आम को फलों का राजा कहा जाता है। लेकिन सभी आमों का बादशाह चौसा आम है। चौसा आम वास्तव में बादशाही फल है। मिठास में सभी आमों पर भारी, जैसे उसे शक्कर की चाश्नी में डुबो कर निकाला गया हो। आज दशहरी, गौरजीत, आम्रपाली, कपूरी और दक्षिण भारत के बादामी, अल्फांसों आदि के गुणों की कितनी ही चर्चा कर ली जाए मगर विदेशों में जो शोहरत चौसा आम की है वह किसी और आम को नसीब नहीं। विदेशों में इसका रेट भी सबसे अधिक होता है।
आइए जानते हैं कि इसका नाम चौसा कैसे पड़ा। इसका इतिहास मुगल बादशाह हुमायुं को हरा कर ईरान तक खदेड़ देने वाले बादशाह शेरशाह सूरी के नाम से क्यों जुड़ता है?
इतिहासकारों के अनुसार हिंदुस्तान के पहले मुगल शासक बाबर की मौत के बाद सन 1530 में उनका बेटा हुमायूं दिल्ली के तख्त पर बैठा। उसके बाद बिहार के एक अफगान सरदार शेरशाह से हुमायूं को चुनौती मिलने लगी। आखिर 26 जून सन 1539 में हुमायूं और शेरशाह सूरी के बीच बिहार के चौसा नामक गांव में आमने-सामने की जंग हुई। हालात कुछ ऐसे बने कि ताकतवर होने के बावजूद जंग में हुमायूं की पराजय हुई तथा उसे मैदान छोड़ भागना पड़ा। उसके बाद शेरशाह सूरी ने वहां जीत का जश्न मनाने का सोचा।
जीत की खबर सुनकर शेरशाह का गाजीपुर निवासी एक इजारेदार उसके पास आमों की टोकरियां लेकर पहुंचा था। शेरशाह और उसके सेनापतियों ने जश्न के दौरान उन आमों को जमकर खाया और उसकी मिठास की दिल खोलकर प्रशंसा की। लेकिन शेरशाह द्वारा उसका नाम पूछने पर इजारेदार उसका नाम न बता सका। उसने केवल इतना बताया कि उसके इलाके गाजीपुर में उसे गाजीपुरिया आम कहते हैं। इसके बाद बादशाह शेरशाह सूरी ने कहा कि चौसा के मैदान में मिली जीत के उपलक्ष्य में इसका नाम ‘चौसा’ रखा जाता है। इसके बाद आम की गुठलियों से वहां एक बाग भी रोपा गया। तभी से इसका नाम चौसा पड़ गया। वैसे कुछ इतिहासकार यह कहते हैं कि आम भले ही गाजीपुर से गए हों, मगर इसका मूल उ.प्र. के हरदोई जिले का है। हालांकि यह बात स्वाभाविक नहीं लगती।
बाद में जब शेरशाह की मौत के बाद भारत में मुगलों का राज हुआ तो अनेक मुगल शासक इसे लाहौर की तरफ भी ले गए और सिंध, कराची और लाहौर के इलाके में इसके बाग बहुतायत में लगाए गए। आज चौसा अपनी मिठास के कारण विश्व में अपनी पहचान बनाए हुए है। ब्रिटेन और अमेरिका में इसे भारी कीमत पर बेचा जाता है। तो यह है आमों के राजा ‘चौसा आम’ के नाम की कहानी। अगर शेरशाह ने इसे नाम न दिया होता तो शायद आज यह मीठा आम बेनाम अथवा गाजीपुरिया आम के नाम से ही जाना जाता।