फिल्म फुले पर सेंसरशिप विवाद लगातार सुर्खियों में बना हुआ है, और इस बार चर्चित फिल्म निर्देशक अनुराग कश्यप ने इस मुद्दे पर खुलकर अपनी नाराज़गी जताई है। अनंत महादेवन द्वारा निर्देशित और प्रतीक गांधी व पत्रलेखा अभिनीत यह बायोपिक महात्मा ज्योतिराव फुले के जीवन पर आधारित है। पहले यह फिल्म 11 अप्रैल को उनके जन्मदिवस के मौके पर रिलीज़ होने वाली थी, लेकिन ब्राह्मण समुदाय के कुछ वर्गों की आपत्तियों के चलते इसकी रिलीज़ टाल दी गई।
अनुराग कश्यप ने इस विवाद पर इंस्टाग्राम के ज़रिए तीखी प्रतिक्रिया दी। उन्होंने लिखा, “भाई मिल के डिसाइड कर लो, इंडिया में कास्टिज़्म है या नहीं?” उन्होंने यह सवाल भी उठाया कि अगर देश में जातिवाद खत्म हो चुका है, तो फिर कुछ समुदायों को फिल्म से इतनी आपत्ति क्यों हो रही है।
कश्यप ने याद दिलाया कि उनका पहला थियेटर प्ले भी फुले और सावित्रीबाई फुले के जीवन पर आधारित था। उन्होंने सेंसर बोर्ड की भूमिका पर भी सवाल उठाए कि बोर्ड ने स्पष्ट रूप से यह नहीं बताया कि फिल्म में आखिर किस बात से आपत्ति है। उन्होंने पूछा कि जब फिल्म अब तक रिलीज़ भी नहीं हुई, तो आपत्तिजनक सीन देखने का अधिकार समुदायों को किसने दिया?
अनुराग का मानना है कि फुले जैसी फिल्में इसलिए दबाई जा रही हैं क्योंकि वे समाज की असहज सच्चाइयों को सामने लाती हैं। उन्होंने उदाहरण देते हुए ‘पंजाब 95’, ‘टीस’ और ‘धड़क 2’ जैसी फिल्मों का ज़िक्र किया, जिनका सेंसरशिप या सामाजिक विरोध की वजह से संघर्ष करना पड़ा है।
इसी विवाद पर वंचित बहुजन आघाड़ी के अध्यक्ष प्रकाश आंबेडकर ने पुणे में प्रदर्शन किया। उन्होंने चेतावनी दी कि यदि फिल्म के ज़रूरी दृश्य हटा दिए जाते हैं, तो “फुले जैसी फिल्मों का उद्देश्य ही समाप्त हो जाएगा।”
अब फिल्म की नई रिलीज़ तारीख 25 अप्रैल तय की गई है, लेकिन उससे पहले केंद्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड (CBFC) द्वारा सुझाए गए कट्स को लेकर बहस तेज़ हो गई है। अनुराग कश्यप और प्रकाश आंबेडकर जैसे लोगों की प्रतिक्रिया यह दिखाती है कि जातीय असमानता और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर सवाल उठाने वाली फिल्मों को आज भी कितनी रुकावटों का सामना करना पड़ता है।