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विदेश नीति की विफलता और चीन का बढ़ता प्रभाव

भारत की सेना ने ऑपरेशन सिंदूर में पराक्रम दिखाया, लेकिन विदेश नीति विफल रही। पड़ोसी और वैश्विक देश पाकिस्तान के साथ खड़े दिखे, भारत अंतरराष्ट्रीय मंच पर अकेला पड़ गया।

आपको याद होगा कि जब डोनाल्ड ट्रंप अमेरिका के राष्ट्रपति बने थे, तब उन्होंने वहां रह रहे अवैध अप्रवासियों को हथकड़ी और बेड़ियां पहनाकर उनके देश वापस भेजने का अभियान शुरू किया था। उस समय कोलंबिया ने अमेरिकी विमान को अपनी ज़मीन पर उतरने की अनुमति नहीं दी और उसे अमेरिका वापस लौटा दिया। कोलंबिया ने अपने नागरिकों को खुद के विमान से सम्मानपूर्वक वापस लाया।

आज जब संसदीय प्रतिनिधिमंडल के प्रमुख शशि थरूर ऑपरेशन सिंदूर पर वैश्विक समर्थन मांगने उसी कोलंबिया गए, तो कोलंबिया ने पाकिस्तान के मारे गए आतंकवादियों के लिए शोक व्यक्त किया और पाकिस्तान के प्रति सहानुभूति जताई। शशि थरूर असहज होकर रह गए।

सच क्या है, यह स्पष्ट नहीं, लेकिन भाजपा नेता सुब्रमण्यम स्वामी का दावा है कि पाकिस्तान ने चीन के लड़ाकू विमानों की मदद से हमारे पांच राफेल विमानों को मार गिराया। उनका कहना है कि इस युद्ध में चीन ने पाकिस्तान की सीधी मदद की।

अमेरिका के इशारे पर चलने वाले विश्व बैंक ने भी ऑपरेशन सिंदूर के दौरान पाकिस्तान को भारी वित्तीय सहायता दी।

वहीं, भारत का पारंपरिक मित्र रहा रूस भी अब पाकिस्तान की ओर झुकता नजर आ रहा है। रूस ने पाकिस्तान के साथ ₹22,000 करोड़ की एक परियोजना पर समझौता किया है।

इसका मतलब यह है कि चीन ने अपने दो सबसे करीबी मित्र, रूस और पाकिस्तान को एक-दूसरे के और करीब ला दिया है। इसके अलावा अज़रबैजान, चीन और तुर्की खुले रूप से पाकिस्तान के पक्ष में खड़े हैं। कुवैत समेत कई मुस्लिम देश भी पाकिस्तान के समर्थन में लामबंद हो गए हैं।

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आप भले ही तालिबान-तालिबान कहते रहें, लेकिन अफगानिस्तान जो कभी पाकिस्तान के खिलाफ था, अब चीन द्वारा पाकिस्तान के CPEC (चीन-पाकिस्तान इकोनॉमिक कॉरिडोर) में शामिल कर लिए जाने के बाद उसी खेमे में जा चुका है।

वहीं भारत से गया संसदीय प्रतिनिधिमंडल सिर्फ भारतीय डायस्पोरा से संवाद कर रहा है, जिसे केवल भारत में चारण मीडिया ANI दिखा रही है। प्रतिनिधिमंडल की किसी भी मुलाकात को लेकर न तो किसी देश के प्रधानमंत्री, राष्ट्रपति, राजा या विदेश मंत्री ने कोई औपचारिक बैठक की, न ही कोई सार्वजनिक समर्थन दिया।

ऑपरेशन सिंदूर में भारतीय सेना ने अपना शौर्य और पराक्रम तो दिखा दिया, लेकिन भारत की विदेश नीति पूरी तरह विफल होती नजर आई। यहां तक कि नेपाल तक ने भारत के समर्थन में एक भी बयान नहीं दिया।

साफ तौर पर कहा जा सकता है कि भारत के पड़ोसी देशों समेत दुनिया के ज़्यादातर देश भारत के पक्ष में खड़े नहीं हैं, यहां तक कि पापा भी नहीं।

पिछले 11 वर्षों में हम खुद को विश्वगुरु घोषित करते रहे, सीना ठोकते रहे कि हौंक देंगे, लेकिन चीन के सामने अभी भी यह कहा जा रहा है कि, ना कोई हमारी सीमा में घुसा है, ना किसी ने हमारी चौकी पर कब्जा किया है।

अगर इसके बावजूद भी आपको चीन खतरा नहीं लगता, तो आप पोगो देखिए।

बांग्लादेश चीन के साथ, नेपाल चीन के साथ, पाकिस्तान चीन के साथ, श्रीलंका चीन के साथ, भूटान चीन के साथ, म्यांमार चीन के साथ, मालदीव भी चीन के साथ, तो फिर हमारे साथ कौन है?

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अनिल यादव एक वरिष्ठ पत्रकार हैं, जिनकी कलम सच्चाई की गहराई और साहस की ऊंचाई को छूती है। सामाजिक न्याय, राजनीति और ज्वलंत मुद्दों पर पैनी नज़र रखने वाले अनिल की रिपोर्टिंग हर खबर को जीवंत कर देती है। उनके लेख पढ़ने के लिए लगातार OBC Awaaz से जुड़े रहें, और ताज़ा अपडेट के लिए उन्हें एक्स (ट्विटर) पर भी फॉलो करें।

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