सुप्रीम कोर्ट ने गंगा नदी में बढ़ते प्रदूषण को लेकर एनजीटी द्वारा बिहार सरकार पर लगाए गए 50,000 रुपये के आर्थिक दंड पर फिलहाल रोक लगा दी है। शीर्ष अदालत ने केंद्र सरकार से इस मामले पर चार हफ्तों में जवाब देने को कहा है। यह फैसला गंगा सफाई और पर्यावरणीय नियमों के क्रियान्वयन को लेकर एक महत्वपूर्ण मोड़ साबित हो सकता है।
क्या है मामला?
राष्ट्रीय हरित अधिकरण (एनजीटी) ने गंगा नदी में प्रदूषण की रोकथाम को लेकर बिहार सरकार की जिम्मेदारियों की समीक्षा की थी। इस दौरान एनजीटी ने राज्य सरकार को निर्देश दिया था कि वह गंगा के प्रवेश और निकास बिंदुओं से जल नमूने एकत्र कर उनकी गुणवत्ता की रिपोर्ट प्रस्तुत करे। साथ ही, जहां गंगा की सहायक नदियां मिलती हैं, वहां के भी जल नमूने जांच के लिए जमा करने के निर्देश दिए गए थे।
बिहार सरकार द्वारा इन निर्देशों का अनुपालन न करने पर एनजीटी ने राज्य सरकार पर 50,000 रुपये का आर्थिक दंड लगाया और मुख्य सचिव को वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से पेश होने का आदेश दिया था।
सुप्रीम कोर्ट का हस्तक्षेप
बिहार सरकार ने एनजीटी के इस आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी। इस पर सुनवाई करते हुए न्यायमूर्ति बीआर गवई और न्यायमूर्ति ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की पीठ ने केंद्र सरकार को नोटिस जारी कर इस मुद्दे पर जवाब देने को कहा है। कोर्ट ने चार हफ्तों में स्थिति स्पष्ट करने को कहा है और तब तक के लिए आर्थिक दंड के भुगतान पर रोक लगा दी है।
क्या होगा आगे?
अब सभी की नजरें केंद्र सरकार की प्रतिक्रिया और सुप्रीम कोर्ट के आगामी फैसले पर टिकी हैं। यह मामला गंगा नदी की सफाई और पर्यावरणीय नीतियों के क्रियान्वयन को लेकर एक अहम मोड़ साबित हो सकता है।