Chhorii ने चार साल पहले दर्शकों को हिला कर रख दिया था। अब उसकी उसी कहानी की कड़ी में Chhorii 2 लौट आई है — और इस बार और अधिक गहरे डर के साथ-साथ सामाजिक सच्चाइयों के साथ। निर्देशक विशाल फुरिया ने इस सीक्वल में हॉरर को भावनाओं, रिश्तों और सामाजिक अंधविश्वास के साथ यहां इस तरह पिरोया है कि कहानी डराने के साथ-साथ सोचने पर भी मजबूर करती है।
कहानी की पकड़: डर जहां खूंन से नहीं, परंपरा से उत्पन्न होता है
कहानी शुरू होती है साक्षी (नुसरत भरूचा) से, जो शहर में अपनी छोटी बेटी इशानी के साथ एक शांत ज़िंदगी जी रही है। इशानी को एक रहस्यमयी त्वचा की बीमारी है – वह धूप में बाहर नहीं जा सकती। वे समर (गश्मीर महाजनी) एक पुलिस अधिकारी के घर में किराए पर रहती हैं।
लेकिन तभी हालात पलटते हैं — इशानी अपने कमरे में एक शैतानी साया देखती है, और धीरे-धीरे वह उसकी गिरफ्त में आने लगती है। फिर एक दिन इशानी और उसकी केयरटेकर अचानक लापता हो जाते हैं। साक्षी को पता चलता है कि उन्हें उसी गांव में ले जाया गया है जहां पहले बेटियों को जन्म लेते ही मार दिया जाता था। गांव की आत्माएं आज भी भटकती हैं और अब वही अंधविश्वास एक बार फिर से जिंदा हो गया है।
गांव में साक्षी का सामना दासी मां (सोहा अली खान) से होता है, जो ये काली शक्तियों की रक्षक बनी बैठी हैं। दासी मां इशानी की शादी एक आदिमानव प्रधान से करवाने की तैयारी में हैं। अब सवाल है कि क्या साक्षी अपनी बेटी को बचा पाएगी? क्या इशानी अपनी मां की गोद में लौट पाएगी या अनंत काल तक खो जाएगी।
अभिनय: डर के साथ भावनाओं की भी जीत
- नुसरत भरूचा ने साक्षी के रोल में जान डाल दी है। एक मां की बेचैनी, हिम्मत और डर — सबकुछ उनके चेहरे और आंखों से साफ झलकता है।
- गश्मीर महाजनी की स्क्रीन प्रेजेंस कम होते हुए भी दमदार है।
- सोहा अली खान ने निगेटिव किरदार दासी मां में तहलका मचा दिया है — उनकी एंट्री से ही डर बढ़ जाता है।
- कुलदीप सरीन ने भी अपने रोल को बखूबी निभाया है।
निर्देशन: हॉरर से आगे की सोच
विशाल फुरिया ने चोरी 2 को सिर्फ डर की कहानी नहीं बनाया — उन्होंने इसे एक सामाजिक संदेश के साथ पेश किया है। फिल्म में पुराने अंधविश्वास, बेटियों पर समाज की मानसिकता, और एक मां की जंग को इतनी संवेदनशीलता से दिखाया गया है कि डर के साथ-साथ गुस्सा भी आता है। बैकग्राउंड स्कोर, सिनेमैटोग्राफी और विजुअल्स भी फिल्म को और असरदार बनाते हैं।