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हिंदू धर्म बनाम हिंदुत्व: दर्शन की लड़ाई या सत्ता की रणनीति?

आपको देश के एक बहुसंख्यक धर्म के चरित्र में हो रहा परिवर्तन यदि नहीं दिख रहा है, तो निश्चित रूप से आपकी अपनी मानसिक बौद्धिकता सवालों के घेरे में है।

दरअसल आप मानें या न मानें, मगर यह सच है कि जिस सनातन धर्म या हिंदू धर्म का चरित्र हजारों साल से अप्रभावित और अपरिवर्तित रहा है, वह अब उसके मानने वालों के 35-40% वर्ग के लिए पूरी तरह बदल चुका है।

यह 35-40% लोग हिंदू से हिंदुत्ववादी हो गए हैं और शेष 60-65% लोग अपने पारंपरिक सनातन धर्म/हिंदू धर्म को बचाने के लिए संघर्ष कर रहे हैं।

दरअसल हिंदू धर्म/सनातन धर्म में केवल और केवल श्रद्धा है, केवल और केवल प्रेम है; शक्ति की पूजा है तो कमजोर, यहाँ तक कि चींटी तक के लिए चिंता है; प्रकृति के हर रूप को पूजने का एक दर्शन है; धरती से आसमान तक के प्रति श्रद्धा है तो मानवीय आधार पर हर इंसान से प्रेम का भाव भी है।

हिंदू दर्शन में दधीचि हैं, सत्यवान और सावित्री हैं, राजा हरिश्चंद्र हैं तो 1989 के पहले के राम हैं; तो “हिंदुत्व” में नाथूराम गोडसे, गोलवलकर, सावरकर और उनकी प्रेरणा से फैले आज के सारे चरित्र हैं, और देश का मुखिया उनका सबसे बड़ा “नायक”…

दधीचि, सत्यवान, सावित्री और राजा हरिश्चंद्र का हिंदू दर्शन ही स्वामी विवेकानंद का हिंदू धर्म था, जिसका मूल मंत्र था:
उत्तिष्ठत् जाग्रत् प्राप्य वरान्निबोधत् — अर्थात उठो, जागो और तब तक नहीं रुको जब तक लक्ष्य प्राप्त न हो जाए।

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इसके अतिरिक्त, स्वामी विवेकानंद की शिक्षाओं में आत्मनो मोक्षार्थं जगद्धिताय च, अर्थात अपने मोक्ष और विश्व के कल्याण के लिए भी एक केंद्रीय विचार था, जो व्यक्ति के व्यक्तिगत मुक्ति और सामाजिक कल्याण के समन्वय को दर्शाता है।

इसी हिंदू धर्म को महात्मा गांधी ने भी सत्य, अहिंसा और प्रेम के सूत्र से परिभाषित किया था, जो अब बदलकर हिंदुत्व में परिवर्तित हो रहा है।

दरअसल, धरती पर हिंदुत्व शब्द का प्रयोग सबसे पहले चंद्रनाथ बसु ने 1892 में अपनी पुस्तक “हिंदुत्व: हिंदुओं का उत्कृष्ट आदर्श” में किया था। इसमें उन्होंने हिंदू धर्म, संस्कृति और जीवनशैली के समग्र दर्शन और हिंदू धर्म को एक व्यापक सांस्कृतिक और आध्यात्मिक व्यवस्था के रूप में प्रस्तुत किया, जो केवल धार्मिक अनुष्ठानों तक सीमित नहीं था, बल्कि इसमें सामाजिक, नैतिक और दार्शनिक मूल्य भी शामिल थे।

उनका मुख्य जोर हिंदू पहचान के पुनर्जनन और आधुनिक संदर्भ में पुनर्व्याख्या पर था। उन्होंने हिंदू धर्म को एक ऐसी व्यवस्था के रूप में देखा जो भारतीय समाज को एकजुट कर सकती थी। विशेष रूप से औपनिवेशिक शासन के दौरान, पश्चिमी प्रभावों के सामने हिंदू संस्कृति की विशिष्टता को बनाए रखने के लिए हिंदू धर्म के प्राचीन ग्रंथों, जैसे वेद, उपनिषद और पुराणों, को आधार बनाकर हिंदू जीवन के आदर्शों को रेखांकित किया गया।

इसके 30 साल बाद, सेलुलर जेल में काला पानी की सजा काट रहे सावरकर को 6 बार माफ़ी मांगने के बाद जब 1921 में सेल्यूलर जेल से रत्नागिरी जेल में स्थानांतरित किया गया, तो वहाँ 1923 में उन्होंने अपनी पुस्तक हिंदुत्व: हू इज़ ए हिंदू? लिखी, और वही विचार आज के हिंदू समाज में फैल रहा है।

सावरकर का हिंदुत्व, चंद्रनाथ बसु के हिंदुत्व और स्वामी विवेकानंद व महात्मा गांधी के हिंदू दर्शन से बिल्कुल विपरीत, झूठ और नफ़रत आधारित दर्शन है जिसे सत्ता के सहारे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ स्थापित करने में लगा हुआ है।

महात्मा गांधी, स्वामी विवेकानंद के हिंदू दर्शन और यहाँ तक कि चंद्रनाथ बसु के हिंदुत्व में दूसरे धर्म या संप्रदाय के लोगों के बारे में एक शब्द नहीं मिलेगा, उनसे घृणा तो दूर की बात है। मगर सावरकर का हिंदुत्व मुसलमान और पाकिस्तान के बिना पूर्ण ही नहीं होता।

तो सावरकर के हिंदुत्व में क्या है?
झूठ है, नफ़रत है, सांप्रदायिक विभाजन है, दंगा है, फसाद है, और यह सब कराकर येन केन प्रकारेण सत्ता प्राप्त करना है, और सत्ता के सहारे सावरकर के हिंदुत्व को स्वामी विवेकानंद और महात्मा गांधी के हिंदू धर्म की जगह स्थापित करना है…

वही 1925 से हो रहा है। विनायक दामोदर सावरकर ने ही भारत के विभाजन का सूत्र दिया। जब देश में स्वतंत्रता की उम्मीद जग रही थी, तब 1937 में हिंदू महासभा के अहमदाबाद अधिवेशन में अपने अध्यक्षीय भाषण में सावरकर ने हिंदुओं और मुसलमानों को दो अलग-अलग सांस्कृतिक और राष्ट्रीय इकाइयों, दो राष्ट्र सिद्धांत, के रूप में देश और दुनिया के सामने सबसे पहले पेश किया।

जिसे 3 साल बाद मुस्लिम लीग और मोहम्मद अली जिन्ना ने अपनाया और 23 मार्च 1940 को मुस्लिम लीग के लाहौर अधिवेशन में अपने अध्यक्षीय भाषण में ठीक यही बात कही और मुसलमानों के लिए एक अलग राष्ट्र “पाकिस्तान” की मांग की।

पाकिस्तान बना, और सावरकर-गोलवलकर के हिंदुत्व दर्शन की नफ़रत के सूत्र को आगे बढ़ाने के लिए दो प्रमुख शब्द मिले: मुसलमान और पाकिस्तान।

इसके बाद इनके मार्ग की सबसे बड़ी बाधा, महात्मा गांधी, को निबटाया गया, और इनकी सबसे बड़ी रुकावट हटाई गई। उसका परिणाम यह हुआ कि अब 100 साल बाद इनके तमाम धार्मिक त्योहार एक वर्ग से नफ़रत किए बिना पूरे नहीं होते… यही है सावरकर का हिंदुत्व।

यह सब एक रणनीति के तहत, चरणबद्ध तरीके से पिछले 100 वर्षों से हो रहा है और यह होता रहेगा जब तक कि इनके विरुद्ध एक और आंदोलन न खड़ा हो, नहीं तो हिंदू धर्म वाकई खतरे में है…

लोग नहीं समझे तो वेद, पुराण और उपनिषद की जगह नए हिंदुत्व धर्म में लोग पढ़ेंगे सावरकर और गोलवलकर की किताबें, जो इस दर्शन की प्रेरणा हैं।

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अनिल यादव एक वरिष्ठ पत्रकार हैं जो Anil Yadav Ayodhya के नाम से जाने जाते हैं। अनिल यादव की कलम सच्चाई की गहराई और साहस की ऊंचाई को छूती है। सामाजिक न्याय, राजनीति और ज्वलंत मुद्दों पर पैनी नज़र रखने वाले अनिल की रिपोर्टिंग हर खबर को जीवंत कर देती है। उनके लेख पढ़ने के लिए लगातार OBC Awaaz से जुड़े रहें, और ताज़ा अपडेट के लिए उन्हें एक्स (ट्विटर) पर भी फॉलो करें।

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