मई 2025 की प्रचंड लू ने भारत को झुलसा दिया था। जब दिल्ली में पारा 48°C और राजस्थान के फलोदी में 50°C छू गया, तब एक साधारण मैकेनिक रहमान शेख ने मालदा की गलियों में ऐसा कारनामा किया जिसने राष्ट्रीय संकट को स्थानीय समाधान में बदल दिया। उनका आविष्कार असाधारण रूप से सरल था, एक बेकार स्कूटर टायर, कूलर का पुराना पैड और ₹800 का स्टैंड फैन। जब इस संयोजन ने कमरे का तापमान 8 डिग्री तक कम कर दिया, तो यह देसी इंजीनियरिंग का चमत्कार बन गया। आईआईटी खड़गपुर के प्रो. अरिंदम चक्रवर्ती इसकी वैज्ञानिक व्याख्या करते हैं: यह वाष्पीकरणीय शीतलन के सिद्धांत पर कार्य करता है। टायर की गोलाकार संरचना हवा को लम्बे समय तक नम पैड के संपर्क में रखती है, जिससे ऊष्मा अवशोषण की प्रक्रिया अधिक कारगर हो जाती है। इस नवाचार की सबसे बड़ी खूबी यह थी कि इसने महज ₹200 के निवेश में वंचित तबके को गर्मी से लड़ने का हथियार दिया, जबकि पारम्परिक एसी की कीमत उनकी छह महीने की आय के बराबर थी।
सोशल मीडिया तूफान से वैश्विक प्रशंसा तक
पत्रकार तोफान ओझा के ट्विटर अकाउंट (@RealTofanOjha) पर साझा किए गए उस विस्मयकारी वीडियो ने इंटरनेट का नक्शा ही बदल दिया। मात्र 72 घंटों में 8.7 लाख व्यूज का आँकड़ा पार करते हुए यह वीडियो इंडियन इनोवेशन का प्रतीक बन गया। केंद्रीय ऊर्जा मंत्री आर. के. सिंह ने इसे ग्रामीण भारत के लिए वरदान बताया तो पर्यावरणविद् सुनीता नारायण ने कचरा प्रबंधन और ऊर्जा संरक्षण का आदर्श मॉडल की संज्ञा दी। मुंबई की गृहिणी सुमन देवी ने बताया कि इससे उनके बिजली बिल में 80% की कमी आई है, जबकि दिल्ली के रिक्शा चालक सुनील कुमार ने इसे गर्मी में जीवनरक्षक बताया। वीडियो की टिप्पणियों में अमेरिका के टेक्सास तक के लोगों ने इसके प्रयोग की सफलता की कहानियाँ साझा कीं, जहाँ एक भारतीय छात्र ने इसे अपने छात्रावास में लागू किया था।
MRF टायर और कूलर कंपनी वाले इस बंदे को ढूंढ रहे हैं 100 तोपों की सलामी देने के लिए 🔥😂 pic.twitter.com/sFN8ta3uA1
— Toofan Ojha (@RealTofanOjha) May 26, 2025
वैज्ञानिक अनुकूलन और उन्नत डिजाइन
इस देसी एसी की कार्यप्रणाली विज्ञान के मूलभूत सिद्धांतों पर आधारित है। जब पंखे की हवा कूलर पैड के नम तंतुओं से टकराती है तो पानी के वाष्पीकरण के लिए आवश्यक ऊष्मा वायु से अवशोषित हो जाती है। टायर इस प्रक्रिया में तीन महत्वपूर्ण भूमिकाएँ निभाता है, वायु प्रवाह को केन्द्रित करना, पैड के लिए ढाँचा प्रदान करना और रबर की तापरोधी प्रकृति के कारण ऊष्मा को परावर्तित करना। इंदौर के इंजीनियर प्रतीक मिश्रा ने इस डिजाइन में उल्लेखनीय सुधार करते हुए 20-वाट का सोलर पैनल जोड़ा, जिससे यह पूरी तरह ऊर्जा स्वतंत्र प्रणाली बन गई। चेन्नई के एक स्टार्टअप ने ऑटोमेटेड ड्रिप सिस्टम विकसित किया जो टाइमर के आधार पर पैड को नम रखता है। थर्मल इंजीनियर डॉ. मेघना शर्मा के अनुसार, यह प्रणाली कम आर्द्रता वाले क्षेत्रों में विशेष रूप से प्रभावी है जहाँ यह तापमान में 12°C तक की गिरावट ला सकती है।
सामाजिक क्रांति और आर्थिक बदलाव
इस सरल आविष्कार ने समाज के हर तबके को प्रभावित किया है। दिल्ली की कुश्ती कैंप बस्ती में सामुदायिक कूलिंग सेंटर बनाया गया जहाँ बच्चे अब दोपहर में पढ़ाई कर पाते हैं। बिहार के मधुबनी जिले में युवाओं ने टायर कूलर वर्कशॉप शुरू की जहाँ वे ₹500 लागत से तैयार उत्पाद ₹1200 में बेचकर रोजगार अर्जित कर रहे हैं। शकीला खातून नामक विधवा ने इसी तकनीक से पाँच यूनिट बनाकर अपने बच्चों की शिक्षा का खर्च उठाया। पर्यावरणीय लाभ भी उल्लेखनीय हैं – एक टायर-एसी प्रति माह 300 यूनिट बिजली बचाता है जो 240 किग्रा कार्बन उत्सर्जन कम करता है। भारत में प्रतिवर्ष 12.7 करोड़ टायर कचरे के रूप में फेंके जाते हैं जो अब उपयोगी संसाधन बन रहे हैं। छत्तीसगढ़ के बस्तर क्षेत्र में आदिवासियों ने स्थानीय संसाधनों का उपयोग करते हुए बाँस और साल पत्तों से वैकल्पिक मॉडल विकसित किया है।
ऐतिहासिक विरासत और भविष्य की दिशाएँ
यह आविष्कार भारत की सहज नवप्रवर्तन परंपरा का नवीनतम अध्याय है। डॉ. अनिल गुप्ता के अनुसार, मेवाड़ के राजस्थानी हवेलियों में 15वीं शताब्दी में मिट्टी के घड़ों से ठंडक पैदा की जाती थी। बंगाल में औपनिवेशिक काल में छतों पर गीले खस की टट्टियाँ लगाई जाती थीं। वर्तमान में राष्ट्रीय नवप्रवर्तन प्रतिष्ठान ने इस तकनीक को ग्रासरूट इनोवेशन के रूप में पंजीकृत किया है। भविष्य की योजनाओं में नैनो-टेक्नोलॉजी आधारित पैड शामिल हैं जो पानी की खपत 40% कम करेंगे। कर्नाटक सरकार ने स्कूलों में इस पर प्रायोगिक शिक्षा कार्यक्रम शुरू किया है। भारतीय विज्ञान संस्थान बैंगलोर ने एक ऐसा प्रोटोटाइप विकसित किया है जो सौर ऊर्जा और वर्षा जल संचयन को एकीकृत करता है। अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर अफ्रीका के 10 देशों के साथ तकनीक हस्तांतरण समझौते प्रगति पर हैं। जैसा कि मूल आविष्कारक रहमान शेख कहते हैं: समाधान महंगी तकनीक में नहीं, बल्कि प्रकृति के साथ सामंजस्य में निहित है। यह देसी एसी उसी सत्य का प्रतीक है जो भारत की सहज प्रतिभा को विश्व पटल पर स्थापित कर रहा है।