केंद्र सरकार ने 16 जनवरी को केंद्रीय कर्मचारियों के वेतन और पेंशन में वृद्धि के लिए आठवें वेतन आयोग के गठन की घोषणा की थी। यह घोषणा उस समय की गई जब दिल्ली में विधानसभा चुनाव चल रहे थे, और इस पर सवाल उठ रहे हैं कि क्या यह कदम कर्मचारियों के भले के लिए था, या फिर चुनावी लाभ के लिए किया गया था।
दिल्ली में केंद्रीय कर्मचारियों की संख्या अन्य शहरों और राज्यों की तुलना में सबसे अधिक है, और उनका वोट चुनावी परिणामों पर महत्वपूर्ण प्रभाव डालता है। यही कारण था कि सरकार ने चुनाव आयोग से मंजूरी लेने की आवश्यकता महसूस नहीं की, और चुनावी माहौल के बीच वेतन आयोग की घोषणा कर दी।
अब डेढ़ महीने से अधिक समय बीत चुका है, लेकिन आयोग की कमेटी का गठन नहीं हुआ है, और न ही इसके टर्म्स ऑफ रेफरेंसेज पर कोई गंभीर चर्चा हुई है। जानकार सूत्रों का कहना है कि अप्रैल या मई में टर्म्स ऑफ रेफरेंसेज पर विचार किया जाएगा और इसके बाद कमेटी का गठन किया जाएगा। इससे यह संकेत मिल रहे हैं कि आयोग की सिफारिशों में देरी हो सकती है।
आठवें वेतन आयोग को अपनी सिफारिशें देने में 15 से 18 महीने का समय लग सकता है, और ऐसा माना जा रहा है कि सिफारिशें 2026 के अंत तक भी नहीं आ पाएंगी। हालांकि, सरकार इसे जनवरी 2026 से लागू करने की योजना बना रही है, लेकिन सिफारिशें 2027 तक आ सकती हैं। लागू होने के बाद कर्मचारियों को एक वर्ष या उससे अधिक का बकाया दिया जाएगा।
इसका कार्यकाल 2027 तक रहेगा, जब पांच राज्यों के चुनाव होंगे, जिसमें उत्तर प्रदेश, गुजरात, और हिमाचल प्रदेश शामिल हैं। इस समय तक सिफारिशें आने की संभावना जताई जा रही है, जिससे कर्मचारियों को चुनावी साल में बड़ा फायदा हो सकता है।
यह देखना दिलचस्प होगा कि यह कदम वास्तव में कर्मचारियों के भले के लिए था, या फिर यह एक चुनावी रणनीति के रूप में लिया गया था। समय बताएगा कि आठवें वेतन आयोग की सिफारिशें कर्मचारियों के लिए कितना प्रभावी बदलाव लाती हैं।