ब्लैक बॉक्स, जिसे तकनीकी भाषा में फ्लाइट डेटा रिकॉर्डर (FDR) और कॉकपिट वॉयस रिकॉर्डर (CVR) कहा जाता है, हर विमान में लगाया जाने वाला वह उपकरण है जो किसी भी विमान हादसे के बाद सबसे अहम सुराग बन जाता है। आमतौर पर यह डिवाइस नारंगी या पीले रंग का होता है, ताकि हादसे के बाद मलबे में इसे आसानी से पहचाना जा सके। ब्लैक बॉक्स का मुख्य काम विमान की उड़ान के दौरान होने वाली हर छोटी-बड़ी गतिविधि को रिकॉर्ड करना है। इसमें विमान की गति, ऊंचाई, दिशा, इंजन की स्थिति, फ्लैप्स और रडर की पोजिशन, ऑटोपायलट की स्थिति, अलार्म, पायलटों की बातचीत, रेडियो कम्युनिकेशन, कॉकपिट के अंदर की आवाजें, अलार्म और सिस्टम फेल्योर जैसी तमाम जानकारियां सेकंड-दर-सेकंड सेव होती रहती हैं।
ब्लैक बॉक्स का महत्व इसलिए भी है क्योंकि विमान हादसों के बाद अक्सर मलबा बुरी तरह बिखर जाता है और कई बार कोई चश्मदीद भी नहीं बचता। ऐसे में हादसे की असली वजह जानने के लिए ब्लैक बॉक्स में रिकॉर्ड डेटा ही एकमात्र सहारा बनता है। इसकी मदद से जांचकर्ता यह पता लगा सकते हैं कि हादसे से ठीक पहले विमान में क्या-क्या हुआ, पायलटों ने क्या निर्णय लिए, कौन-कौन से अलार्म बजे और तकनीकी स्तर पर कौन सी गड़बड़ी सामने आई। यही वजह है कि किसी भी विमान हादसे के बाद सबसे पहली प्राथमिकता ब्लैक बॉक्स को ढूंढने की होती है।
ब्लैक बॉक्स कैसे करता है काम और क्या-क्या रिकॉर्ड करता है?
ब्लैक बॉक्स दो हिस्सों में बंटा होता है , फ्लाइट डेटा रिकॉर्डर (FDR) और कॉकपिट वॉयस रिकॉर्डर (CVR)। FDR विमान के तकनीकी डेटा को रिकॉर्ड करता है, जिसमें उड़ान के दौरान सैकड़ों पैरामीटर जैसे; ऊंचाई, रफ्तार, दिशा, इंजन की स्थिति, ऑटोपायलट ऑन/ऑफ, फ्लैप्स की पोजिशन, वर्टिकल एक्सेलेरेशन, पिच, रोल, रडर मूवमेंट, ब्रेकिंग सिस्टम, फ्यूल फ्लो, टेम्परेचर, प्रेशर आदि शामिल होते हैं। आधुनिक ब्लैक बॉक्स 25 घंटे तक की उड़ान का डेटा स्टोर कर सकते हैं।
दूसरी ओर, कॉकपिट वॉयस रिकॉर्डर (CVR) कॉकपिट के अंदर की आवाजें रिकॉर्ड करता है। इसमें पायलटों और को-पायलट की बातचीत, रेडियो ट्रांसमिशन, अलार्म, वार्निंग साउंड, इंजन की आवाज, स्विच ऑन-ऑफ की आवाज, और यहां तक कि कॉकपिट के अंदर होने वाली हल्की-फुल्की गतिविधियां भी रिकॉर्ड हो जाती हैं। CVR आमतौर पर पिछले दो घंटे तक की आवाजें सेव करता है। इन दोनों रिकॉर्डिंग्स को मिलाकर जांचकर्ता पूरे हादसे की घटनाक्रम को सेकंड-दर-सेकंड रीकंस्ट्रक्ट कर सकते हैं।
ब्लैक बॉक्स की खासियत यह है कि यह लगातार रिकॉर्डिंग करता रहता है और जैसे-जैसे नया डेटा आता है, पुराना डेटा डिलीट होता जाता है। इससे यह सुनिश्चित होता है कि हादसे के वक्त की सबसे ताजा जानकारी हमेशा सेव रहे।
ब्लैक बॉक्स इतना मजबूत क्यों होता है और कैसे बचता है हादसों में?
ब्लैक बॉक्स को इस तरह डिजाइन किया जाता है कि वह किसी भी विमान हादसे में सुरक्षित रह सके। इसके बाहरी हिस्से को टाइटेनियम या स्टेनलेस स्टील जैसी मजबूत धातु से बनाया जाता है। इसके ऊपर मोटी इंसुलेशन की परत होती है, जिससे यह 1000 डिग्री सेल्सियस से ज्यादा तापमान, 3400 गुना गुरुत्वाकर्षण बल (G-फोर्स), तेज धमाके, आग, पानी और भारी दबाव को भी झेल सकता है।
इसके अलावा, ब्लैक बॉक्स में एक अंडरवॉटर लोकेटर बीकन (ULB) भी होता है, जो पानी में गिरने पर 30 दिन तक लगातार सिग्नल भेजता रहता है। इसकी मदद से खोजी दल समुद्र या नदी में भी ब्लैक बॉक्स को ढूंढ सकते हैं। ब्लैक बॉक्स को आमतौर पर विमान की पूंछ (टेल) में लगाया जाता है, क्योंकि हादसों के दौरान विमान का यह हिस्सा सबसे कम प्रभावित होता है।
ब्लैक बॉक्स के अंदर एक क्रैश सर्वाइवेबल मेमोरी यूनिट होती है, जिसमें डेटा सेव रहता है। इस मेमोरी यूनिट को इस तरह से डिजाइन किया गया है कि वह आग, पानी, झटकों और दबाव में भी सुरक्षित रहे। यही वजह है कि कई बार विमान पूरी तरह जलकर राख हो जाता है, लेकिन ब्लैक बॉक्स से डेटा आसानी से निकाला जा सकता है।
हादसे की जांच में ब्लैक बॉक्स कैसे करता है मदद?
जब भी कोई विमान हादसा होता है, तो जांच एजेंसियां सबसे पहले ब्लैक बॉक्स को ढूंढने में जुट जाती हैं। ब्लैक बॉक्स मिलने के बाद उसे फॉरेंसिक लैब में भेजा जाता है, जहां विशेषज्ञ उसकी मेमोरी से डेटा निकालते हैं। यह प्रक्रिया कई बार हफ्तों तक चलती है, खासकर जब डिवाइस को नुकसान पहुंचा हो।
जांचकर्ता सबसे पहले FDR और CVR के डेटा को सिंक्रोनाइज करते हैं। इसके बाद इन आंकड़ों की तुलना एयर ट्रैफिक कंट्रोल के रिकॉर्ड, रडार लॉग्स, मौसम की जानकारी और चश्मदीदों के बयानों से की जाती है। कई बार कंप्यूटर एनिमेशन के जरिए हादसे के अंतिम क्षणों की सटीक तस्वीर तैयार की जाती है।
ब्लैक बॉक्स की मदद से यह पता चलता है कि हादसे के वक्त विमान में कौन सी तकनीकी खराबी आई, पायलटों ने क्या कोशिश की, कौन-कौन से अलार्म बजे, पायलटों के बीच क्या बातचीत हुई, और आखिरकार विमान क्यों गिरा। अहमदाबाद हादसे में भी पायलट ने टेक-ऑफ के तुरंत बाद ‘मेडे’ कॉल दी थी, जिसके बाद संपर्क टूट गया था। ब्लैक बॉक्स की रिकॉर्डिंग से ही असली वजह सामने आ सकेगी।
अहमदाबाद एयर इंडिया हादसे में ब्लैक बॉक्स की भूमिका
अहमदाबाद में हुए एयर इंडिया हादसे के बाद जांच एजेंसियों ने मलबे से एक ब्लैक बॉक्स बरामद किया है, जबकि दूसरा अभी खोजा जा रहा है। DGCA और AAIB की टीमें इसकी जांच में जुटी हैं। ब्लैक बॉक्स की मदद से यह पता लगाया जा सकेगा कि टेक-ऑफ के बाद विमान में किस तकनीकी या मानवीय वजह से गड़बड़ी आई, पायलटों ने क्या कदम उठाए, और आखिरकार हादसा कैसे हुआ।
इस हादसे में पायलट ने टेक-ऑफ के तुरंत बाद ‘मेडे’ कॉल दी थी, लेकिन उसके बाद विमान का संपर्क टूट गया। ब्लैक बॉक्स की रिकॉर्डिंग से यह पता चलेगा कि पायलटों ने किस स्थिति में कॉल दी, क्या कोई सिस्टम फेल्योर हुआ, या कोई और वजह थी। इसके अलावा, ब्लैक बॉक्स से मिले डेटा के आधार पर भविष्य में सुरक्षा मानकों को और मजबूत किया जा सकेगा, जिससे ऐसे हादसों की पुनरावृत्ति रोकी जा सके।
इस हादसे के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, गृह मंत्री अमित शाह समेत तमाम बड़े अधिकारी मौके पर पहुंचे और जांच की प्रगति की समीक्षा की। केंद्र सरकार ने मृतकों के परिजनों को मुआवजे की घोषणा की है और एयर इंडिया ने भी हेल्पलाइन नंबर जारी किए हैं। हादसे की गंभीरता को देखते हुए अमेरिकी और ब्रिटिश जांच एजेंसियों की मदद भी ली जा रही है।
ब्लैक बॉक्स से मिलती है हादसे की असली वजह
ब्लैक बॉक्स विमान हादसों की जांच का सबसे अहम उपकरण है। इसकी मजबूती और डेटा रिकॉर्डिंग क्षमता की वजह से ही सच्चाई सामने आ पाती है। अहमदाबाद हादसे के बाद ब्लैक बॉक्स से मिलने वाली जानकारी न सिर्फ पीड़ित परिवारों को जवाब देगी, बल्कि भविष्य में ऐसे हादसों को रोकने के लिए भी मददगार साबित होगी। हर विमान हादसे के बाद ब्लैक बॉक्स की तलाश सबसे बड़ी प्राथमिकता बन जाती है, क्योंकि यही एकमात्र जरिया है जिससे हादसे की असली वजह सामने आती है और विमानन क्षेत्र में सुरक्षा मानकों को और मजबूत किया जा सकता है।