बिहार शराबबंदी 2025: बिहार में अक्टूबर 2016 से लागू कड़ी शराबबंदी का लक्ष्य शराब संबंधित समस्याओं को कम करना था। लेकिन अब यह स्पष्ट हो गया है कि इस नीति ने अनजाने में राज्य में ड्रग्स और अन्य नशीली चीजों के मामलों में भारी वृद्धि को बढ़ावा दिया है। बिहार पुलिस की इकॉनॉमिक ऑफेंस यूनिट (EOU) के आंकड़ों के अनुसार, ड्रग्स से जुड़े मामले 2016 में 518 थे, जो 2024 तक बढ़कर 2,411 हो गए। इसी तरह, एनडीपीएस एक्ट के तहत गिरफ्तारियां 496 से बढ़कर 1,813 हो गई हैं।
एनडीपीएस एक्ट (Narcotic Drugs and Psychotropic Substances Act, 1985) भारत का एक विशेष कानून है, जिसे नशीले पदार्थों और मनो-सक्रिय पदार्थों के अवैध उत्पादन, तस्करी, बिक्री और उपयोग को रोकने के लिए बनाया गया है। यह एक्ट हेरोइन, कोकीन, अफीम, कैनबिस, मेथाम्फेटामाइन और अन्य खतरनाक ड्रग्स पर लागू होता है। इसके तहत नशीले पदार्थों से जुड़े अपराधों के लिए सख्त सजा और जुर्माना तय किया गया है। एनडीपीएस एक्ट का मुख्य उद्देश्य न केवल अपराधियों को सजा देना है, बल्कि समाज में ड्रग्स की लत और नशे के दुष्प्रभावों को रोकना भी है। |
ड्रग्स के मामले चार गुना बढ़े
चिकित्सक बताते हैं कि शराब की कमी के कारण लोग आसानी से मिलने वाले और सस्ते विकल्पों की ओर बढ़ रहे हैं। इंदिरा गांधी इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज (IGIMS) के मनोरोग विभाग के प्रमुख डॉ. राजेश कुमार का कहना है कि कई लोग अब हेरोइन, ब्राउन शुगर, कैनबिस और सिंथेटिक ड्रग्स जैसे मेथाम्फेटामाइन और कोडीन आधारित कफ सिरप का सेवन करने लगे हैं। ये ड्रग्स न केवल आसानी से उपलब्ध हैं, बल्कि शराब की तुलना में सस्ते भी हैं।
यह साफ संकेत है कि नीतीश सरकार की शराबबंदी ने नशे के अन्य रूपों को बढ़ावा देने में मदद की है।
ड्रग्स की जब्ती में बड़ा उछाल
EOU के आंकड़े बताते हैं कि नशीले पदार्थों की जब्ती में भी भारी वृद्धि हुई है।
- दोड़ा (अफीम का भुजा): 2016 में 15 किग्रा → 2024 में 5,235 किग्रा
- चरस: 88 किग्रा → 277 किग्रा
- स्मैक (हेरोइन): 220 ग्राम → 7 किग्रा
- केमिकल ड्रग्स और सिरप: 2016 में 29,861 बोतलें → 2024 में 1.17 लाख बोतलें
यह डेटा स्पष्ट रूप से दिखाता है कि शराबबंदी के बाद लोग अवैध और खतरनाक नशों की ओर बढ़ गए हैं।
स्वास्थ्य संस्थाओं पर दबाव
पटना के प्रमुख अस्पताल जैसे पटना मेडिकल कॉलेज एंड हॉस्पिटल (PMCH) और IGIMS में नशे की लत से प्रभावित मरीजों की संख्या लगातार बढ़ रही है। पिछले 6-7 वर्षों में दोनों अस्पतालों में हर महीने लगभग 200 मरीज नशे की लत से इलाज के लिए आते हैं। इनमें हेरोइन, ब्राउन शुगर, कैनबिस और गोंद व चिपकने वाले पदार्थों का सेवन करने वाले मरीज शामिल हैं।
नीतीश सरकार की शराबबंदी नीति ने स्वास्थ्य प्रणाली पर अतिरिक्त दबाव डाल दिया है।
कानून प्रवर्तन की स्थिति
EOU के डिप्टी इंस्पेक्टर जनरल मनवजीत ढिल्लों के अनुसार, शराबबंदी केवल शराब पर लागू होती है, लेकिन ऑपियम, सिंथेटिक ड्रग्स और अन्य नशीले पदार्थों को कवर नहीं करती। इसलिए इन मामलों को NDPS एक्ट के तहत दर्ज किया जाता है।
इसका मतलब है कि शराबबंदी कानून ने अन्य नशों को रोकने में कोई मदद नहीं की और यह नीति असफल साबित हो रही है।
बिहार में शराबबंदी ने शराब संबंधित समस्याओं को रोकने के बजाय नशे की अन्य लतों को बढ़ावा दिया है। नीतीश कुमार सरकार की यह नीति न केवल असफल रही है, बल्कि युवाओं और समाज पर गंभीर स्वास्थ्य और सामाजिक संकट बढ़ा रही है।
राज्य को अब एक व्यापक और समग्र नशा नियंत्रण नीति अपनाने की आवश्यकता है, जो केवल शराब तक सीमित न रहे बल्कि सभी प्रकार के नशे और ड्रग्स की रोकथाम पर केंद्रित हो।
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