हिमाचल के युवा सेब किसान अब सरकार से तुर्की, ईरान, इराक और चीन से आने वाले सेब पर पूरी तरह रोक लगाने की मांग कर रहे हैं। उनका कहना है कि इन देशों का सस्ता सेब भारतीय बाजार में आकर लोकल किसानों की मेहनत और कमाई पर पानी फेर देता है। इस बार तुर्की खासतौर पर निशाने पर है क्योंकि हाल ही में उसने भारत-पाकिस्तान के विवाद में खुलकर पाकिस्तान का समर्थन किया था।
शिमला के जुब्बल इलाके से आने वाले एमबीए पास और सॉफ्टवेयर इंजीनियर से किसान बने अंकित ब्रमता कहते हैं, “मैंने कॉर्पोरेट की नौकरी छोड़ पांच साल पहले सेब की खेती शुरू की। खेती में अब भी इंसानी मेहनत की अहमियत है, AI सब कुछ नहीं कर सकता। मैं चाहता हूं कि ज्यादा युवा खेती की तरफ लौटें। लेकिन इसके लिए जरूरी है कि सरकार तुर्की जैसे देशों से आने वाले सेब पर बैन लगाए।”
अंकित बताते हैं कि भारत हर साल करीब 80 लाख सेब बॉक्स तुर्की से मंगाता है। इसके अलावा ईरान से भी बड़ी मात्रा में सेब आता है, खासकर अक्टूबर से अप्रैल के बीच, जब भारतीय सेब बाज़ार में होता है। इस वजह से लोकल किसानों को नुकसान उठाना पड़ता है।
उनके मुताबिक, भारत को हर साल करीब 15 करोड़ सेब बॉक्स की जरूरत होती है। इनमें से जम्मू-कश्मीर, हिमाचल और उत्तराखंड मिलकर 12 करोड़ बॉक्स तैयार करते हैं, बाकी 3 करोड़ बॉक्स आयात होते हैं – जिनमें 60% सिर्फ तुर्की और ईरान से आते हैं। “अगर सिर्फ तुर्की से आने वाले सेब का 30% भी रोका जाए, तो इससे देसी किसानों को सीधा फायदा होगा। लोकल कंपनियां इंडियन सेब खरीदेंगी, इंफ्रास्ट्रक्चर बेहतर होगा और किसान को ज्यादा दाम मिलेंगे,” अंकित कहते हैं।
किसानों का कहना है कि जब पहले से ही देसी सेब इंटरनेशनल प्राइस से मुकाबला कर रहा है, तब बाहर से सस्ते सेब लाकर बाजार भर देना सही नहीं है। हिमाचल की 11 लाख हेक्टेयर कृषि भूमि में से 2 लाख हेक्टेयर में फल उगते हैं, और 1 लाख हेक्टेयर सिर्फ सेब को समर्पित है। हर साल करीब 5.5 लाख मीट्रिक टन सेब पैदा होता है, जिससे 5,500 करोड़ रुपये की कमाई होती है।
अब अंकित ब्रमता, अमन डोगरा और अक्षय ठाकुर जैसे पढ़े-लिखे युवा किसान सिर्फ दाम की बात नहीं कर रहे – वे देश की अर्थव्यवस्था, गांवों के विकास और भारतीय खेती के भविष्य को लेकर अपनी आवाज बुलंद कर रहे हैं। ये सिर्फ हिमाचल का नहीं, पूरे देश के किसानों का मुद्दा बनता जा रहा है।