हमारा देश हमेशा से डायलॉगबाजी में मस्त रहा है। यूं कहिए, जैसे किसी को पेट भरने के लिए रोटी चाहिए, वैसे ही इस देश को आत्मा तृप्त करने के लिए डायलॉग चाहिए। कहीं भावनाओं की भूख, कहीं गर्जन की प्यास, हर दौर में किसी ना किसी किरदार के संवादों ने लोगों के दिलों को छुआ और ज़ुबानों पर चढ़ गए।
देश में डायलॉग का बुखार 1955 में रिलीज़ हुई देवदास फिल्म से चढ़ना शुरू हुआ और दिलीप कुमार का डायलॉग कौन कमबख़्त बर्दाश्त करने को पीता है? मैं तो पीता हूँ कि बस साँस ले सकूँ, लोग दो पैग मारकर यही डायलॉग बोलने लगे।
फिर 1957 मदर इंडिया में बेटा, मैंने तुझे अपनी कोख में पाला है, तुझे मेरी कसम, बिरजू! इस डायलॉग पर देश में बहुत तालियां बजी और लोगों के डायलॉग की भूख जगी।
फ़िर 1960 में आई मुग़ल ए आज़म ने तो डायलॉग के सारे किर्तिमान तोड़ दिये तो मेरा दिल आपका हिंदुस्तान नहीं जिस पर आप हुकूमत कर सकें, इस फिल्म के एक से बढ़कर एक डायलॉग ने लोगों में डायलॉग की भूख और बढ़ा दी।
सन 1965 में आई फिल्म वक्त में राजकुमार का डायलॉग चिनाय सेठ जिसके घर शीशे के होते हैं वह दूसरों के घरों पर पत्थर नहीं फेंका करते हिट हुआ, लोगों के ज़ुबान पर रट गया।
फिर 1971 में फिल्म आई आनंद और राजेश खन्ना का डायलॉग बाबू मोशाय, ज़िंदगी और मौत तो ऊपर वाले के हाथ में है। लोगों के सर पर चढ़ कर बोलने लगा। 1971 में ही आई कटी पतंग और मेरा नाम है प्रेम, प्रेम चोपड़ा लोगों को लुभाने लगा।
फिर जावेद अख्तर का दौर शुरू हुआ और 1975 में फिल्म दीवार के डायलॉग मैं आज भी ज़मीन पर फेंके हुए पैसे नहीं उठाता, मेरे पास मां है, जाओ उन लोगों का साइन लेकर आओ जिन्होंने मेरे हाथ पर लिख दिया कि मेरा बाप चोर है, जैसे डायलॉग लोगों का पेट भरते रहे।
1975 में आई फिल्म शोले ने तो डायलॉगबाजी के सारे रिकॉर्ड तोड़ दिए, बसंती इन कुत्तों के सामने मत नाचना, ये हाथ मुझे देदे ठाकुर, चल भाग धन्नो आज बसंती की इज्जत का सवाल है, जैसे हर डायलॉग देश की भूख मिटाते रहे।
शोले एक ऐसी फिल्म थी जिसमें खलनायक गब्बर सिंह कितने आदमी थे? ये हाथ मुझे देदे ठाकुर, 50-50 कोस दूर गांव में जब कोई बच्चा रोता है तो मां कहती है कि सो जा नहीं तो गब्बर सिंह आ जाएगा,जैसे डायलॉग्स के कारण मुख्य किरदारों पर भारी पड़ गया।
धर्मेंद्र के कुत्ते मैं तुम्हारा खून पी जाऊंगा अमिताभ बच्चन के रिश्ते में तो हम तुम्हारे बाप लगते हैं और नाम है शहंशाह से होते हुए सनी देओल के यह मज़दूर का हाथ है कात्या लोहे को पिघलाकर उसका आकार बदल देता है, ढाई किलो का हाथ है, तक से देश की डायलॉग की भूख शांत होती रही।
इसी क्रम में जगीरा आता है जो कहता है कि उलट खोपड़िए, जगीरा से लड़ने की हिम्मत तो जुटा लोगे मगर कमीनापन कहां से लाओगे, मेरे मन को भाया मैं कुत्ता काट के खाया जैसे डायलॉग से लोगों की भूख शांत होती रही।
फिर महामानव का दौर आया जो 11 सालों में सैकड़ों डायलॉग्स के बाद मेरी नसों में गरम सिंदूर बह रहा है तक जारी है।
दरअसल देश को रोटी नहीं बस डायलॉग चाहिए, वही डेलिवर हो रहा है… डा