देश में हिन्दू – मुस्लिम सांप्रदायिकता के चरम बिन्दु का लाभ पहलगाम में आतंकवादियों ने उठाया, नाम पूछ कर, कलमा पढ़वा कर पैंट उतरवाकर पूरा वेरिफिकेशन किया और गोली मार दी।
जो महिलाएं बच गई उन्हें कहा गया कि जाकर अपनी सरकार से कह देना…… उन्हें उम्मीद थी कि इसका असर गोधरा और गुजरात की तरह होगा।
मगर सिवाय कुछ छिटपुट घटनाओं के कुछ नहीं हुआ, विशेषकर मुसलमानों द्वारा पहलगाम की इस घटना का विरोध और आतंकवादियों की साज़िश का आगे आकर किए भर्त्सना ने उनकी रणनीति विफल को कर दिया।
कहने का मतलब यह है कि, देश की सांप्रदायिक विभाजन की राजनीति पर आतंकवादियों और उनके आकाओं की नज़र है और वह अब इसका इस्तेमाल करने लगें हैं।
दरअसल, जब देश के भीतर नफ़रत के बीज बोए जाते हैं, तो सीमापार बैठे दुश्मन इन दरारों में ज़हर भरने का इंतज़ार करते हैं। जब धार्मिक पहचान पूछकर हत्या की जाती है, तो यह सिर्फ एक जान का नुकसान नहीं, बल्कि भारत की साझा संस्कृति पर हमला होता है।
अब वक्त आ गया है कि राजनीति से ऊपर उठकर समाज को जोड़ने की कोशिश की जाए। हमें समझना होगा कि हमारी असली ताकत हमारी विविधता में है, न कि हमारे फर्क में। अगर हम अब भी नहीं संभले, तो आतंकी ताकतें इस नफरत की आग में पूरे देश को झोंकने से पीछे नहीं हटेंगी। इसलिए ये सिलसिला अब यहीं खत्म होना चाहिए… वरना अगली बार हालात हाथ से निकल सकते हैं।