पश्चिम बंगाल शिक्षक भर्ती घोटाला मामले में सुप्रीम कोर्ट ने शिक्षा व्यवस्था को बचाए रखने के लिए कुछ अहम रियायतें दी हैं। 3 अप्रैल 2025 को कोर्ट ने फैसला सुनाते हुए 2016 में हुई 25,000 से अधिक शिक्षकों और स्कूल कर्मचारियों की नियुक्तियों को रद्द कर दिया था। इन भर्तियों में बड़े पैमाने पर अनियमितताएं और भ्रष्टाचार सामने आया था, जिसके चलते न्यायालय को यह कठोर कदम उठाना पड़ा।
मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना की अगुवाई वाली पीठ ने यह स्पष्ट किया कि ग्रुप C और D के कर्मचारियों को कोई राहत नहीं दी जाएगी। हालांकि, 9वीं से 12वीं तक के शिक्षकों को दिसंबर 2025 तक काम करने की अनुमति दी गई है, जिससे छात्रों की पढ़ाई बाधित न हो।
सुप्रीम कोर्ट ने राज्य सरकार को आदेश दिया है कि वह 31 मई 2025 तक नई शिक्षक भर्ती के लिए विज्ञापन जारी करे और यह सुनिश्चित करे कि 31 दिसंबर 2025 तक नियुक्तियों की प्रक्रिया पूरी हो जाए। कोर्ट ने यह भी कहा कि यदि ऐसा नहीं हुआ तो वह इस मामले में सख्त रुख अपनाएगा।
2016 में पश्चिम बंगाल स्कूल सर्विस कमीशन द्वारा आयोजित इस परीक्षा में 23 लाख से अधिक अभ्यर्थियों ने भाग लिया था। इनमें से लगभग 25,000 को नियुक्ति दी गई थी, लेकिन जांच में सामने आया कि यह पूरी प्रक्रिया धोखाधड़ी और सिफारिशों से प्रभावित थी। सुप्रीम कोर्ट ने इसे ‘न्याय और संविधान के खिलाफ’ बताया।
राज्य सरकार ने कोर्ट से निवेदन किया था कि अचानक शिक्षकों की सेवाएं समाप्त करने से छात्रों की पढ़ाई पर बुरा असर पड़ेगा, विशेषकर माध्यमिक और उच्च माध्यमिक स्तर पर। इसीलिए कोर्ट ने कुछ शिक्षकों को सीमित समय के लिए बने रहने की अनुमति दी है, लेकिन साथ ही भर्ती प्रक्रिया को समय पर पूरा करने की जिम्मेदारी भी राज्य पर डाली है।
इस फैसले का राजनीतिक असर भी देखा जा रहा है। विपक्षी दलों ने राज्य सरकार पर शिक्षा प्रणाली में भ्रष्टाचार फैलाने का आरोप लगाया है और मांग की है कि दोषियों पर सख्त कार्रवाई हो।
इस निर्णय से स्पष्ट है कि अदालत छात्रों की शिक्षा के हितों को सर्वोपरि मानती है, लेकिन भ्रष्टाचार के प्रति ज़ीरो टॉलरेंस की नीति पर भी अडिग है। अब यह देखना अहम होगा कि क्या सरकार समय पर नई भर्ती प्रक्रिया पूरी कर पाएगी, ताकि लाखों छात्रों का भविष्य सुरक्षित रह सके।