पत्रकारों से बातचीत करते हुए राष्ट्रपति ट्रंप ने स्पष्ट किया कि उन्हें अमेरिकी शेयर बाजार में आई गिरावट की कोई चिंता नहीं है। उन्होंने कहा, “मैं नहीं चाहता कि कोई परेशानी हो, लेकिन कभी-कभी किसी चीज़ को सुधारने के लिए कड़वी दवा जरूरी होती है।”
ट्रंप ने यह भी दावा किया कि यूरोप और एशिया के कई नेताओं ने उन्हें कॉल करके टैरिफ कम करने की अपील की है, लेकिन उन्होंने दो टूक जवाब दिया कि जब तक अमेरिका को हर साल पर्याप्त आर्थिक लाभ नहीं मिलेगा, तब तक बातचीत संभव नहीं है।
🇨🇳 चीन का करारा जवाब
चीन ने अमेरिकी टैरिफ के जवाब में अपने आयात शुल्क बढ़ाने की घोषणा कर दी है। इससे व्यापार युद्ध और मंदी की आशंका और भी तेज़ हो गई है। विश्लेषकों का मानना है कि अगर यह टकराव आगे बढ़ा तो यह वैश्विक व्यापारिक ढांचे को गहरा नुकसान पहुंचा सकता है।
क्या ये रणनीति है या दबाव की राजनीति?
रविवार को ट्रंप के प्रमुख आर्थिक सलाहकारों ने टीवी पर कहा कि यह टैरिफ नीति अमेरिका को फिर से वैश्विक व्यापार में अग्रणी बनाने के लिए बनाई गई है। यह सिर्फ एक व्यापारिक कदम नहीं है, बल्कि यह अमेरिका की “अमेरिका फर्स्ट” नीति का अहम हिस्सा है।
विशेषज्ञों की राय
आर्थिक विशेषज्ञों का कहना है कि इस समय वैश्विक निवेशक भ्रम की स्थिति में हैं। उन्हें समझ नहीं आ रहा कि यह नीति अस्थायी है या दीर्घकालिक रणनीति। लेकिन एक बात स्पष्ट है—”अमेरिकी टैरिफ से मचा वैश्विक तूफान” अब केवल कागज़ों में नहीं है, बल्कि इसका असर ज़मीनी स्तर पर दिखने लगा है।