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GST नियमों का पालन अनिवार्य, योजनाओं और टर्नओवर पर लगेगा टैक्स

अब 20 लाख से ज्यादा टर्नओवर वाली सहकारी समितियों को GST रजिस्ट्रेशन कराना होगा। MDS-GDS जैसी योजनाओं पर भी टैक्स लगेगा। सरकार सख्ती से निगरानी करेगी।

अब सहकारी समितियों को भी GST के नियमों का पालन करना होगा। अगर किसी समिति का सालाना टर्नओवर 20 लाख रुपये से ज्यादा है, तो उसे GST के तहत रजिस्ट्रेशन कराना जरूरी होगा।

केंद्रीय GST विभाग ने केरल हाई कोर्ट को दी गई रिपोर्ट में यह जानकारी दी है। रिपोर्ट में कहा गया है कि कई सहकारी समितियाँ कारोबार कर रही हैं लेकिन GST के तहत पंजीकृत नहीं हैं। यह साफ तौर पर कानून का उल्लंघन है।

GST कानून के तहत जो भी संस्था या व्यक्ति तय सीमा से अधिक का व्यवसाय करता है, उसे GST देना ही होगा। इससे सहकारी समितियाँ अब पूरी तरह टैक्स के दायरे में आ गई हैं।

मासिक जमा और समूह योजना पर भी लगेगा टैक्स

सहकारी समितियाँ आजकल अलग-अलग जमा योजनाएँ चला रही हैं। इनमें मासिक जमा योजना (MDS) और समूह जमा योजना (GDS) प्रमुख हैं।
ये योजनाएँ काफी हद तक चिट फंड स्कीम जैसी होती हैं, जिसमें सदस्य हर महीने कुछ राशि जमा करते हैं और बाद में पूरी रकम किसी एक को दी जाती है।

GST विभाग का मानना है कि ये योजनाएँ भी एक तरह की सेवा हैं। इन सेवाओं से समितियों को जो लाभ मिलता है, वो GST के अंतर्गत आता है।
इसलिए अब इन योजनाओं पर भी टैक्स लगेगा। यानी, समितियाँ इन सेवाओं से कमाए पैसे पर GST चुकाएँगी।

चिट फंड योजनाओं पर 12% से 18% तक GST

जो समितियाँ चिट फंड जैसी स्कीम चलाती हैं, उन्हें अब 12% से 18% तक GST देना होगा।
अगर समिति इनपुट टैक्स क्रेडिट नहीं लेती, तो 12% टैक्स देना पड़ेगा। लेकिन अगर टैक्स क्रेडिट का लाभ लिया जा रहा है, तो दर 18% तक बढ़ सकती है।

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इस फैसले से यह साफ है कि लोगों से जमा की गई राशि और उस पर दी जा रही सेवाओं पर अब सरकार की नजर है। इससे टैक्स सिस्टम ज्यादा पारदर्शी और संगठित होगा।

हाई कोर्ट की सख्ती से खुला राज

केरल हाई कोर्ट ने इस पूरे मामले में बड़ी भूमिका निभाई। कोर्ट के पास कुछ निवेशकों की शिकायतें पहुंची थीं। उन्होंने आरोप लगाया था कि सहकारी समितियों ने उनका पैसा समय पर नहीं लौटाया।

इस पर कोर्ट ने GST विभाग से रिपोर्ट मांगी। जांच में पता चला कि कई समितियाँ बिना टैक्स चुकाए योजनाएँ चला रही हैं, और सरकारी नियमों की अनदेखी कर रही हैं।
कुछ समितियाँ तो लोन भी दे रही हैं, वो भी काफी ऊँचे ब्याज दर पर। इससे आम लोगों को नुकसान हो रहा है और सरकार को राजस्व का घाटा।

सरकार को हो रहा बड़ा राजस्व नुकसान

GST विभाग की रिपोर्ट में बताया गया है कि सहकारी समितियाँ रजिस्ट्रेशन फीस, स्टांप ड्यूटी और टैक्स नहीं दे रहीं। इससे सरकार को हर साल करोड़ों रुपये का नुकसान हो रहा है।

इन समितियों का संचालन राजनीतिक संगठनों और सामाजिक समूहों द्वारा किया जा रहा है। लेकिन ये समितियाँ कोई रजिस्ट्रेशन नहीं करवा रही हैं, और बड़े स्तर पर आर्थिक लेन-देन कर रही हैं।

रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि समितियाँ चिट फंड एक्ट, 1982 के तहत पंजीकृत हैं, लेकिन फिर भी वे GST के नियमों को नहीं मान रही हैं।

अब होगी सख्त निगरानी और कार्यवाही

GST विभाग ने साफ कर दिया है कि अब इन सहकारी समितियों की सख्त निगरानी होगी।
विभाग ने कोर्ट को बताया कि जो भी समिति तय सीमा से ज्यादा कारोबार कर रही है, उसका पंजीकरण किया जाएगा और उस पर टैक्स लगाया जाएगा।

इसके अलावा, इनकी गतिविधियों की नियमित जांच होगी, ताकि कोई समिति टैक्स चोरी न कर सके। सरकार अब ऐसी समितियों को चिन्हित करके उनके खिलाफ कानूनी कार्यवाही भी कर सकती है।

नियमों का पालन करना अब जरूरी

यह फैसला एक बड़ा बदलाव है। अब सहकारी समितियाँ भी उन व्यवसायिक संस्थाओं की तरह मानी जाएँगी, जो सेवा देती हैं और कमाई करती हैं। इसी वजह से अब उन्हें भी GST देना अनिवार्य होगा।

इस कदम से न सिर्फ सरकार का राजस्व बढ़ेगा, बल्कि निवेशकों का भरोसा भी मजबूत होगा।
अब समितियों को पारदर्शिता से काम करना होगा और हर लेन-देन का हिसाब रखना होगा।
यह देश के आर्थिक सिस्टम को मजबूत और निष्पक्ष बनाने की दिशा में बड़ा कदम है।

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रीतु कुमारी OBC Awaaz की एक उत्साही लेखिका हैं, जिन्होंने अपनी पत्रकारिता की पढ़ाई बीजेएमसी (BJMC), JIMS इंजीनियरिंग मैनेजमेंट एंड टेक्निकल कैंपस ग्रेटर नोएडा से पूरी की है। वे समसामयिक समाचारों पर आधारित कहानियाँ और रिपोर्ट लिखने में विशेष रुचि रखती हैं। सामाजिक मुद्दों को आम लोगों की आवाज़ बनाकर प्रस्तुत करना उनका उद्देश्य है। लेखन के अलावा रीतु को फोटोग्राफी का शौक है, और वे एक अच्छी फोटोग्राफर बनने का सपना भी देखती है। रीतु अपने कैमरे के ज़रिए समाज के अनदेखे पहलुओं को उजागर करना चाहती है।

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