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लोकतंत्र की हत्या: जाति, न्याय और राजनीति का त्रिकोण

भारत में लोकतंत्र का चेहरा तब बिगड़ता है जब न्यायिक और प्रशासनिक व्यवस्था का इस्तेमाल पिछड़े नेताओं को सियासत से बाहर करने में होता है, जैसे लालू, आज़म और मुलायम के साथ हुआ।

भारत में लोकतंत्र की हत्या का चिंतन, दरअसल राजनीतिक और नस्लीय उन्नयन की मंशा को छुपाए होता है। भारतीय लोकतंत्र में राजनीतिक नेतृत्व की न्यायपालिका और मीडिया के माध्यम से चरित्र हत्या आम बात बन चुकी है। आज़ादी के बाद से कई मौकों पर कई नेताओं के राजनीतिक जीवन को लोकतंत्र के सबसे भरोसेमंद हथियारों से कुचला गया है।

वर्तमान में इस चर्चा की शुरुआत बिहार से लालू प्रसाद और उत्तर प्रदेश से आज़म खान के उदाहरण से करते हैं। इन दोनों नेताओं के प्रति राजनीतिक प्रतिशोध किसी से छुपा नहीं है।

राजनीतिक संरक्षण में प्रशासनिक और न्यायिक व्यवस्थाओं का दुरुपयोग कर इन दोनों नेताओं को संसदीय राजनीति से बाहर किया जा चुका है। सिर्फ यही नहीं, बल्कि इन दोनों के पूरे परिवारों को भी उसी प्रतिशोध की चक्की में पीसा जा रहा है।

इन दोनों नेताओं को राजनीतिक कुंठा के तहत कुचलने से लोकतंत्र मजबूत हुआ है, ऐसा गैर-दलित, गैर-पिछड़े बुद्धिजीवी मानते हैं।

मुलायम सिंह यादव को भी संसदीय राजनीति से अलग-थलग करने के लिए दशकों तक राजनीतिक संरक्षण में प्रशासनिक और न्यायिक व्यवस्था का सहारा लिया गया। वे अपने जीवन के अंतिम समय में ही इन झंझावातों से मुक्ति पा सके।

लालू, मुलायम, और आज़म जैसे नेताओं को न्यायिक प्रक्रिया के माध्यम से जन-नेतृत्व से दूर करना लोकतंत्र की हत्या के अंतर्गत नहीं गिना गया, क्योंकि वे जातीय ‘योग्यता’ नहीं रखते।

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आज़म खान को छोड़कर लालू और मुलायम के राजनीतिक जीवन को छीनने के इस कुत्सित प्रयास का दोष कहीं न कहीं कांग्रेस पर भी आता है।

राहुल गांधी की संसद सदस्यता छिनने पर लोकतंत्र उतना ही कमजोर हुआ है, जितना कि आज़म और लालू की सदस्यता जाने से हुआ था।

बेहतर होगा कि लोकतंत्र के लिए घड़ियाली आंसू बहाने के बजाय समग्र समस्या पर गंभीर चिंतन किया जाए, ताकि लोकतंत्र नेहरू और निरहू, दोनों के लिए समान रूप से रहे।

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अनिल यादव एक वरिष्ठ पत्रकार हैं जो Anil Yadav Ayodhya के नाम से जाने जाते हैं। अनिल यादव की कलम सच्चाई की गहराई और साहस की ऊंचाई को छूती है। सामाजिक न्याय, राजनीति और ज्वलंत मुद्दों पर पैनी नज़र रखने वाले अनिल की रिपोर्टिंग हर खबर को जीवंत कर देती है। उनके लेख पढ़ने के लिए लगातार OBC Awaaz से जुड़े रहें, और ताज़ा अपडेट के लिए उन्हें एक्स (ट्विटर) पर भी फॉलो करें।

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