बिहार विधानसभा में तेजस्वी यादव ने एक बार फिर नीतीश कुमार सरकार पर तीखा हमला बोला। उन्होंने कहा, “चंद्रबाबू नायडू NDA की छाती पर चढ़कर अपने राज्य के लिए 2 लाख करोड़ रुपये ले गए, लेकिन हमारे मुख्यमंत्री भाजपा के चरणों में गिरने से फुर्सत नहीं पा रहे। दूसरे राज्यों से पटना आए निवेशकों से मिलने के लिए भी वे अपने आवास से बाहर नहीं निकलते। पिछले 20 वर्षों में NDA के इसी रवैये ने बिहार की औद्योगिक स्थिति को जीरो कर दिया है!”
क्या चंद्रबाबू नायडू ने सच में 2 लाख करोड़ का पैकेज लिया?
आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू अपनी आक्रामक राजनीति के लिए जाने जाते हैं। केंद्र में जब उनकी पार्टी TDP (तेलुगू देशम पार्टी) की भागीदारी थी, तब उन्होंने विशेष राज्य का दर्जा पाने और आर्थिक पैकेज हासिल करने के लिए दबाव बनाया। इसके परिणामस्वरूप, केंद्र सरकार ने आंध्र प्रदेश को 2 लाख करोड़ रुपये के विभिन्न फंड, योजनाएं और निवेशों के रूप में समर्थन दिया।
नायडू की इस रणनीति की तुलना में बिहार में स्थिति एकदम विपरीत रही। बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार, जो दो दशकों से NDA के साथ सत्ता में बने हुए हैं, कभी भी केंद्र से उसी मजबूती के साथ अपने राज्य के लिए आर्थिक पैकेज मांगते नहीं दिखे।
बिहार की औद्योगिक स्थिति: ठहराव या ठगी?
बिहार एक समय औद्योगिक हब हुआ करता था, लेकिन आज यह निवेशकों के लिए कोई आकर्षक गंतव्य नहीं है। तेजस्वी यादव का यह तंज कि “नीतीश कुमार निवेशकों से मिलने के लिए अपने आवास से बाहर नहीं निकलते,” काफी हद तक सही प्रतीत होता है। हाल ही में कई बड़े निवेशक बिहार आए, लेकिन उनमें से ज्यादातर का सरकार के उच्च स्तर पर कोई ठोस संवाद नहीं हुआ।
इसके विपरीत, अन्य राज्य निवेश को आकर्षित करने के लिए न केवल नीतियों में सुधार कर रहे हैं बल्कि मुख्यमंत्री खुद उद्योगपतियों और निवेशकों से व्यक्तिगत रूप से मिलकर उनके हितों को सुनिश्चित कर रहे हैं।
क्या बिहार को विशेष पैकेज नहीं मिला?
बिहार को भी विशेष पैकेज की जरूरत थी और आज भी है। 2015 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बिहार को 1.65 लाख करोड़ रुपये के विशेष पैकेज की घोषणा की थी। लेकिन इस राशि का अधिकांश हिस्सा उन योजनाओं में समाहित था, जो पहले से ही बिहार के लिए निर्धारित थीं। इसके चलते यह वास्तविक आर्थिक मदद की बजाय सिर्फ एक पुनःपैकेजिंग बनकर रह गई।
तेजस्वी यादव के बयान का आधार यही है कि बिहार को अब तक ऐसा कोई स्वतंत्र आर्थिक पैकेज नहीं मिला, जो राज्य की औद्योगिक स्थिति को वास्तविक रूप से बदल सके।
20 सालों की NDA सरकार और ‘जीरो’ औद्योगिक विकास
तेजस्वी यादव के अनुसार, “20 सालों से NDA के इसी रवैये से बिहार की औद्योगिक स्थिति जीरो है!”
अगर आंकड़ों पर गौर करें तो बिहार में औद्योगिक निवेश की दर राष्ट्रीय औसत से काफी कम है।
- बिहार में 2023-24 के दौरान 5,642.57 करोड़ रुपये के निवेश प्रस्ताव आए, जबकि गुजरात, महाराष्ट्र और कर्नाटक जैसे राज्यों में यह आंकड़ा 50,000 करोड़ रुपये से अधिक रहा।
- बिहार के उद्योग मंत्रालय के अनुसार, राज्य में पिछले दो वर्षों में 2,312 नई औद्योगिक इकाइयां स्थापित हुईं, जिससे 70,000 नौकरियां पैदा हुईं, लेकिन यह संख्या भी एक बड़े राज्य के लिए नगण्य मानी जा सकती है।
क्या बिहार बदलाव के लिए तैयार है?
तेजस्वी यादव बिहार के औद्योगिक पिछड़ेपन का ठीकरा सीधे-सीधे नीतीश कुमार और NDA सरकार पर फोड़ते हैं। उनका दावा है कि यदि सरकार अपने राज्य के लिए आंध्र प्रदेश की तरह आक्रामक रणनीति अपनाती, तो आज बिहार औद्योगिक दृष्टि से इस कदर पिछड़ा न होता।
बिहार में बदलाव तभी संभव है जब:
- सरकार निवेशकों को प्राथमिकता दे और उन्हें स्पष्ट नीतिगत समर्थन प्रदान करे।
- केंद्र से एक वास्तविक विशेष पैकेज प्राप्त करने के लिए सशक्त राजनीतिक दबाव डाला जाए।
- औद्योगिक ढांचे को मजबूत करने के लिए बुनियादी सुविधाओं (इंफ्रास्ट्रक्चर, बिजली, परिवहन) में निवेश किया जाए।
निष्कर्ष
तेजस्वी यादव का बयान राजनीतिक होने के बावजूद, बिहार के औद्योगिक विकास की ठहरी हुई गति पर एक कड़वी सच्चाई उजागर करता है। चंद्रबाबू नायडू और नीतीश कुमार की कार्यशैली की तुलना बिहार की राजनीतिक शिथिलता और औद्योगिक ठहराव को और स्पष्ट कर देती है।
अब सवाल यह उठता है कि क्या बिहार की मौजूदा सरकार इस चुनौती को स्वीकार कर राज्य के औद्योगिक भविष्य को पटरी पर ला पाएगी, या फिर अगले कुछ सालों में भी तेजस्वी जैसे नेताओं को ऐसे ही तीखे बयान देने का मौका मिलता रहेगा?