जो युवा कांग्रेस का इतिहास जान लेगा, वो जीवन में कांग्रेस का पक्षधर नहीं रहेगा। बावजूद इसके कि नेहरू ने कांग्रेस के झंडे तले देश के लिए आज़ादी की लड़ाई लड़ी, फिर भी वह कांग्रेस का समर्थक नहीं हो सकेगा।
कांग्रेस में तथाकथित ऊँची जातियों का सदैव वजूद रहा। आज़ादी से पहले सामंती दौर था। भले ही अंग्रेज ऊँची जातियों सहित समस्त जातियों को पीटते थे, लेकिन ऊँची जातियाँ अपनी सामंती, मनुवादी हनक सदैव दलितों और पिछड़ों पर दिखाती रहीं। उन्हें पीटती रहीं, प्रताड़ित करती रहीं।
लोक समाज व कवियों-साहित्यकारों की मानें, तो ऊँची जातियों के लोगों में पशुता चरम पर थी। निचली जातियों के साथ कुटिलता, ब्याजखोरी, दबंगई, उनकी बहन-बेटियों से छेड़छाड़ और ज़बरन रेप जैसी घटनाएँ आम थीं।
मशहूर कवि अदम गोंडवी, जो स्वयं ऊँची जाति से थे, उनकी कविता चमारों की गली उस समय की परिस्थितियों का स्पष्ट वर्णन करती है। बॉलीवुड वालों ने भी बड़ी हिम्मत और वफादारी से ये सब दर्शाया।
यह सब कांग्रेस और नेहरू-गांधी के दृष्टिकोण में कभी आया ही नहीं, न ही उन्होंने इन मुद्दों पर चिंतन किया।
अंग्रेज तो चले गए, लेकिन दलितों-पिछड़ों पर अत्याचार का कहर थमने की बजाय बढ़ता चला गया। कांग्रेस जितने अधिक दिन सत्ता में रही, उतनी ही ज़्यादा अंधी और बहरी होती चली गई।
यह कड़वा सच है कि अधिक दिन सत्ता में रहने से शासक तानाशाह हो जाता है, और उसके समर्थक अहंकारी हो जाते हैं।
कांग्रेस की नाक के नीचे हज़ारों-करोड़ों लड़कियों के साथ फूलन जैसा व्यवहार हुआ, और एक फूलन डाकू बनी। उसकी ज़िंदगी नष्ट हो गई, लेकिन कांग्रेस अंधी रही। उसने नहीं जाना कि उसके शासन में क्या चल रहा है।
1948 से 1990 तक कांग्रेस ने पिछड़ों का हक़ आराम से ऊँची जातियों को खिला दिया। उसे कभी पिछड़ों की चिंता नहीं हुई।
सारे सरकारी महकमे, पंचायत स्तर से लेकर सदन तक, सब ऊँची जातियों के कब्जे में थे।
जब 1990 में नेताजी मुलायम सिंह यादव और लालू जी के प्रयास से वी.पी. मंडल की रिपोर्ट लागू हुई और पिछड़ों को आरक्षण मिला, तब कांग्रेस और भाजपा दोनों को दिक्कत हुई। और कांग्रेस ही थी जिसने ऊँची जातियों के प्रति हमदर्दी दिखाई और उन्हें EWS के तहत 10% आरक्षण का वादा किया।
कांग्रेस की यही हकीकत
हमें भी चुभती है।