भारत में 16 साल बाद जनगणना होने जा रही है। काफी लंबे इंतजार के बाद अब 2027 में देश की जनगणना होने जा रही है। गृह मंत्रालय ने हाल ही में बताया कि इसकी रेफरेंस डेट 1 मार्च 2027 तय की गई है।
इस बार की जनगणना खास इसलिए भी है क्योंकि पहली बार इसे डिजिटल तरीके से किया जाएगा और आज़ाद भारत में पहली बार इसमें हर जाति का डेटा भी जुटाया जाएगा।
जनगणना दो हिस्सों में होगी
सरकार के मुताबिक जनगणना दो चरणों में की जाएगी। पहले लद्दाख, जम्मू-कश्मीर, हिमाचल और उत्तराखंड जैसे ठंडे इलाकों में 1 अक्टूबर 2026 को जनगणना की तारीख मानी जाएगी। बाकी देश के लिए ये तारीख 1 मार्च 2027 रहेगी।
रेफरेंस डेट यानी वह दिन होता है जिस तारीख तक के आंकड़े इकट्ठा किए जाते हैं। हालांकि, जनगणना की शुरुआत और खत्म होने की तारीख सरकार ने अब तक साफ नहीं की है।
जनगणना क्यों ज़रूरी है?

2021 में कोरोना महामारी के कारण जनगणना की प्रक्रिया स्थगित कर दी गई थी।
जनगणना का मकसद हर इंसान से जुड़ी जानकारी इकट्ठा करना है, जैसे कि वे कहां रहते हैं, क्या करते हैं, कितने पढ़े-लिखे हैं, किस धर्म या जाति से हैं, उनके पास घर है या नहीं, आदि।
इस डेटा की मदद से सरकार नीतियां बनाती है, योजनाएं तय करती है और संसाधनों को सही जगह इस्तेमाल करती है।
भारत में पहली जनगणना 1872 में हुई थी और तब से हर दस साल में यह होती रही है।
देरी क्यों हुई?
भारत में जनगणना जनगणना अधिनियम 1948 के तहत कराई जाती है। इसकी ज़िम्मेदारी रजिस्ट्रार जनरल और जनगणना आयुक्त के दफ्तर की होती है, जो गृह मंत्रालय के तहत आता है।
जनगणना हर 10 साल में एक बार होती है। पिछली बार 2011 में हुई थी और अगली 2021 में होनी थी, लेकिन कोरोना महामारी की वजह से इसमें देरी हुई। अब छह साल बाद यानी 2027 में इसे कराया जा रहा है।
इस साल एक फ़रवरी को पेश किए गए बजट में जनगणना के लिए 574.80 करोड़ रुपये आवंटित किए गए थे. जबकि साल 2021-22 के बजट में इसके लिए 3 हज़ार 768 करोड़ रुपये का आवंटन किया गया था.
गृह मंत्रालय के एक प्रवक्ता ने बताया कि 2021 में सारी तैयारियाँ पूरी कर ली गई थीं, लेकिन महामारी के कारण इसे टालना पड़ा। दुनिया के कई देशों को महामारी के तुरंत बाद जनगणना करने में दिक्कतें आईं, जैसे कि डेटा की गुणवत्ता और लोगों तक पहुंचने में परेशानी। इन्हीं कारणों को देखते हुए अब सरकार ने 2027 को जनगणना की नई तारीख तय की है।
सरकार का ये भी कहना है कि फंड की कोई कमी नहीं होगी और ज़रूरत के मुताबिक बजट हमेशा उपलब्ध रहेगा।
इस बार क्या नया होगा?
सबसे बड़ा बदलाव यह है कि जनगणना अब डिजिटल होगी, जिससे यह प्रक्रिया तेज़ और पारदर्शी बन सकेगी।
साथ ही, 1931 के बाद पहली बार हर जाति का डेटा भी लिया जाएगा। अब तक सिर्फ अनुसूचित जाति और जनजाति का ही डेटा लिया जाता था। अब हर नागरिक से उसकी जाति पूछी जाएगी।

महिला आरक्षण और परिसीमन पर असर
जनगणना का असर सीधे महिला आरक्षण और परिसीमन पर पड़ेगा।
महिला आरक्षण कानून कहता है कि संसद और विधानसभाओं में महिलाओं के लिए 33% सीटों का आरक्षण तभी लागू होगा जब जनगणना और परिसीमन की प्रक्रिया पूरी हो जाएगी।
परिसीमन का मतलब होता है, लोकसभा और विधानसभाओं की सीटों का नए सिरे से बँटवारा। ये बँटवारा जनसंख्या के आधार पर होता है, इसलिए दक्षिण भारत के कुछ राज्य चिंता जता रहे हैं कि उनकी धीमी जनसंख्या वृद्धि से उन्हें नुकसान हो सकता है।
गृह मंत्री अमित शाह ने कहा है कि सभी राज्यों की बात सुनी जाएगी और कोई भी फैसला बिना चर्चा के नहीं लिया जाएगा।
पुरानी लड़ाई और अब की स्थिति
संविधान के मुताबिक, हर जनगणना के बाद देश में परिसीमन होना चाहिए। यानी जनसंख्या के हिसाब से लोकसभा और विधानसभा सीटों का बँटवारा तय किया जाता है। ऐसा 1951, 1961 और 1971 की जनगणना के बाद किया भी गया था।
लेकिन 1976 में, जब 1971 की जनगणना के आधार पर परिसीमन हुआ, तो उत्तर और दक्षिण भारत के बीच काफी विवाद खड़ा हो गया। वरिष्ठ पत्रकार श्यामलाल यादव बताते हैं कि उस वक्त दक्षिण भारत की जनसंख्या धीरे बढ़ रही थी, जबकि उत्तर भारत में तेजी से। ऐसे में दक्षिणी राज्यों को लगा कि जनसंख्या कंट्रोल करने की सज़ा उन्हें सीटें घटाकर दी जा रही है।
इस विवाद के बाद परिसीमन पर रोक लगा दी गई और तय हुआ कि अब अगला परिसीमन 2001 की जनगणना के आधार पर होगा।
श्यामलाल का मानना है कि 2027 की जनगणना के बाद फिर से परिसीमन की प्रक्रिया शुरू होगी, लेकिन इसके नतीजे 2029 के लोकसभा चुनाव तक पूरी तरह लागू नहीं हो पाएंगे। हालांकि उसके बाद होने वाले चुनावों में इसका असर ज़रूर देखने को मिलेगा।