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गर्भवती महिलाओं में प्री-एक्लेम्पसिया की पहचान के लिए IIT मद्रास ने विकसित किया कम लागत वाला बायोसेंसर

IIT मद्रास के वैज्ञानिकों ने एक कम लागत वाला बायोसेंसर विकसित किया है जो गर्भवती महिलाओं में प्री-एक्लेम्पसिया की समय रहते पहचान कर सकता है।

भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान मद्रास (IIT मद्रास) के नेतृत्व में multi-institutional research टीम ने गर्भवती महिलाओं में प्री-एक्लेम्पसिया (Pre-eclampsia) की शीघ्र और सटीक जांच के लिए एक नया बायोसेंसर प्लेटफ़ॉर्म विकसित किया है। यह तकनीक फाइबर ऑप्टिक सेंसर पर आधारित है, जो कम लागत में, तेज़ और विश्वसनीय जांच की सुविधा प्रदान करती है।

प्री-एक्लेम्पसिया क्या है?

प्री-एक्लेम्पसिया एक गंभीर गर्भावस्था संबंधी जटिलता है जो उच्च रक्तचाप और अंगों को नुकसान पहुंचा सकती है। यह स्थिति माँ और नवजात दोनों के लिए जानलेवा हो होतो है। इसकी शीघ्र पहचान और उपचार आवश्यक है, लेकिन वर्तमान में उपलब्ध जांच विधियाँ महंगी, समय-साध्य और विशेष प्रशिक्षण किए गए लोगो के द्वारा ही किया जाता है, जिससे ग्रामीण और संसाधन-सीमित क्षेत्रों में इसकी पहुँच सीमित है।​

नई तकनीक की विशेषताएँ

IIT मद्रास के प्रोफेसर वी.वी. राघवेंद्र साई के अनुसार, इस बायोसेंसर प्लेटफ़ॉर्म में प्लास्मोनिक फाइबर ऑप्टिक एब्जॉर्बेंस बायोसेंसर (P-FAB) तकनीक का उपयोग किया गया है। यह तकनीक प्लेसेंटल ग्रोथ फैक्टर (PlGF) नामक बायोमार्कर की पहचान करती है जिससे सामान्य गर्भावस्था में 28 से 32 सप्ताह के बीच उच्च स्तर पर होता है। यहाँ आपको बता दे कि प्री-एक्लेम्पसिया की स्थिति में इसका स्तर 2 से 3 गुना कम हो जाता है।

इस तकनीक में पॉलीमेथिल मेथाक्रिलेट (PMMA) आधारित U-बेंट पॉलिमरिक ऑप्टिकल फाइबर (POF) सेंसर प्रोब्स का उपयोग किया गया है जिससे 30 मिनट के भीतर PlGF का लगाया जा सकता है। यह विधि सस्ती, पर्यावरण के अनुकूल और उपयोग में सरल है, जिससे यह ग्रामीण तथा दूर दराज वाले क्षेत्रों में भी प्रभावी ढंग से उपयोग की जा सकती है।

अनुसंधान दल और प्रकाशन

इस अनुसंधान में IIT मद्रास के प्रो. वी.वी. राघवेंद्र साई, डॉ. रतन कुमार चौधरी, डॉ. नारायणन मडबूसी, वेल्लोर इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी के डॉ. जितेंद्र सतीजा, और श्री साक्षी अम्मा इंस्टीट्यूट ऑफ बायोमेडिकल रिसर्च के डॉ. बालाजी नंदगोपाल और डॉ. रामप्रसाद श्रीनिवासन शामिल थे। इस अध्ययन के निष्कर्ष प्रतिष्ठित जर्नल “बायोसेंसर एंड बायोइलेक्ट्रॉनिक्स” में प्रकाशित हुए हैं।​

भविष्य की संभावनाएँ

डॉ. नारायणन मडबूसी के अनुसार, यह तकनीक विभिन्न नैदानिक सेटिंग्स में बड़े पैमाने पर परीक्षणों के लिए तैयार है, और इसके व्यावसायीकरण की दिशा में कदम उठाए जा रहे हैं। डॉ. जितेंद्र सतीजा ने बताया कि यह तकनीक न केवल प्री-एक्लेम्पसिया, बल्कि कैंसर, टीबी, अल्ज़ाइमर जैसी अन्य बीमारियों की पहचान में भी सहायक हो सकती है।​

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डॉ. रामप्रसाद श्रीनिवासन ने बताया कि यह परीक्षण गर्भावस्था के 11-13 सप्ताह के बीच PlGF का पता लगाकर उच्च जोखिम वाली महिलाओं की पहचान कर सकता है जिससे समय पर उपचार संभव है और माँ और नवजात की स्वास्थ्य संबंधी जटिलताओं को कम किया जा सकता है।

यह नवाचार प्री-एक्लेम्पसिया की शीघ्र पहचान और उपचार में एक महत्वपूर्ण कदम है, जो विशेष रूप से ग्रामीण और संसाधन-सीमित क्षेत्रों में मातृ और नवजात मृत्यु दर को कम करने में सहायक हो सकता है।

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