पाँच सौ साल पहले बाबर ने अपनी किताब में एक जगह लिखा था कि उसे अपने देश के बादाम को बेचने के लिए होरमुज़ जलसंधि के बंदर अब्बास तक ले जाना पड़ता था। यह रास्ता बहुत कठिन और खर्चीला था, फिर भी व्यापारिक दृष्टिकोण से अत्यंत महत्वपूर्ण था। आज, लगभग पाँच शताब्दियाँ बाद, ईरान-इस्राइल युद्ध के चलते होरमुज़ जलडमरूमध्य का सामरिक महत्व और भी बढ़ गया है।
ईरान की आत्मघाती नहीं, रणनीतिक चाल
इस्राइल और अमेरिका की संयुक्त शक्ति के सामने अकेले ईरान की हैसियत बहुत कम है। हालांकि, अकेले इस्राइल को वह कुछ घंटों में भारी नुकसान पहुँचा सकता है, लेकिन वास्तव में वह अप्रत्यक्ष रूप से अमेरिका से युद्ध लड़ रहा है, यह जानते हुए कि उसकी जीत लगभग असंभव है। फिर सवाल उठता है: ऐसा आत्मघाती कदम ईरान क्यों उठा रहा है? क्या यह कदम आत्मघाती है?
जवाब है: नहीं। दरअसल, ईरान चाहता है कि यह युद्ध लंबा चले। जैसे ही युद्ध लंबा खिंचेगा, एक दिन ईरान यह घोषणा कर देगा कि उसने मजबूरी में एटम बम बना लिया है, क्योंकि इस्राइल उसके अस्तित्व को समाप्त करने पर तुला हुआ है, जैसा कि इस्राइल स्वयं दावा भी करता है। इस स्थिति में ईरान द्वारा एटम बम बनाना एक तार्किक प्रतिक्रिया के रूप में देखा जाएगा।
परमाणु अप्रसार संधि की बाध्यता और एक संभावित रास्ता
यहाँ यह जानना ज़रूरी है कि ईरान या तो पहले ही एटम बम बना चुका है, या इसके बहुत करीब है। लेकिन परमाणु अप्रसार संधि (NPT) पर हस्ताक्षर के कारण वह इसे सार्वजनिक रूप से घोषित नहीं कर सकता। ऐसे में यदि इस्राइल उस पर हमला करता है, तो अंतरराष्ट्रीय स्तर पर उसे परमाणु शक्ति बनने की नैतिक वैधता मिल जाएगी।
होरमुज़ ईरान का अंतिम अस्त्र
अब आप सोच रहे होंगे कि इस युद्ध का बाबर द्वारा लिखे गए होरमुज़ प्वाइंट से क्या संबंध है? तो समझिए, अमेरिका की आर्थिक मदद से इस्राइल अधिक समय तक युद्ध कर सकता है, लेकिन ईरान के संसाधन सीमित हैं। ऐसे में उसका अंतिम अस्त्र होरमुज़ जलडमरूमध्य ही होगा।
होरमुज़ जलडमरूमध्य एक बहुत संकरा समुद्री रास्ता है, जिससे होकर खाड़ी देशों का लगभग 60% तेल दुनियाभर में जाता है। जैसे ही ईरान थकने लगेगा या संसाधनों की कमी महसूस होगी, वह इस मार्ग को बंद कर सकता है, जो उसके लिए आसान है क्योंकि इसका एक हिस्सा ईरान के अधिकार क्षेत्र में आता है। यदि वह एक भी तेल टैंकर को निशाना बनाकर आग लगा दे, तो आधी दुनिया की तेल आपूर्ति ठप पड़ जाएगी और वैश्विक स्तर पर अफरातफरी मच जाएगी।
हूती विद्रोही और ओमान की खाड़ी का जोखिम
यदि खाड़ी देश विकल्प के तौर पर ओमान की खाड़ी का उपयोग करना चाहेंगे, तो वहाँ पहले से हूती विद्रोही मौजूद हैं, जो अमेरिका तक के जहाज़ों को निशाना बना चुके हैं। ऐसे में कुछ महीनों के लिए वैश्विक संकट उत्पन्न हो जाएगा और इस दौरान ईरान के पास स्वयं को एटमी ताकत घोषित करने का अनुकूल माहौल बन जाएगा।
लेकिन ईरान यह कदम अंतिम क्षणों में ही उठाएगा। जब तक उसे रूस और चीन से कुछ हद तक सहायता मिलती रहेगी, वह होरमुज़ गेम प्लान के बजाय अपनी मिसाइलों से इस्राइल के शहरों को निशाना बनाता रहेगा। उसकी मंशा इस्राइल को बर्बाद करना है।
इस्राइल की भौगोलिक कमजोरी और ईरान की रणनीति
इस्राइल की जनसंख्या केवल 95 लाख है। फिलहाल उसके नागरिक बंकरों में हैं, लेकिन वे कितने दिन वहाँ रहेंगे? साथ ही, उसका भूभाग भी बहुत छोटा है, जो युद्ध में गंभीर क्षति के बाद वर्षों तक पुनर्निर्माण नहीं कर सकेगा। इसके विपरीत, ईरान का क्षेत्रफल बड़ा है और जनसंख्या भी अधिक। यदि उसके दस-बीस शहर या कुछ लाख लोग भी युद्ध में प्रभावित होते हैं, तो भी उसकी रणनीतिक ताकत बनी रहेगी। लेकिन इस्राइल के दस-बीस शहरों पर हमला उसकी 80% आबादी को प्रभावित कर सकता है।
होरमुज़ प्लान आखिरी दांव
यही कारण है कि ईरान ने होरमुज़ योजना को अपने अंतिम विकल्प के रूप में सुरक्षित रखा है, युद्ध के निर्णायक मोड़ के लिए। अब देखना यह है कि ईरान सफल होता है या इस्राइल पहले के अरब युद्धों की पुनरावृत्ति करता है। हालाँकि, इस बार उसका मुकाबला अरबों से नहीं, बल्कि ईरानियों से है, जो 1980 से ही अप्रत्यक्ष रूप से अमेरिका से टकरा रहे हैं।