एक वक्त था जब पत्रकारिता को लोकतंत्र का चौथा स्तंभ कहा जाता था, लेकिन अब वही पत्रकारिता तमाशा बनकर रह गई है, खासतौर पर जब देश की ‘ग़ोदी मीडिया’ किसी बेतुकी खबर को ब्रेकिंग बना देती है। इसका ताज़ा उदाहरण है एलन मस्क के पिता, एरल मस्क, की भारत यात्रा।
देश में बेरोज़गारी चरम पर है, महंगाई आम लोगों की कमर तोड़ रही है, किसान फिर आंदोलन के लिए तैयार हो रहे हैं, और गांवों में आज भी अस्पताल, स्कूल, पानी जैसी बुनियादी सुविधाएं नहीं हैं, लेकिन टीवी पर जो चल रहा है, वो कुछ और ही है।
ऐसा लग रहा जैसे मोदी जी के पापा आ रहे हों
ये लाइन सोशल मीडिया पर मज़ाक में कही गई, लेकिन ग़ोदी मीडिया की कवरेज देख लगेगा कि इसमें सच्चाई ही ज़्यादा है।
हर न्यूज़ चैनल पर यही ब्रेकिंग:
Papa Musk आ रहे हैं!
क्या Modi से मुलाकात तय है?
मोदी सरकार के ‘नए युग’ में मस्क परिवार भी हुआ प्रभावित
पापा Musk ने मोदी मॉडल की तारीफ की!
Papa Musk बोले, भारत बहुत सुंदर है!
ऐसा दिखाया जा रहा है जैसे कोई राष्ट्राध्यक्ष नहीं, बल्कि कोई राजघराने के बुज़ुर्ग आ रहे हों। एयरपोर्ट से लेकर होटल तक की एक-एक डिटेल पर लाइव कवरेज हो रही है। कुछ चैनल तो उनके चलने के तरीके और मुस्कुराने की वजह तक पर विशेष विश्लेषण कर रहे हैं।
क्या यह पत्रकारिता है या कोई कॉमेडी शो?
सोचिए, ये सब एक ऐसे इंसान के लिए हो रहा है जो न नेता है, न निवेशक, न वैज्ञानिक, बस एक अमीर शख्स का पिता है। और उनका बेटा एलन मस्क भी इस दौरे में शामिल नहीं है। फिर इतनी हाय-तौबा क्यों?
असल मुद्दों की कोई जगह नहीं
देश में युवा नौकरी के लिए तरस रहे हैं।
महंगाई ने आम आदमी की रसोई तक को झुलसा दिया है।
गांवों में इलाज मिलना तो सपना बन चुका है।
किसानों की हालत पहले जैसी ही दयनीय है।
इन सब मुद्दों की चर्चा तो छोड़िए, मीडिया इन पर एक लाइन भी नहीं दिखा रही। क्योंकि पूरा फोकस है, Papa Musk कहाँ ठहरेंगे? और क्या वे मोदी जी से मिलेंगे?
जैसे कोई VIP नहीं, भगवान उतर रहे हों।
मकसद साफ है, ध्यान भटकाना, सत्ता चमकाना, सवालों से बचाना।
हर बार जब कोई घोटाला सामने आने वाला होता है, कोई आर्थिक आंकड़ा सरकार की पोल खोलता है, या कोई मंत्री नाकाम साबित होता है, तभी मीडिया अचानक भूत प्रेत, तेंदुआ, बॉलीवुड ड्रामा, या इस बार की तरह Papa Musk की खबरों में उलझा देती है।
अब सवाल ये है, क्या देश ऐसे ही चल सकता है?
पत्रकारिता की जो भूमिका थी, सच बोलना, सवाल उठाना, जनता की आवाज़ बनना, वो अब बस नाम की रह गई है। जो मीडिया सत्ता से जवाब मांगनी चाहिए, वो आज सत्ता की तारीफ में डूबी है।
Data बोलता है:
CMIE के मुताबिक मई 2025 में भारत की बेरोज़गारी दर 6.1% थी।
लेकिन ये मीडिया को नहीं दिख रहा, उन्हें तो बस पापा मस्क दिख रहे हैं।
अब क्या करें?
जब तक जनता खुद जागरूक नहीं होगी, कुछ नहीं बदलेगा।
हमें देखना होगा कि हम किस चैनल को देख रहे हैं, किस खबर को शेयर कर रहे हैं, और किस पत्रकार की रिपोर्टिंग को सपोर्ट कर रहे हैं।
ज़िम्मेदार मीडिया को बढ़ावा दीजिए।
फेक न्यूज़ और प्रोपेगैंडा फैलाने वालों को नजरअंदाज़ करिए।
ये देश मस्क से नहीं, मेहनतकश लोगों से बनेगा।
एलन मस्क के पिता आएं या एलियन, फर्क तब पड़ेगा जब हम सवाल पूछेंगे।
जिस देश में किसान आत्महत्या करे और मीडिया अमीर के बाप की एंट्री को ब्रेकिंग बनाए, वहां क्रांति नहीं, जागरूकता की ज़रूरत है।