केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड (CBSE) ने हाल ही में सभी संबद्ध स्कूलों को एक परिपत्र जारी कर ‘शुगर बोर्ड’ स्थापित करने का निर्देश दिया है। इस पहल का उद्देश्य छात्रों को अत्यधिक चीनी सेवन के स्वास्थ्य जोखिमों के प्रति जागरूक करना है, जिससे मोटापा, टाइप 2 मधुमेह और अन्य जीवनशैली संबंधी बीमारियों की रोकथाम की जा सके।
पहल के प्रमुख बिंदु:
- शुगर बोर्ड की स्थापना: स्कूलों में ऐसे सूचना पट लगाए जाएंगे जो खाद्य पदार्थों में चीनी की मात्रा और इसके स्वास्थ्य पर प्रभाव के बारे में जानकारी देंगे। इससे छात्रों को अपने आहार में संतुलन बनाए रखने में मदद मिलेगी।
- ब्लड शुगर जांच: नियमित स्वास्थ्य जांच के तहत अब छात्रों की ब्लड शुगर स्तर की जांच भी की जाएगी, जिससे समय रहते किसी भी समस्या की पहचान की जा सके।
- स्वस्थ आहार के लिए मार्गदर्शन: स्कूलों द्वारा माता-पिता को स्वस्थ आहार योजनाओं और बच्चों के लिए उपयुक्त खाद्य विकल्पों के बारे में जानकारी प्रदान की जाएगी।
- विशेषज्ञों की राय: स्वास्थ्य विशेषज्ञों का मानना है कि इस तरह की पहल से बच्चों में स्वस्थ जीवनशैली की आदतें विकसित होंगी और दीर्घकालिक स्वास्थ्य समस्याओं की संभावना कम होगी।
इस पहल की सराहना करते हुए ज़ेरोधा के सीईओ नितिन कामथ ने भी सोशल मीडिया पर इसे एक सकारात्मक कदम बताया और माता-पिता को भी इसमें सक्रिय भागीदारी के लिए प्रेरित किया।
समस्या की गंभीरता
राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (NFHS-5) के अनुसार, 2019-21 के दौरान 15-49 आयु वर्ग के 6.4% महिलाएं और 4.0% पुरुष मोटापे से ग्रस्त पाए गए। इसके अलावा, 5 वर्ष से कम उम्र के अधिक वजन वाले बच्चों की संख्या 2015-16 में 2.1% से बढ़कर 2019-21 में 3.4% हो गई।
विशेषज्ञों का मानना है कि बच्चों में अत्यधिक चीनी सेवन, विशेष रूप से शक्कर युक्त पेय पदार्थों, मिठाइयों और प्रोसेस्ड फूड्स के कारण, वजन बढ़ने और टाइप 2 मधुमेह के जोखिम में वृद्धि होती है। अत्यधिक चीनी सेवन से शरीर में इंसुलिन प्रतिरोध और फैटी लिवर जैसी समस्याएं भी उत्पन्न हो सकती हैं।
CBSE के अनुसार, 4-10 वर्ष के बच्चे अपनी दैनिक कैलोरी का लगभग 13% और 11-18 वर्ष के किशोर लगभग 15% चीनी से प्राप्त करते हैं, जो कि अनुशंसित 5% सीमा से कहीं अधिक है।
विशेषज्ञों की राय
बेंगलुरु के पोषण विशेषज्ञों और बाल अधिकार कार्यकर्ताओं ने इस पहल की सराहना की है। उनका मानना है कि यह कदम बच्चों में स्वस्थ आहार संबंधी आदतें विकसित करने में मदद करेगा और दीर्घकालिक स्वास्थ्य समस्याओं के जोखिम को कम करेगा।
ज़ेरोधा के सीईओ नितिन कामथ ने भी इस पहल की प्रशंसा की है और माता-पिता को भी इसमें सक्रिय भागीदारी के लिए प्रेरित किया है।