लेटेस्ट ख़बरे विधानसभा चुनाव ओपिनियन जॉब - शिक्षा विदेश मनोरंजन खेती टेक-ऑटो टेक्नोलॉजी वीडियो वुमन खेल बायोग्राफी लाइफस्टाइल

कर्नल सोफिया का अपमान और सत्ता की चुप्पी: क्या न्याय अब पहचान देखकर मिलेगा?

मंत्री विजय शाह द्वारा कर्नल सोफिया पर की गई अभद्र टिप्पणी पर कोर्ट के सख्त आदेशों के बावजूद न इस्तीफा हुआ, न कार्रवाई। सत्ता और न्याय प्रणाली की चुप्पी पर उठे सवाल।

विरोध और विवादों के बीच भी, कर्नल सोफिया कुरैशी पर की गई शर्मनाक और आपत्तिजनक टिप्पणी के बावजूद, मध्यप्रदेश सरकार में मंत्री विजय शाह अब तक अपने पद पर टिके हुए हैं, बिना किसी शर्मिंदगी के। ये वही मामला है जिसमें जबलपुर हाईकोर्ट ने उनके खिलाफ सख्त टिप्पणी करते हुए एफआईआर करने का आदेश दिया, एफआईआर हुई तो उस एफआईआर की धज्जियां उड़ाते हुए एफआईआर को पुनः सही तरीके से करने और उसकी हाईकोर्ट द्वारा मानिटरिंग का आदेश दिया।

सिर्फ हाईकोर्ट ही नहीं, उच्चतम न्यायालय ने भी इस केस की गंभीरता को समझते हुए याचिका खारिज करने से इनकार कर दिया और तीखी टिप्पणी की। इसके बावजूद न तो राज्य सरकार ने मंत्री से इस्तीफा मांगा, और न ही बीजेपी ने उन्हें पार्टी से बाहर किया। सवाल ये है कि एक महिला फौजी अधिकारी के सम्मान की रक्षा करना क्या सरकार की जिम्मेदारी नहीं बनती?

अब सोचिए, जब एक मुस्लिम महिला फौजी अफसर के अपमान पर भी सत्ता खामोश रह जाती है, तो आम मुसलमानों की इज़्ज़त और सुरक्षा की क्या गारंटी बचती है? क्या यही है ‘सबका साथ, सबका विकास’ का सच?

ये मामला सिर्फ एक मंत्री की बदजुबानी का नहीं है, ये दिखाता है कि सत्ता कितनी असंवेदनशील हो चुकी है और न्याय व्यवस्था भी कहाँ तक सीमित रह गई है। क्या आपने कभी देखा है कि इस्लाम, मुसलमानों या पैगंबर के खिलाफ दिए गए बयान पर कोर्ट ने फौरन एक्शन लिया हो? ज़्यादातर बार अदालतें या तो चुप रहती हैं या सिर्फ एक-दो सख्त शब्द कहकर मामला खत्म कर देती हैं।

जब ऐसे मामलों में सख्त कार्रवाई नहीं होती, तो नफरत फैलाने वाले लोगों का हौसला और बढ़ जाता है। उन्हें यकीन हो जाता है कि कुछ भी कह दो, कुछ नहीं होगा और यही दोहराव बनता जाता है। अफसोस की बात है कि ये लोग राजनीतिक तौर पर भी सुरक्षित रहते हैं।

ये मामला सिर्फ एक महिला अधिकारी का नहीं है, ये हमारे लोकतंत्र की नैतिकता की असली परीक्षा है। अगर हम एक फौजी अफसर के अपमान पर चुप रहेंगे, तो फिर किस लोकतंत्र की बात करेंगे? अगर हम धर्म, जाति या पहचान के आधार पर न्याय तय करने लगें, तो संविधान का क्या बचेगा?

whatsapp logoओबीसी आवाज चैनल को फॉलो करें

आज जरूरत है कि सरकार, समाज और न्यायपालिका साथ आकर ये भरोसा दें कि किसी भी नागरिक की गरिमा से कोई समझौता नहीं होगा। वरना इतिहास याद रखेगा कि हमने न सिर्फ एक कर्नल के साथ अन्याय किया, बल्कि अपने लोकतंत्र की आत्मा को भी चोट पहुंचाई।

ताज़ा खबरों से अपडेट रहें! हमें फ़ॉलो जरूर करें X (Formerly Twitter), WhatsApp Channel, Telegram, Facebook रियल टाइम अपडेट और हमारे ओरिजिनल कंटेंट पाने के लिए हमें फ़ॉलो करें


अनिल यादव एक वरिष्ठ पत्रकार हैं, जिनकी कलम सच्चाई की गहराई और साहस की ऊंचाई को छूती है। सामाजिक न्याय, राजनीति और ज्वलंत मुद्दों पर पैनी नज़र रखने वाले अनिल की रिपोर्टिंग हर खबर को जीवंत कर देती है। उनके लेख पढ़ने के लिए लगातार OBC Awaaz से जुड़े रहें, और ताज़ा अपडेट के लिए उन्हें एक्स (ट्विटर) पर भी फॉलो करें।

Leave a Comment