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बिहार में दलित महिलाओं के साथ पुलिस का अत्याचार: निरंकुश नीतीश सरकार का घिनौना चेहरा

सारण जिले के दिघवारा में बिहार पुलिस ने दलित महिलाओं के साथ अमानवीय और तानाशाही व्यवहार किया, जिसमें उन्हें हाजत में बंद करके रातभर पीटा गया, जातिसूचक गालियाँ दी गईं और अश्लील बातें कहीं गईं। इसके बावजूद बिहार सरकार की ओर से कोई ठोस कार्रवाई नहीं की गई।


सारण जिले के दिघवारा में बिहार पुलिस के कर्मियों द्वारा दलित महिलाओं के साथ किए गए अत्याचार ने राज्य की कानून-व्यवस्था पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। यहां पुलिस कर्मियों ने तानाशाही रवैया अपनाते हुए महिलाओं के साथ अमानवीय और अपमानजनक व्यवहार किया। हाजत में बंद कर इन महिलाओं को रातभर बुरी तरह पीटा गया, उन्हें जातिसूचक गालियाँ दी गईं, अश्लील बातें कहीं गईं, और यहां तक कि जान से मारने की धमकियाँ भी दी गईं। यह सब कुछ होते हुए भी बिहार सरकार और नीतीश कुमार की सरकार की ओर से कोई ठोस कार्रवाई नहीं की गई, जो दर्शाता है कि प्रशासनिक तंत्र में गंभीर विफलता और अराजकता का साम्राज्य है।

जब रक्षक बन जाएं भक्षक: आम नागरिक की सुरक्षा पर गहरा सवाल
जब वह लोग, जिनसे नागरिकों की सुरक्षा की उम्मीद होती है, स्वयं अत्याचार करने लगें, तो आम नागरिक कहां जाएं? खासकर कमजोर वर्ग की महिलाएं जिनके लिए सुरक्षा और न्याय की सबसे ज्यादा आवश्यकता होती है, उनका क्या होगा? यह स्थिति एक गहरी चिंता का कारण बनती है क्योंकि अब इन महिलाओं को न तो प्रशासन से मदद मिल रही है, न ही उन्हें अपने अधिकारों की रक्षा के लिए कोई सहारा मिल रहा है।

3. नीतीश सरकार की चुप्पी: पुलिस अत्याचार के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं
यह घटना इस बात को उजागर करती है कि जब सरकार के नेतृत्व में मानसिक संतुलन बिगड़ जाए तो प्रशासन में तानाशाही और निरंकुश आचरण बढ़ने लगते हैं। बिहार सरकार के मुखिया नीतीश कुमार की चुप्पी इस बात को साबित करती है कि प्रशासन के शीर्ष पर बैठे लोग संवेदनशीलता और जिम्मेदारी की भावना खो चुके हैं। जब कानून और व्यवस्था की जिम्मेदारी संभालने वाले लोगों का मानसिक संतुलन बिगड़ जाता है, तो समाज में अत्याचार और शोषण के माहौल का बनना स्वाभाविक हो जाता है।

महिला प्रकोष्ठ का संघर्ष: पीड़ित महिलाओं के न्याय के लिए राष्ट्रीय जनता दल का कदम
राष्ट्रीय जनता दल (राजद) महिला प्रकोष्ठ की कार्यकर्ताओं ने इस घिनौने कृत्य के खिलाफ आवाज उठाते हुए पीड़ित महिलाओं से मुलाकात की। उन्होंने महिलाओं के साथ हुए अमानवीय व्यवहार को मीडिया के सामने रखा और न्याय दिलवाने के लिए संघर्ष करने का संकल्प लिया। यह कदम यह स्पष्ट करता है कि जब तक सरकार और प्रशासन इस मुद्दे पर कार्रवाई नहीं करते, तब तक महिलाएं और सामाजिक संगठन मिलकर इस संघर्ष को जारी रखेंगे, ताकि दोषियों को सजा दिलवाई जा सके और महिलाओं को न्याय मिल सके।

न्याय की उम्मीद: महिलाएं और सामाजिक संगठन मिलकर दोषियों को सजा दिलाने के लिए संघर्ष करेंगे
यह घटना हम सभी से यह सवाल करती है कि जब रक्षक ही भक्षक बन जाए तो आम नागरिक कहां जाएं? कमजोर वर्ग की महिलाओं की सुरक्षा सुनिश्चित करने की जिम्मेदारी सरकार और प्रशासन की है, और जब वे इस जिम्मेदारी से मुँह मोड़ते हैं, तो नागरिकों को संघर्ष और विरोध का रास्ता अपनाना पड़ता है।

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