भारत की सेना का इतिहास केवल युद्धों की जीत का नहीं, बल्कि हर उस पल का गवाह रहा है जब देश को उसकी सबसे ज़्यादा ज़रूरत थी। अपनी वीरता, अनुशासन और अडिग संकल्प के दम पर भारतीय सेना ने हर बार ये साबित किया कि वह सिर्फ एक ताकत नहीं, बल्कि राष्ट्र की आत्मा है।
पराक्रम की अनगिनत मिसालें
- 1947: कश्मीर संकट के दौरान ब्रिगेडियर उस्मान के नेतृत्व में कबायलियों से लड़ाई और कश्मीर की रक्षा।
- 1961: ऑपरेशन विजय के तहत गोवा को पुर्तगाली शासन से मुक्त कर भारत में मिलाना।
- 1965: वीर अब्दुल हमीद की शहादत और निर्णायक मोड़ पर युद्ध की जीत।
- 1971: 93,000 पाक सैनिकों का आत्मसमर्पण, बांग्लादेश का निर्माण।
- 1975: सिक्किम को महज़ 30 मिनट में भारत में शामिल करना।
- श्रीलंका: IPKF द्वारा लिट्टे का खात्मा।
- 1999: कारगिल में दुश्मन को खदेड़ कर तिरंगा फहराना।
- 2016: उरी हमले के बाद सर्जिकल स्ट्राइक।
- 2025: पहलगाम हमले के जवाब में “ऑपरेशन सिंदूर”।
हर मिशन में एक बात साफ रही, जब तक काम पूरा न हो, सेना को कभी नहीं रोका गया
अब सवाल उठ रहे हैं…
हाल ही में ऑपरेशन सिंदूर के बीच में सीज़फायर की घोषणा ने कई लोगों को हैरान कर दिया।
जब सेना ने मोर्चा संभाल लिया था, तो क्या ज़रूरत थी अचानक उसे रोकने की?
इसके साथ ही कर्नल सोफिया कुरैशी जैसे अधिकारियों पर सांप्रदायिक टिप्पणियों और हमलों की खबरें सामने आ रही हैं, यह सिर्फ दुर्भाग्यपूर्ण नहीं, बल्कि राष्ट्रीय गौरव पर चोट है।
क्या सरकार सेना की आड़ में?
अब यह चर्चा भी तेज़ हो रही है कि क्या मौजूदा नेतृत्व, सेना को आगे कर खुद जवाबदेही से बच रहा है?
इतिहास में कभी सेना ने नेतृत्व की आड़ नहीं ली, लेकिन अब क्या नेता सेना के पीछे छिप रहे हैं?
सवाल सिर्फ विपक्ष का नहीं…
जब हमारी सेना जीत रही थी, तब सीज़फायर क्यों?
यह सवाल अब आम नागरिकों का बन गया है। विपक्ष की राजनीति से परे, ये सवाल देश की आत्मा से जुड़ा है।
इतिहास गवाह रहेगा
सत्ता बदलेगी, चेहरे बदलेंगे, लेकिन सेना का बलिदान और उसके साथ किया गया व्यवहार इतिहास कभी नहीं भूलेगा।
जय हिंद।
जय हिंद की सेना।