बिहार की राजनीति में कांग्रेस और राजद के रास्ते अब अलग होते नजर आ रहे हैं। कांग्रेस के बारे में खबर आई है कि वह बिहार में अकेले चुनाव लड़ेगी और राजद से दूरी बनाने के बाद कन्हैया कुमार को तेजस्वी यादव की “काट” के रूप में पेश करने की तैयारी कर रही है। लेकिन इस मुद्दे को ज्यादा तवज्जो देने की जरूरत नहीं है, क्योंकि हकीकत यह है कि कांग्रेस का अलग होना राजद के लिए अप्रत्याशित जीत का द्वार खोल सकता है।सच तो है, कांग्रेस अब भाजपा की “B-Team” बन गई है और कन्हैया कौन है?
कांग्रेस से अलग होने से राजद को क्या मिलेगा?
1️⃣ सीटों पर पूरा नियंत्रण
2020 में कांग्रेस को 70 सीटें दी गईं, लेकिन वह सिर्फ 19 पर ही जीत सकी।कांग्रेस के कमजोर प्रदर्शन से गठबंधन को नुकसान हुआ, और राजद को एनडीए से कम सीटें मिलीं।अब राजद अपने दम पर ज्यादा सीटों पर चुनाव लड़ेगा और जीत का प्रतिशत बढ़ेगा।
2️⃣ कमजोर सहयोगी से छुटकारा
कांग्रेस की हालत ऐसी हो गई है कि वह खुद भी नहीं जानती कि वह क्या चाहती है—गठबंधन में रहना या अकेले लड़ना।अगर कांग्रेस अकेले चुनाव लड़ती है, तो इसका मतलब है कि राजद एक बेकार हो चुके सहयोगी के बोझ से मुक्त हो गया।
3️⃣ यादव + मुस्लिम + ओबीसी वोट बैंक पर सीधा नियंत्रण
कांग्रेस के साथ रहने से मुस्लिम और पिछड़े वर्ग के वोटों में बंटवारा हो रहा था।अब कांग्रेस के अलग होने से यह पूरा वोट बैंक राजद के पास आ सकता है।
4️⃣ कन्हैया कुमार कौन है?
तेजस्वी यादव को ऐसे लिबरल दलालों पर वक्त जाया करने की जरूरत नहीं है।
5️⃣ अन्य दलों से नए समीकरण बनाने का मौका
कांग्रेस के साथ रहने से राजद पप्पू यादव और अन्य छोटे दलों से सही गठबंधन नहीं कर पा रहा था।अब बिना किसी बोझ के, राजद खुद को एनडीए विरोधी सबसे मजबूत ताकत के रूप में स्थापित कर सकता है।
कांग्रेस: “बंजर पार्टी” बन चुकी है?
1990 के बाद से कांग्रेस सत्ता से बाहर रही और हर चुनाव में कमजोर होती गई। 2010 में जब उसने अकेले चुनाव लड़ा, तो सिर्फ 4 सीटें मिलीं। 2015 में राजद के साथ आने पर 27 सीटें मिलीं, लेकिन 2020 में यह फिर गिरकर 19 रह गईं।
राजद को अब कांग्रेस की जरूरत नहीं!
अगर राजद बिहार की मुख्य विपक्षी ताकत बनना चाहता है, तो कांग्रेस से दूरी बनाना सबसे सही रणनीति है। कांग्रेस अब सिर्फ नाम की पार्टी रह गई है, जिसका वोट बैंक खत्म हो चुका है। अगर कांग्रेस अलग होती है, तो इससे सिर्फ और सिर्फ राजद को फायदा होगा और तेजस्वी यादव को अप्रत्याशित जीत मिलने का रास्ता साफ होगा।