बिहार स्कूल एग्जामिनेशन बोर्ड (BSEB) हर साल इंटर और मैट्रिक परीक्षाओं के टॉपर्स की घोषणा से पहले उनका वेरिफिकेशन करता है। यह प्रक्रिया केवल औपचारिकता नहीं है, बल्कि परीक्षा प्रणाली में पारदर्शिता और ईमानदारी बनाए रखने के लिए एक ज़रूरी कदम है।
2016 से क्यों अनिवार्य हुआ बिहार बोर्ड टॉपर वेरिफिकेशन
बिहार बोर्ड ने टॉपर वेरिफिकेशन की यह प्रक्रिया 2016 में शुरू की, जब एक आर्ट्स टॉपर एक साधारण सवाल का सही जवाब नहीं दे पाई थी। उसने राजनीति विज्ञान को “प्रोडिकल साइंस” बताया, जिससे पूरे देश में बिहार बोर्ड की साख पर सवाल उठे। इस घटना के बाद बोर्ड ने टॉपर्स की योग्यता को परखने के लिए वेरिफिकेशन को अनिवार्य कर दिया।
बिहार बोर्ड टॉपर वेरिफिकेशन प्रक्रिया कैसे होती है?
बोर्ड तीन मुख्य चरणों में टॉपर्स का वेरिफिकेशन करता है:
- उत्तर पुस्तिका की दोबारा जांच
टॉप करने वाले छात्रों की कॉपियों को दोबारा जांचा जाता है ताकि मूल्यांकन में कोई गलती न रह जाए। - हैंडराइटिंग मिलान
छात्रों को बोर्ड कार्यालय बुलाया जाता है और उनसे कुछ उत्तर लिखवाए जाते हैं। उनकी हैंडराइटिंग को मूल उत्तर पुस्तिका से मिलाया जाता है। - मौखिक साक्षात्कार
विशेषज्ञों की एक टीम छात्रों से उनके विषयों पर सवाल पूछती है ताकि उनके ज्ञान और आत्मविश्वास का आकलन हो सके।
इस प्रक्रिया का उद्देश्य क्या है?
बिहार बोर्ड टॉपर वेरिफिकेशन सिर्फ परीक्षा परिणामों की शुद्धता की पुष्टि करने तक सीमित नहीं है। इसका असली मकसद है— योग्यता को पहचान देना, मेहनती छात्रों को सही स्थान दिलाना और बोर्ड की विश्वसनीयता बनाए रखना।
निष्कर्ष: ईमानदारी की ओर एक मजबूत कदम
बोर्ड अब सिर्फ अंकों के आधार पर नहीं, बल्कि छात्र की संपूर्ण योग्यता के आधार पर टॉपर्स को मान्यता देता है। बिहार बोर्ड टॉपर वेरिफिकेशन अब एक औपचारिक प्रक्रिया नहीं, बल्कि परीक्षा प्रणाली की साख को बनाए रखने का एक ज़िम्मेदार पहल है।