जेनसोल इंजीनियरिंग घोटाला ने एक बार फिर इस सवाल को ज़िंदा कर दिया है कि क्या भारत में कॉर्पोरेट कंपनियों के पास पारदर्शिता की कोई जवाबदेही बची है? इस घोटाले की तह में उतरें, तो इसमें सिर्फ पैसे की हेराफेरी नहीं, बल्कि सिस्टम से खिलवाड़ और निवेशकों के भरोसे की नीलामी दिखाई देती है।
यह कहानी तब सामने आई जब भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (SEBI) ने जेनसोल इंजीनियरिंग लिमिटेड (GEL) के वित्तीय लेन-देन पर नज़र डालनी शुरू की। साल 2021 से 2024 के बीच GEL ने दो सरकारी संस्थानों — IREDA और PFC — से कुल 978 करोड़ रुपये का टर्म लोन लिया। दावा किया गया कि इन पैसों का इस्तेमाल 6,400 इलेक्ट्रिक वाहनों की खरीद के लिए किया जाएगा, जिन्हें आगे चलकर ‘ब्लू स्मार्ट’ को लीज़ पर देना था।
पर कंपनी ने शेयर बाजार को जो जानकारी दी, उसमें यह सामने आया कि उन्होंने सिर्फ 4,704 इलेक्ट्रिक वाहन खरीदे और उन पर कुल खर्च 568 करोड़ रुपये हुआ। यानि की अनुमानित खर्च 830 करोड़ रुपये के मुकाबले 262 करोड़ रुपये का कोई हिसाब-किताब नहीं है।
यहीं से शुरू हुआ जेनसोल इंजीनियरिंग घोटाला का असली खुलासा। SEBI की जांच में यह पाया गया कि इलेक्ट्रिक वाहनों की खरीद के नाम पर जो पैसे गो ऑटो नामक कंपनी को ट्रांसफर किए गए, वो फिर या तो वापस GEL में लौट आए या फिर उन संस्थाओं में भेजे गए, जो जेनसोल के प्रवर्तकों — अनमोल सिंह जग्गी और पुनीत सिंह जग्गी — से जुड़ी थीं।
सबसे गंभीर आरोप तब सामने आया जब यह पता चला कि इस पूरे ट्रांजैक्शन चैन के ज़रिए 43 करोड़ रुपये डीएलएफ के ‘द कैमेलियास’ प्रोजेक्ट में एक आलीशान अपार्टमेंट खरीदने में लगाए गए। और वह अपार्टमेंट एक ऐसी फर्म के नाम पर लिया गया, जिसमें दोनों जग्गी भाई साझेदार थे। यानि ईवी के नाम पर लिया गया कर्ज सीधे रियल एस्टेट में झोंक दिया गया।
SEBI ने इस पर सख्त रुख अपनाते हुए अनमोल और पुनीत सिंह जग्गी को न केवल डायरेक्टर पद से हटाया, बल्कि उन्हें किसी भी कंपनी में प्रबंधकीय पद पर आने से भी रोक दिया गया। साथ ही, जेनसोल इंजीनियरिंग द्वारा घोषित शेयर स्प्लिट पर भी रोक लगा दी गई।
इस घोटाले के बाद कंपनी के शेयर अपने उच्चतम स्तर से करीब 90% गिर चुके हैं और इससे एक लाख से अधिक छोटे निवेशक भारी नुकसान में फंस चुके हैं।
इस बीच, कंपनी के स्वतंत्र निदेशक अरुण मेनन ने भी इस्तीफा दे दिया। उन्होंने अपने त्यागपत्र में स्पष्ट किया कि कंपनी के कामकाज में पारदर्शिता की भारी कमी है और पूंजीगत खर्चों को लेकर गहरी चिंता बनी हुई है।
जेनसोल इंजीनियरिंग घोटाला महज एक फ्रॉड नहीं, बल्कि उन तमाम निवेशकों के सपनों का कुचल जाना है, जिन्होंने इस कंपनी पर भरोसा किया था। यह एक चेतावनी है कि चाहे इलेक्ट्रिक व्हीकल्स हों या स्टार्टअप्स — पारदर्शिता और जवाबदेही के बिना विकास की कोई दिशा नहीं।