मुझे यहूदियों से कोई हमदर्दी नहीं। इसका कारण धार्मिक नहीं है, बल्कि यह है कि अगर वे बेंजामिन नेतन्याहू द्वारा गाज़ा में किए गए कत्लेआम का विरोध करते, तो निश्चित ही मुझे आज उनसे हमदर्दी होती।
इज़राइलियों ने गाज़ा के मासूम बच्चों और महिलाओं की मौत पर मीम बनाए, उसका जश्न मनाया। उन्होंने बेंजामिन नेतन्याहू की सरकार को बार-बार इसी कारण से चुना, और आज वही सरकार उनके खिलाफ हो गई है। जब वे खुद कटोरा लेकर सड़कों और अपने खंडहर बने घरों के सामने खड़े हैं, तो उनसे हमदर्दी कैसी?
बेंजामिन नेतन्याहू ने धार्मिक नफ़रत, गाज़ा में नरसंहार और “ग्रैंड इज़राइल” के विचार पर राजनीति करके इज़राइल में लगभग 29 वर्षों तक सत्ता पाई है, और इज़राइली जनता लगातार उन्हें जिताती रही है।
भाई, जब हिटलर तुम्हें गैस चैंबरों में डालकर मार रहा था, तुम पूरी दुनिया में शरण के लिए भटक रहे थे। कोई भी देश तुम्हें शरण नहीं दे रहा था। तब तुम नंगे-भूखे फिलिस्तीन के तट पर खड़े होकर मानवीय आधार पर शरण की भीख मांग रहे थे, और फिलिस्तीनियों ने तुम्हें शरण दी। मान लिया कि तुमने ज़मीन हथिया ली, ब्रिटिश हुकूमत से साजिश करके “इज़राइल” नामक राष्ट्र बना लिया, पर अब तो चैन से रहते, “जियो और जीने दो” की नीति अपनाते।
मगर नहीं… जिन फिलिस्तीनियों ने मानवता के आधार पर तुम्हें शरण दी, तुमने उन्हीं पर अत्याचार शुरू कर दिए।
ध्यान दें कि 14 मई 1948 को जब इज़राइल की स्थापना हुई, तो संयुक्त राष्ट्र के विभाजन प्रस्ताव (UN Partition Plan 181, 1947) के तहत फिलिस्तीन के भूभाग का बंटवारा हुआ था।
इस प्रस्ताव के तहत ब्रिटिश शासित फिलिस्तीन को दो भागों में बांटा गया: एक यहूदी राज्य (इज़राइल) और एक अरब राज्य (फिलिस्तीन), जिसमें यरुशलम को अंतरराष्ट्रीय नियंत्रण में रखा जाना था, यानी ना फिलिस्तीन, ना इज़राइल।
1948 के इस प्रस्ताव के अनुसार, यहूदियों को फिलिस्तीन की लगभग 55% भूमि दी गई, जबकि उस समय यहूदी आबादी कुल जनसंख्या का मात्र 33% थी। वहीं फिलिस्तीनियों को, जो 67% थे, केवल 45% भूभाग दिया गया।
यहूदी लगभग 6 लाख थे और फिलिस्तीनी 12 लाख। मतलब कम आबादी को ज्यादा ज़मीन और ज्यादा आबादी को कम।
यहूदियों को गैलील, तटीय मैदान और नेगेव रेगिस्तान के क्षेत्र दे दिए गए, जबकि फिलिस्तीनियों को उनके बहुसंख्यक इलाकों से हटाया गया। इसके परिणामस्वरूप लगभग 7 लाख फिलिस्तीनी अपने घरों से विस्थापित हुए, जिसे “नकबा” यानी विपदा कहा गया।
इसके बाद 1948 में इज़राइल-फिलिस्तीन युद्ध हुआ और यूरोपीय देशों ने इज़राइल का समर्थन किया। यहूदियों ने फिलिस्तीन की 78% ज़मीन पर कब्ज़ा कर लिया, जिनमें जाफ़ा, लिडा, रामले, गैलील और नेगेव शामिल थे। और जिनका देश कभी था, वे फिलिस्तीनी 22% हिस्से, वेस्ट बैंक और गाज़ा तक सिमट गए, जिस पर भी मिस्र और जॉर्डन का नियंत्रण रहा।
1967 के छह दिवसीय युद्ध में इज़राइल ने येरुशलम पर भी कब्जा कर लिया, जो अंतरराष्ट्रीय नियंत्रण में था।
अटल बिहारी वाजपेयी ने 1977 में संसद में भाषण दिया था, जिसमें उन्होंने इज़राइल से फिलिस्तीनियों को उनकी ज़मीन लौटाने की बात कही थी।
इसके बाद पश्चिमी देशों ने यहूदियों को हर तरह की मदद दी। यहूदी अपने सामर्थ्य से ताकतवर और धनवान बनते गए और इज़राइल एक मजबूत और ज़ालिम राष्ट्र बन गया।
अब उसे गाज़ा चाहिए, वेस्ट बैंक चाहिए और “ग्रैंड इज़राइल” बनाने के लिए पूरा अरब क्षेत्र चाहिए।
2007 में हमास के गाज़ा पर नियंत्रण के बाद इज़राइल ने मिस्र के साथ मिलकर गाज़ा की भूमि, समुद्र और वायु सीमाओं पर लगभग 100% नाकाबंदी कर दी।
इज़राइल ने इरेज़ और केरेम शालोम जैसे क्रॉसिंग पॉइंट्स पर पूरा नियंत्रण ले लिया, यानी इज़राइल की अनुमति के बिना गाज़ा में कोई भी व्यक्ति या सामान नहीं जा सकता। मिस्र की रफ़ा क्रॉसिंग भी आंशिक रूप से इज़राइल की निगरानी में आ गई।
गाज़ा की 21 लाख आबादी के लिए खाद्य, पानी और दवाओं जैसी बुनियादी चीज़ों पर प्रतिबंध लगाया गया। इज़राइल ने केवल 25% आवश्यकताओं की आपूर्ति की, जिससे गाज़ा “खुली जेल” बन गई।
गाज़ा की 70-80% बिजली इज़राइल से आती है। समुद्री सीमा 6-12 मील तक सीमित कर दी गई। मछुआरे क्या पकड़ेंगे और कितना खाएंगे, उस पर भी निगरानी।
यह सब इज़राइल ने “हमास” को आतंकवादी संगठन बताकर किया, जबकि हमास को उसी ने 1970-80 के दशक में PLO के प्रभाव को कम करने के लिए बढ़ावा दिया था।
1993 के ओस्लो समझौते के तहत वेस्ट बैंक को तीन भागों (A, B, C) में बांटा गया:
- A: 18% — प्रशासन और सुरक्षा, दोनों PA के नियंत्रण में
- B: 22% — प्रशासन PA का, सुरक्षा साझा
- C: 60% — पूर्ण इज़राइली नियंत्रण
वर्तमान में इज़राइल वेस्ट बैंक के 60-70% क्षेत्र पर प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से कब्जा रखता है। “अल-अक्सा मस्जिद” समेत।
यहूदी बस्तियाँ जो 150 से अधिक हैं और वेस्ट बैंक का 15-20% कवर करती हैं, वे अंतरराष्ट्रीय कानून के तहत अवैध हैं, फिर भी इज़राइल उन्हें वैध मानता है। 2023 में उसने 22 नई बस्तियों की अनुमति दी।
इज़राइल का वेस्ट बैंक पर 100% सैन्य नियंत्रण है चेकपॉइंट, सड़कें, और शिविरों पर छापेमारी आम है। जेरिको का “अकाबात जब्र शरणार्थी शिविर” इसका उदाहरण है, जहां इज़राइली सेना बुलडोज़र लेकर नियमित रूप से छापेमारी करती है।
क्या यह ज़ुल्म नहीं है? केवल इसलिए कि हमास गाज़ा में एक सशक्त सैन्य बल है?
भारत सरकार ने आज तक हमास को आतंकवादी संगठन घोषित नहीं किया है।
इज़राइल ने गाज़ा में 2007 के बाद 5 बड़े सैन्य अभियान चलाए हैं, जिनमें 2023-25 का सबसे घातक संघर्ष जारी है।
अमेरिका किसी को भी आतंकवादी बता देता है और फिर इज़राइल जैसे देशों को पूरे देश को तबाह करने का अधिकार मिल जाता है।
इस सब के बावजूद, इज़राइल के आम नागरिकों ने इन घटनाओं को देखा, सहा नहीं बल्कि इन पर जश्न मनाया। यही कारण है कि जब वे आज रो रहे हैं, बिलख रहे हैं, तो भी मुझे उनसे कोई हमदर्दी नहीं होती।
भारत को भी 2014 से पहले कोई हमदर्दी नहीं थी लेकिन अब…?
यह तथ्य है कि फिलिस्तीन ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को 10 फरवरी 2018 को अपने सर्वोच्च नागरिक सम्मान “ग्रैंड कॉलर ऑफ द स्टेट ऑफ फिलिस्तीन” से सम्मानित किया था।